कलयुग में अधिकांश मनुष्य अपने जीवन में सत्सँग की बातों को सुनने/पढ़ने या केवल "LIKE" करने तक ही महत्व देते हैं। जबकि सत्संग की बातों को अपनी दिनचर्या/व्यवहार/स्वभाव में ढालने से ही हमारी आध्यात्मिक यात्रा आरम्भ होती है, अन्यथा तो, मनुष्य के कर्मों में भी सुधार नहीं हो पाता।
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