ध्यान एक बीज है, इसे जिस कार्य विशेष में लगाया जाता है, फिर वहीं का ज्ञान रूपी फल अंकुरित होता है। मनुष्य योनि में ही परमात्मा का ध्यान लगाना संभव है। इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए, अन्यथा संसार में ध्यान सहज ही जाने लगता है, जिसका अन्तत: फल शून्य के अलावा कुछ नहीं ?
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