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ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

अक्सर ऐसा बोल दिया जाता है कि मनुष्य अपने जीवन में जैसी बुद्धि बना लेता है, फिर वैसी ही दिनचर्या यानी जीवन बनता जाता है और मरने पर अगली योनि का निर्धारण होता है अर्थात् जैसी मति, वैसी गति, जबकि बिना सत्संग किये बुद्धि राजसी/तामसी ही बनी रहती है, फलस्वरूप ऐसी स्थिति विशेष में पाप-कर्म होते ही रहते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

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