सत्संग के अभाव में एक साधारण मनुष्य की स्थिति कुसंग की सहज ही बनी रहती है, क्योंकि तमोगुण भले ही प्रत्यक्ष रूप से कुसंग है, जबकि रजोगुण भी देर-सबेर कुसंग में ही गिरा देता है, जिसके फलस्वरूप कब पाप-कर्म शुरु हो जाते हैं, मनुष्य को इसका बोध भी नहीं रहता।
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