कर्मयोग/निष्काम-कर्मों से ही हमारा स्थूल-शरीर/तन पवित्र होता है, ज्ञानयोग से हमारा सूक्ष्म-शरीर/मन पवित्र होता है, जबकि भक्तियोग से हमारा कारण-शरीर क्रमश: पवित्र होने से आत्मा अपने मूल ज्ञानस्वरुप में लौट आती है और सहज ही परमात्मा से प्रेम होने लगता है।
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