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"ब्रह्ममुहूर्त-उपदेश"

स्थूल-शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए लाभ की इच्छा रखने पर भी मनुष्य को धर्मानुसार ही पुरूषार्थ करना होता है, लेकिन मन में उठने वाली भोग इच्छायें मनुष्य के मन में लोभ....संग्रह वृति को जन्म देते हुए मनुष्य को तमोगुणी बनाते हुए पाप-नगरी में गिरा देती हैं।

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