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Showing posts from September, 2022

पड़ाव और मंजिल में अन्तर - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1091)-30-09-2022

 

3 गुणों (TRS) के "संग का अनुपात" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1090)-30-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

सभी मनुष्यों को अपने मिले हुए जीवन में स्थूल-शरीर को मात्र 1%, सूक्ष्म-शरीर को 10% और कारण-शरीर को 100% महत्व देना चाहिए, तभी हमारा-आपका मनुष्य जीवन सार्थक हो सकेगा, अन्यथा यह अनुपात बिगड़ने से मरने के बाद अधोगति कि सम्भावानायें भी बढ़ने लगती हैं।

वर्तमान से "मोह" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1089)-29-09-2022

 

"आधार-कार्ड" } स्थूल-शरीर } चेतन-स्वरूप - सुधीर भाटिया-(कक्षा-1088)-29-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

हम सभी मनुष्यों को अपने जीवन में कर्मो के आधार पर ही प्रकृति से सुख-दुख रुपी फल मिलते हैं। इसलिए हम सभी मनुष्यों को कर्म करने से पूर्व कर्म की बारीकियों को भली-भांति समझ लेना चाहिए, ताकि दुख रूपी फलों से तो अवश्य ही बचा जा सके।

सतोगुण की प्रशंसा-तमोगुण की निंदा, अन्यथा ? - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1087)-28-09-2022

 

दान } दसवाँ हिस्सा ? - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1086)-28-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

प्रत्येक भौतिक यन्त्र में क्रिया सदा ही चेतन तत्व द्वारा ही लाई जाती है। प्रकृति भी परमात्मा का एक विशाल यन्त्र है, जिसका संचालन परमात्मा द्वारा होता है, जैसे हमारा स्थूल-शरीर का संचालन आत्मा/परमात्मा द्वारा होता है।

सँसार और बैंक के कार्य - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1085)-27-09-2022

 

परमात्मा की मोहर - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1084)-27-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

एक साधारण मनुष्य के जीवन में लम्बे समय तक निरन्तर सुख भोगते रहने से भी मनुष्य का स्वभाव बिगड़ने की सम्भावनायें बढ़ने लगती हैं, इसलिए जीवन में सन्तुलन बनाये रखने के लिए भी अन्य मनुष्यों/जीवों के दुखों को भी दूर करने का प्रयास सदा करते रहना चाहिए।

रजोगुणी मनुष्य "रुकता नहीं-रजता नहीं" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1083)-26-09-2022

 

"नवरात्रि ज्ञान सन्देश"

आप सभी भाई-बहनों को "नवरात्रि" की मेरी ओर से बहुत-बहुत "शुभ कामनायें" कि हम सभी भाई-बहनों का जीवन आध्यात्मिक, मानसिक, शारीरिक व आर्थिक रूप से सुन्दर व स्वस्थ बने। हम सभी भाई-बहन अपने-अपने कर्तव्य-कर्मों को प्रसन्नतापूर्वक व ईमानदारी से श्रद्धापूर्वक निभायें। हमारा आहार-विहार व व्यवहार पूर्ण रूप से शुद्ध हो। आपका आध्यात्मिक मित्र सुधीर भाटिया फकीर www.sudhirbhatiafakir.com

सँसार }} सुख/अल्पकालिक, दुख/दीर्घकालिक - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1082)-26-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

परमात्मा प्रकृति के सभी असंख्य जीवों से प्रेम करते हैं, केवल मनुष्यों से नहीं। जबकि कलयुग में अधिकांश मनुष्य स्वयं से ही प्रेम करते हैं, जबकि अन्य मनुष्यों से प्रेम करते हुए केवल दिखाई देते हैं, तब अन्य जीवों से ?

अनावश्यक भोग-"बे"होश/"अ"चेत - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1081)-25-09-2022

 

"सूर्य/S/सतोगुण, अन्धकार/T/तमोगुण, धुंध/R/रजोगुण - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1080)-25-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

सभी मनुष्यों के पास परमात्मा को जानने, समझने व पाने का एक सुनहरा अवसर है, जिसका आरंभ सत्संग करने से ही होता है, लेकिन एक साधारण मनुष्य अक्सर अपने जीवन में सत्संग के प्रति तो उदासीन रहता है, जबकि विषय-भोगों के लिए भाग-दौड भी करता रहता है।

"NO DISCOUNT" 》 ''कर्मफल-सिद्धान्त'' - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1079)-24-09-2022

 

"आदि" यानी 23 तत्वों का विस्तार - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1078)-24-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

बुद्धि संसार से और विवेक परमात्मा से जोड़ता है। जबकि निरन्तर सात्विक-बुद्धि बने रहने से ही मनुष्य की विवेक-शक्ति जागती है और जब तक विवेक-शक्ति 100% जाग नहीं जाती, तब तक मनुष्य में कम-अधिक अनुपात में सुख भोगने की इच्छाएं बनी ही रहती हैं।

आपके जीवन का ''संचालन'' - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1077)-23-09-2022

 

कर्मकाण्डों से "ज्ञानपूर्वक ही जुड़ें" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1076)-23-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

परमात्मा एक सर्वव्यापक आनन्दस्वरूप सत्ता है, जिसे कहीं ढूंढना नहीं होता, हमें केवल निरंतर सत्संग करते रहने से अपनी ज्ञानररूपी पात्रता बनानी होती है और पात्रता बन जाने पर परमात्मा अपने आनन्दरूपी झलकों का बोध करवाने लगते हैं।

स्थिति और परिस्थिति में ''अन्तर'' - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1075)-22-09-2022

 

कानून की पकड़-परमात्मा की पकड़ - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1074)-22-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

पदार्थों (धन) को कभी भी अपने जीवन का लक्ष्य मत बनने दो, अन्यथा परमात्मा को जानने/समझने/पाने का लक्ष्य ही छूट जायेगा, क्योंकि पदार्थ/धन तामसी/राजसी हैं, तब ऐसी स्थिति में सतोगुण ही दूर रहता है, जबकि परमात्मा तो विशुद्ध सतोगुणी सत्ता है ?

तमोगुण ''एक मोहनात्मक स्थिति'' - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1073)-21-09-2022

 

चुनाव आपका 》सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1072)-21-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

एक साधारण मनुष्य धन का संग्रह करने में ही अपने जीवन का अधिकांश समय यूँ ही गँवा देता है, क्योंकि अधिक धन कमाने के पीछे मनुष्य का लक्ष्य पदार्थों का अधिक से अधिक भोग करने का ही होता है, जबकि भोगने वाली स्थूल-इंद्रियां तो क्रमश: शिथिल होती जाती है ?

शास्त्र एक दर्पण - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1071)-20-09-2022

 

भूलों का परिणाम ''दुख'' - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1070)-20-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

सत्संग के अभाव में एक साधारण मनुष्य की स्थिति कुसंग की सहज ही बनी रहती है, क्योंकि तमोगुण भले ही प्रत्यक्ष रूप से कुसंग है, जबकि रजोगुण भी देर-सबेर कुसंग में ही गिरा देता है, जिसके फलस्वरूप कब पाप-कर्म शुरु हो जाते हैं, मनुष्य को इसका बोध भी नहीं रहता।

दोषी कौन 》"पूरी की पूरी श्रृँखला" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1069)-19-09-2022

 

प्र+कृ+ति का परिवार - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1068)-19-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

भौतिक प्रकृति द्वैत है, जैसे दिन के साथ रात जुड़ी है, उसी तरह से सुख के साथ दुख जुड़ा/छिपा रहता है, जो मनुष्य को ज्ञान/सत्संग के अभाव में सुख चखते समय दुख नजर नहीं आता।

सर्वप्रथम अपने "कारण-शरीर" को जाने-समझें - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1067)-18-09-2022

 

"तमोगुण की प्रधानता" (मच्छरों का काटना/गन्दगी) - सुधीर भाटिया फकीर(कक्षा-1066)-18-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

सभी शास्त्रों में केवल भगवान को ही सच्चिदानंद/आनंदस्वरुप बतलाया गया है, जबकि संसार/प्रकृति को दुखालय बताया गया है, फिर भी एक बुद्धिमान मनुष्य मरते दम तक सँसार में ही सुख ढूंढने की भूल करता रहता है ?

जियो और जीने दो, चलो और चलने दो - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1065)-17-09-2022

 

3 अनादि तत्व:- भगवान, आत्मा, प्र+कृ+ति - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1064)-17-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

कर्मफल-सिद्धांत के अनुसार कोई भी मनुष्य स्वयं द्वारा "ही" किये गये पाप-पुण्य कर्मों का फल भोगता है, जिसमें सुख रुपी फलों का त्याग तो किया जा सकता है, लेकिन दुख रुपी फलों को स्वयं ही खाना/भोगना पड़ता है।

परिस्थितियों में बदलाव - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1063)-26-09-2022

 

जल} बूंद-बूंद कीमती है, साँस} हर क्षण कीमती है - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1062)-16-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

मनुष्य योनि में ही हम अपने कारण-शरीर को सुन्दर बनाते हुए अपनी अज्ञानता समाप्त कर क्रमश: मोक्ष की दिशा की ओर बढ़ सकते हैं। जिसके लिए हम सभी मनुष्यों को तमोगुण से परहेज, रजोगुण मर्यादा में और सतोगुण का अधिक से अधिक संग करते रहना होगा।

अपनी जिम्मेदारी से मत भागिये -सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1061)-15-09-2022

 

"रस-बुद्धि" यानी "आसक्ति" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1060)-15-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

एक सँसारी मनुष्य अपने जीवन में एक ही गलती को बार-बार करता रहता है, यदि मनुष्य भूतकाल में की गई गल्तियों से सीख नहीं लेता, तब तक उसके नये कर्मों में भी सुधार नहीं आता, फलस्वरूप मनुष्य के "बड़े भविष्य" की भी बिगड़ने की सम्भावनायें बढ़ने लगती हैं।

अच्छे-कर्म 《 "अच्छे-विचार" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1059)-14-09-2022

 

"सृष्टि का प्रायोजन" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1058)-14-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

मनुष्य की आध्यात्मिक यात्रा उस दिन आरंभ होती है, जिस दिन मनुष्य परमात्मा से सुख मांगना बन्द कर देता है और मिली हुई परिस्थितियों में प्रसन्नचित्त रहता हुआ अपने कर्तव्य कर्मों को केवल सावधानीपूर्वक व ईमानदारी से निभाता है।

जीवन की "ऊँची-उड़ान", कब तक ? - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1057)-13-09-2022

 

"सीमित आवश्यकतायें" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1056)-13-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

ध्यान एक बीज है, इसे जिस कार्य विशेष में लगाया जाता है, फिर वहीं का ज्ञान रूपी फल अंकुरित होता है। मनुष्य योनि में ही परमात्मा का ध्यान लगाना संभव है। इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए, अन्यथा संसार में ध्यान सहज ही जाने लगता है, जिसका अन्तत: फल शून्य के अलावा कुछ नहीं ?

जीवन के "निर्णय" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1055)-12-09-2022

 

"विचार-मंथन" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1054)-12-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

मनुष्य द्वारा व्यक्तिगत/पारिवारिक सुख पाने के लिए किये गए सकाम पुण्य-कर्मों से भी कोई "आध्यात्मिक उन्नति" नहीं होती। इसलिए हम सभी मनुष्यों को सदा समाज हित के लिए ही यथासम्भव निष्काम-कर्म करने चाहिए।

कर्म 》"समाज में संदेश" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1053)-11-09-2022

 

तमोगुण } अधोगति - सतोगुण } सद्गगति - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1052)-11-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

तमोगुण/अज्ञानता के समाप्त होते ही सतोगुण/ज्ञान का प्रकाश आता है, जबकि जब-जब रजोगुण आता है, तो मनुष्य रजोगुण के प्रभाव में/आकर्षणों में फंस कर भोगों को भोगने में फिर अचेत/अज्ञानता में आ जाते हैं। इसलिए रजोगुण से उदासीन रहें।

"रोग प्रतिरोधक क्षमता" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1051)-10-09-2022

 

स्थूल-शरीर }बचपन, युवा, वृद्धावस्था और मन } जवान ??? - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1050)-10-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

मनुष्य को अपने जीवन में धन केवल तन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही कमाना चाहिए, तभी परमात्मा को पाने का लक्ष्य बन सकता है, अन्यथा, मन में धन ही धन का लक्ष्य बन जाने से परमात्मा की विस्मृति हो जीवन ही अनर्थ की जाने लगता है।

"सँसारी-सत्सँग" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1049)-09-09-2022

 

"जघन्य पाप" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1048)-09-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

मनुष्य उच्च भौतिक-ज्ञान प्राप्ति से अधिक धन कमाते हुए केवल सुख-सुविधा के अधिक साधन ही खरीद सकता है, सुख-शान्ति नहीं। जबकि आध्यात्मिक ज्ञान लेने पर ही मनुष्य को सुख-शान्ति मिलती है।

मनुष्य का "कुसंग सहज ही होता है" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1047)-08-09-2022

 

"मायातीत" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1046)-08-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान ही सच्चिदानंद/आनंद है, जबकि संसार/प्रकृति को दुखालय बताया गया है, फिर भी बुद्धिमान मनुष्य सँसार में ही मरते दम तक सुख ढूंढने की भूल करता रहता है।

सत्सँग ''जोर जबरदस्ती'' से करना ही होगा - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1045)-07-09-2022

 

"निष्काम-कर्म" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1044)-07-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

कलयुग में अधिकांश मनुष्य अपने जीवन में सत्सँग की बातों को सुनने/पढ़ने या केवल "LIKE" करने तक ही महत्व देते हैं। जबकि सत्संग की बातों को अपनी दिनचर्या/व्यवहार/स्वभाव में ढालने से ही हमारी आध्यात्मिक यात्रा आरम्भ होती है, अन्यथा तो, मनुष्य के कर्मों में भी सुधार नहीं हो पाता।

सँस्कारों का महत्त्व - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1043)-06-09-2022

 

"प्रभात फेरी" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1042)-06-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"  जैसे सूर्य में प्रकाश सदा बना रहता है, वैसे ही भगवान में आनन्द सदा बना ही रहता है, जबकि हमारी-आपकी दुनिया में दुख सदा बने ही रहते हैं, फिर भी मनुष्य अज्ञानतावश संसार में ही रहना पसन्द करता है।

प्रकृति द्वारा परिस्थितियाँ - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1041)-05-09-2022

 

''सिद्धांत'' - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1040)-05-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

अधिकांश मनुष्यों का स्वभाव रजोगुणी ही होता है और संसारी आकर्षण भी रजोगुणी हैं। फिर, एक साधारण मनुष्य सत्संग के अभाव में ऐसी परिस्थितियों में बंध/फंस जाता है। इसीलिए इन आकर्षणों से बचने के लिए सत्संग करते हुए अपनी सात्विक दिनचर्या बनानी आवश्यक है।

ज्ञान का "मिलना" - ज्ञान का "टिकना" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1039)-04-09-2022

 

मनुष्य जीवन की "EXPIRY DATE" 》100 वर्ष - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1038)-04-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

कर्मफल सिद्धान्त के अनुसार कोई भी जीवात्मा केवल मनुष्य योनि में ही किए गए कर्म-फलों को ही भोग सकता है, यदि कोई मनुष्य अन्य किसी मनुष्य के सुखों को छीनता है, तो प्रकृति रुपी अदालत उसे दंड दिए बिना छोड़ती नहीं।

प्रार्थना में "धन्यवाद" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1037)-03-09-2022

 

''वासना'' - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1036)-03-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

संसारी रजोगुणी विषय (गन्ध,रस,रुप,स्पर्श,शब्द) आरंभ में भले ही अल्पकालिक सुख देते हैं, लेकिन अन्ततः यह अमर्यादित भोगे गये सुख भविष्य में तन के स्तर पर दुख रूपी रोग व मन में विकारों की विकृति को ही बढ़ाते हैं।

गलतियाँ:- पछतावा या सीख - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1035)-02-09-2022

 

"साधारण पाप" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1034)-02-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

मनुष्य योनि में ही सतोगुण में वृद्घि करते हुए हम अपने अन्तकरण में सात्विकता को बढ़ा सकते हैं। सात्विकता बढ़ने से ही मनुष्य रजोगुणी विषय-भोगों में एक मर्यादा रख पाता है, जो अन्तत: मनुष्य को तमोगुण में गिरने से भी बचाती है।

हमारी-आपकी ''समझ'' कहाँ तक ? - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1033)-01-09-2022

 

जीवन की सच्चाई - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-1032)-01-09-2022

 

"ब्रह्ममुहूर्त-ज्ञान सन्देश"

अधिकांश मनुष्यों में वृद्धावस्था आने मात्र से प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से सत्संग करने में कुछ रुचि बनने लगती है, भले ही आरंभिक सत्संग बेमन से ही होता है, जो नियमित रूप से करते रहने से भी मनुष्य पाप कर्मों से तो बच ही जाता है।