मनुष्य योनि सत्संग करने के लिये ही मिली है अर्थात् सतोगुण का अधिक से अधिक संग यानी शुद्धतम सतोगुण/ब्रह्ममुहूर्त का संग, क्योंकि ज्ञान के अभाव में तो मनुष्य के कर्म ही सही दिशा में नहीं हो पाते, तब ऐसी स्थिति में भक्ति आरंभ ही नहीं होती।
सुधीर भाटिया फकीर
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