तामसी प्रवृति के लोग केवल स्वयं के लिए ही जीते हैं, जबकि राजसी प्रवृत्ति वाले स्वयं + परिवार के लिए पुरूषार्थ करते हैं। केवल सात्विक प्रवृत्ति रखने वाले मनुष्य ही प्रकृति के सभी जीवों के हित के लिए यथासंभव पुरूषार्थ करते हैं। इसलिए जीवन में निरन्तर सत्संग करते हुए अपना सात्विक स्वभाव बनाना चाहिए।
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