मनुष्य योनि में ही निरंतर सत्संग करते रहने से अशुद्ध/आवर्त आत्मा को पुन: शुद्ध किया जा सकता है, यही मनुष्य जीवन की शुद्ध कमाई है, जो अगले मनुष्य योनि में भी सुरक्षित बनी रहती है, क्योंकि पूर्व की मनुष्य योनियों में ही विषय-भोगों को अमर्यादित ढंग से भोगने मात्र से हमारी शुद्ध आत्मा का ज्ञान आवर्त हुआ था।
सुधीर भाटिया फकीर
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