हम सभी भाई-बहनों को समय-समय पर अपने स्वभाव का ब्रह्ममुहूर्त में निरीक्षण करते रहना चाहिए, क्योंकि मनुष्य योनि में ही स्वभाव सुधरता भी है और बिगड़ता भी है। हम मनुष्यों के अधिकांश कर्म बने हुए स्वभाव के अनुसार ही होते हैं। इसलिए सत्संग की स्थिति में रहते हुए स्वभाव में निरंतर सुधार करते रहना चाहिए, अन्यथा ?.....सुधीर भाटिया फकीर
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