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संध्या-बेला सन्देश

जीवन में शरीर की आवश्यकताओं से अधिक हम जो कुछ भी चाहते हैं, उसे आप कामना ही मान कर चलो। हमारी कामनायों के निरन्तर बढ़ते रहने से ही लोभ व संग्रह वृतियाँ जन्म लेती है, जो मनुष्य को देर-सबेर पाप-नगरी में धकेल देती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

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