जीवन में स्थूल-शरीर की सीमित आवश्यकतायें रखने में ही हमारी समझदारी है, अन्यथा भोग प्रेरित इच्छाएं ही हम मनुष्यों से उल्टे-सीधे काम करवाने लगती हैं, फलस्वरूप मनुष्य पाप नगरी में गिरता जाता है, जबकि आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये मनुष्य को एक साधारण पुरुषार्थ ही करना होता है.....सुधीर भाटिया फकीर
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