हम सभी मनुष्यों की आत्मा, जो 3 शरीरों के बन्धनों से बन्धी हुई है। यह तीनों बन्धन केवल मनुष्य योनि में ही साधना करते हुए समाप्त किये जा सकते हैं, शेष अन्य किसी भी योनि में नहीं, जिसका आरम्भ निष्काम भाव से कर्म करने से ही होता है, अन्यथा मनुष्य योनि में किये गये पाप-पुण्य कर्म ही हमारे नये जन्म का निर्धारण करते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
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