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"ब्रह्ममुहूर्त-उपदेश"

कलयुग में एक साधारण मनुष्य अपनी सत्ता बनाये रखने के लिए/स्वयं को सुखी करने के लिए दूसरे मनुष्यों को दुखी करने में भी परहेज नहीं करता, इसी प्रक्रिया में मनुष्य कितने पाप-कर्म कर जाता है, मनुष्य को भी स्वयं भी पता नहीं चलता ?

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