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"ब्रह्ममुहूर्त-उपदेश"

जैसे सूर्य के प्रकाश के बिना अन्धकार बना ही रहता है और अन्धकार में हमारा तन ठोकरें खाता है, वैसे ही सत्संग के अभाव में अज्ञानता बनी रहती है और अज्ञानता में मन ठोकरें खाता है, फिर भी एक साधारण मनुष्य सत्संग करने से ही मन चुराता है।

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