प्रकृति के गुणों का एक ऐसा प्रभाव है कि बचपन में तमोगुण की, युवावस्था में रजोगुण की और वृद्धावस्था आने पर मृत्यु के भय से सतोगुण की प्रधानता सहज ही विकसित होने लगती है। फलस्वरूप अधिकांश मनुष्यों की प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से कम-अघिक अनुपात में सत्संग करने में रूचि जाग ही जाती है।
सुधीर भाटिया फकीर
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