84 लाख योनियों में केवल मनुष्य ही अपने जीवन-काल में प्रकृति के जिस गुण का जितने-जितने अनुपात में संग करता है, फिर उतने-उतने अनुपात में इन गुणों का रंग/संस्कार मनुष्य के कारण-शरीर में पड़ने से मनुष्य का स्वभाव बनता जाता है, जो मनुष्य के पुण्य-पाप कर्मों को एक दिशा प्रदान करते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
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