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Showing posts from October, 2021
 

प्रकृति के गुणों (तमो, रजो,सतो) का खेल - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-668)-31-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

वेदों में ही विस्तार से विधि-निषेधों का उल्लेख किया गया है, जिनका पालन करने से हम सभी मनुष्यों का कल्याण ही होता है, कि यह करो यानी विधि और यह मत करो यानी निषेध। विधि-विधान द्वारा कर्म करने से मनुष्य को सुख की प्राप्ति होती है और निषेध कर्म करने से भविष्य में हमें दुख की प्राप्ति होना निश्चित है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

यदि मनुष्य अपने जीवन में अपने धर्म यानी कर्तव्य का पालन ईमानदारी से कर लेता है, तब ऐसी स्थिति में प्रकृति के सभी जीवों का भी कल्याण हो जाता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य का अपना जीवन भी सार्थक हो जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

भक्त:- आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञासु, ज्ञानी

 

WEEK END एक चर्चित वाक्य - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-667)-30-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

भौतिक प्रकृति की 84 लाख योनियो में केवल मनुष्य ही विषय-भोगों में मर्यादा से अधिक लिप्त होने से अक्सर अपना स्वभाव बिगाड़ लेता है, जबकि अन्य योनियो के जीव जैसे पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े, कीट-पतंग, पशु-पक्षी आदि सभी जीव मर्यादा में ही यानी प्रकृति के द्वारा दिये गए स्वभाव के अनुसार ही जीवन जीते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मनुष्यों द्वारा सकाम भाव से किये गये सभी कर्मों का फल भौतिक रूप से अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों के रूप में मिलता है, दूसरी ओर निश्काम भाव से कर्म होने पर ज्ञान रुपी फल मिलता है और ज्ञान का फल परमात्मा से भक्ति करवाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

अच्छे विचार-अच्छा भविष्य

 

वृतियाँ एक मानसूनी बादल - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-666)-29-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

भौतिक प्रकृति की 84 लाख योनियो में केवल मनुष्य ही विषय-भोगों में मर्यादा से अधिक लिप्त होने से अक्सर अपना स्वभाव बिगाड़ लेता है, जबकि अन्य योनियो के जीव जैसे पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े, कीट-पतंग, पशु-पक्षी आदि सभी जीव मर्यादा में ही यानी प्रकृति के द्वारा दिये गए स्वभाव के अनुसार ही जीवन जीते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

गर्भावस्था, बचपन, जवानी व बुढ़ापा शरीर की अवस्थाएँ मानी जाती हैं, जबकि मन की अवस्थाओं में मन के विचार/वृतियाँ/फुरनो को माना जाता है, जो प्रकृति के 3 गुणों के संग करने पर बने हुए स्वभाव यानी संस्कारों पर आधारित होते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

आनन्द की गारन्टी

 

आत्महत्या का मूल कारण (अज्ञानता) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-665)-28-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

ऐसा देखने में आता है कि हमारा अगला पांव तभी आगे बढ़ पाता है, जब आगे जगह यानी स्थान होता है। इसी प्रकार एक सामान्य परिस्तिथियों में आगे नया शरीर या नया जन्म निश्चित हो जाने पर ही पुराना शरीर छूटता/मरता है, भले ही नये प्रारब्ध/योनि में मूल आधार कर्म + संस्कार ही रहते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मनुष्य जन्म के साथ ही पिछले जन्म का बना हुआ स्वभाव ले कर ही आता है, जिसे बदलना कुछ कठिन होता है। इसलिए वर्तमान जीवन में नई बुराईयों द्वारा अपना स्वभाव और मत बिगड़ने दो, अन्यथा मरने के बाद अधोगति की सम्भावनाएं बढ़ने लगती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

समय और शब्दों में समानता

 

मनुष्य की स्थिति:- रजोगुण》 सतोगुण》 विशुद्ध सतोगुण - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-664)-27-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य अपने जीवन में जिस दिशा में अधिक ध्यान लगाता है, फिर एक समय के बाद वहीं का ज्ञान रूपी फल मिलने लगता है। हमारे पूर्व के ऋषियों ने परमात्मा में अपना अधिक ध्यान लगाया, इसलिए उन्हें परमात्मा का गहरा ज्ञान हुआ। आज का मनुष्य अधिक सुख पाने के उद्देश्य से साधनों के आविष्कार करने में ही लगा हुआ है, फलस्वरुप इसी दिशा में उसे सफलता भी मिलती जा रही है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या -बेला संदेश"

जीवन में निरंतर सत्सँग करते रहने से ही मन अपनी मूल सात्विक स्थिति में लौटने लगता है यानी तमोगुण व रजोगुण की भौतिक छाया समाप्त होने लगती है और सात्विक ज्ञान रुपी ज्योत जलने से परमात्मा में सहज ही मन लगने लगता है.....सुधीर भाटिया फकीर

पाप कर्म:- तन, मन, वाणी

 

आत्मा का स्वरुप:- रुप/तमो, रुप/रजो, रुप/सतो - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-663)-26-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि पा कर हम सभी भाई-बहनों को परमात्मा को जानने-समझने व पाने का एक अवसर मिलता है। मनुष्य इस दिशा में जितनी मेहनत कर लेता है, उतनी ही परमात्मा की नजदीकियाँ मिलने से क्रमश: आनन्द की अनुभूति होने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर

सुखों का संग्रह-एक पाप

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हम सभी मनुष्यों को अपने मिले हुए जीवन में समय, सम्पत्ति व शक्ति का सदा सदुपयोग करते रहना चाहिए, ऐसा जीवन में निरंतर करते रहने से ही हमारा जीवन सार्थक हो पाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य होने के लक्षण - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-662)-25-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

अक्सर एक सामान्य मनुष्य के जीवन में अस्थाई वैराग्य शमशान घाट में ही जागता है, जबकि स्थाई वैराग्य जितने अंश में होगा, फिर उतने ही अंश में लिया हुआ ज्ञान मन में टिकता है, फिर टिका हुआ ज्ञान ही मन को प्रभु भक्ति में लगाता है, अन्यथा मनुष्य का जीवन यूँ ही बीत जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

एकांत सदा ही हमें परमात्मा से जोड़ने में सहायक होता है। एकान्त में हम स्वयं/आत्मा में स्थित हो परमात्मा का चिंतन कर सकते हैं। इसलिए जीवन में एकांत के पलों का सदा ही लाभ उठाना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

समस्या और समाधान में सम्बन्ध

 

धन:- पहले कमाने में, फिर सम्भालने में, जीवन का अन्त ? - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-661)-24-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

भौतिक प्रकृति को ही माया भी कहा जाता है, जो 2 प्रकार की होती है, विद्या और अविद्या। प्रकृति में 3 गुण सतोगुण + रजोगुण + तमोगुण सदा बने रहते हैं। रजोगुण + तमोगुण को ही अविद्या माया और सतोगुण को विद्या माया कहा दिया जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर.

"सन्ध्या-बेला संदेश"

परमात्मा द्वारा दी गई शक्तियों का सदा सदुपयोग करना चाहिए, अन्यथा शक्ति को वैसे ही वापिस ले लिया जाता है, जैसे सँसार में पिस्तौल का दुरुपयोग होने से मनुष्य को दिया गया लाईसेन्स भी समाप्त कर दिया जाता है व दण्ड भी मिलता है.....सुधीर भाटिया फकीर

सच्चिदानंद (सत/1 + चित/2 + आनन्द/3)

 

कर्माशय (पाप-पुण्य कर्मों का लेखा-जोखा) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-660)-23-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्यों को अपने जीवन में विधि-विधान द्वारा कर्म करने से ही सुख की प्राप्ति होती है और निषेध कर्म करने से भविष्य में दुख की प्राप्ति होती है. इसलिए हम सभी मनुष्यों का कोई भी कर्म प्रकृति के किसी भी जीव के हित के विरुद्ध नहीं होना चाहिये.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

भगवान मनुष्यों से ही नहीं, बल्कि प्रकृति के अन्य सभी जीवों से भी प्रेम करते हैं, जबकि सँसार में एक सामान्य मनुष्य बिना किसी स्वार्थ के किसी अन्य जीवों से तो दूर की बात है, बल्कि किसी मनुष्य से भी प्रेम नहीं करता.....सुधीर भाटिया फकीर

भाषा मात्र एक माध्यम है

 

परमात्मा की न्याय व्यवस्था - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-659)-22-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

भौतिक प्रकृति परमात्मा की ही एक अदालत है, जहाँ मनुष्यों द्वारा किए गए सभी प्रकार के कर्मों-विकर्मों पर प्रकृति की पैनी नजर सदा ही बनी रहती है, जिनका प्रकृति एक समय अंतराल के बाद सुख-दुख रुपी फल अवश्य ही देती है, सुख रुपी फलों का त्याग सम्भव है, लेकिन दुख रुपी फलों को स्वयं ही भोगना पड़ता है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

एक साधारण मनुष्य 5 भोग-विषयों के प्रति तो सदा जागा रहता है, लेकिन परमात्मा के प्रति सोया रहता है। जबकि साधक परमात्मा के प्रति सदा ही जागा रहता है और विषय-भोगों के प्रति सोया रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर

कर्मकाण्ड करते रहिये

 

आत्मा की 3 स्थितियाँ - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-658)-21-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

शास्त्रों में भौतिक प्रकृति को द्वैत कहा गया है, जैसे दिन के साथ रात जुड़ी है, उसी तरह से सुख के साथ दुख छिपा ही रहता है, जो एक साधारण मनुष्य को ज्ञान के अभाव में सुख चखते समय दुख नजर नहीं आता यानी सुख मात्र एक छलावा है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मनुष्य प्रयत्नपूर्वक स्थूल शरीर की इंद्रियों को नियंत्रण में ले सकता है, लेकिन मन को बिना सत्संग किए नियंत्रण में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि मन बहुत ही हठीला है.....सुधीर भाटिया फकीर

जीवन : दुख/बड़े दुख, सुख/छोटे दुख

 

कर्मफल सिद्धांत - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-657)-20-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सच्चिदानंद यानी आनंद शब्द केवल भगवान के लिये ही कहा जाता है, जबकि दुखालय शब्द संसार/प्रकृति के लिए कहा जाता है, फिर भी मनुष्य अज्ञानतावश सँसार में ही सुख तलाश करने की भूल करता रहता है और इस भूल का एहसास सत्सँग करने ही होता है....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मनुष्य योनि में ही निरंतर सत्संग करते हुए अशुद्ध/आवर्त आत्मा को पुन: शुद्ध किया जा सकता है, यही मनुष्य जीवन की शुद्ध कमाई है, जो पुन: मनुष्य योनि पाते ही वही शुद्ध आत्मा की स्थिति दोबारा से मिल जाती है.....सुधीर भाटिया फकीर

पात्रता रुपी बर्तन

 

डाक्टर-दवाई और रोग - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-656)-19-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

जब-जब मनुष्य के जीवन में विषय-भोगों को भोगने के प्रति रुचि या व्याकुलता बढ़ने लगती है,  तब-तब उसमें धन के प्रति लोभ-संग्रहवृति भी बढ़ने लगती है, जो मनुष्य को कब पाप-नगरी में डूबो देती है, मनुष्य को स्वयं भी पता नहीं चलता। इसपर आप भी चिन्तन करें.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या- बेला संदेश"

जीवन में निरंतर सत्संग करते रहने से ही भगवान के दिव्य गुणों का ज्ञान समझ में आता है, फिर और ज्ञान टिक जाने पर जीवन भर संग्रह किया हुआ धन यानी पदार्थ बेकार नजर आने लगते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

काला और सफेद रंग (एक संदेश रुप में)

 

10 गुणा का अभिप्राय (1-T, 10-R, 100-S, 1000-VS) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-655)-18-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

निरंतर सत्संग करते रहने से कोई नया ज्ञान नहीं मिलता, केवल अज्ञानता का परदा क्रमश: मिटता जाता है और आत्मा अपने मूल स्वरूप में लौटने लगती है। फिर ज्ञान ही मनुष्य को प्रभु से जोड़ भक्ति यानी प्रीति/प्रेम करवा देता है, यही मनुष्य योनि की एक सार्थकता है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

मनुष्य योनि में ही ज्ञान लिया जा सकता है। ज्ञान कभी भी दिया नहीं जाता, सदा लिया ही जाता है और श्रद्धापूर्वक लिया हुआ ज्ञान ही मन में टिकता है, जो मनुष्य को भक्ति में लगाता है। भक्ति ही हमारी शुद्ध कमाई है.....सुधीर भाटिया फकीर

मन की चंचलता पर नियन्त्रण पाना

 

पाप कर्म:- प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष, अनुमोदन - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-654)-17-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

वृद्धावस्था आने पर अक्सर ऐसा देखा गया है कि लगभग 80-90% लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सत्संग करते देखे गए हैं, भले ही अधिकांश लोगों का आरंभिक सत्संग बेमन से ही होता है, लेकिन फिर भी यह एक अच्छी शुरुआत है, जो मनुष्य को पाप कर्मों से रोकते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सत्संग के अभाव में एक साधारण मनुष्य का जीवन अज्ञानता में ही बीतता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य को आध्यात्मिक ज्ञान नहीं होता। ऐसी स्थिति लम्बे समय तक बने रहने से पाप कर्म कब शुरु हो जाते हैं, मनुष्य को इसका बोध भी नहीं रहता.....भाटिया फकीर

भावना और कामना में अन्तर जानें।

 

वृतियाँ:- क्लिष्ट-अक्लिष्ट - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-653)-16-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी आत्माएं ज्ञानवान ही होती हैं, लेकिन मनुष्य योनि पा कर जैसे-जैसे मनुष्य प्रकृति के विषय-भोगों को मर्यादा से अधिक भोगता है, तब क्रमश: आत्मा का ज्ञान आवर्त होने लगता है और जो जीव जितना अचेत अवस्था में होता है, उसे क्रमश: कम दुख का बोध होता है। सभी पेड़-पौधे लगभग पूर्ण अचेत हैं, इसलिए उन्हें दुखों का कष्ट महसूस नहीं होता, जबकि हम सभी सचेत मनुष्यों को दुख की पीड़ा का पूर्ण अनुभव होता है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

किसी भी मनुष्य की आध्यात्मिक यात्रा उस दिन आरंभ होती है, जिस दिन मनुष्य परमात्मा से सुख मांगना बन्द कर देता है और मिली हुई सभी परिस्थितियों में प्रसन्न रहता हुआ अपने कर्तव्य कर्मों को सावधानीपूर्वक व ईमानदारी से निबाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य :- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र

 

स्थूल शरीर एक रथ यानी कार - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-652)-15-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

एक साधारण बोलचाल में ज्ञान को प्रकाश के साथ और प्रकाश को दिन के साथ ही जोड़ा जाता है। दिन में ही दिन और रात दोनों मान लिए जाते हैं। इसलिए जन्म को जन्मदिन से जोड़ा जाता है, भले ही जन्म, दिन के समय में हो या रात के समय। इसलिए जीवन में दिन/प्रकाश/ज्ञान/सतोगुण को सदा ही महत्त्व देना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

"दशहरा पर्व से शिक्षा-संदेश"

"दशहरा पर्व से शिक्षा-संदेश" आप सभी भाई-बहनों को दशहरा पर्व की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनायें। सभी पर्वों के मनाये जाने के पीछे एक शिक्षा-संदेश होता है। यह पर्व भी बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है। इसलिए हम सभी मनुष्यों को भी अपने विकारों पर विजय प्राप्त करने के लिए सात्विक दिनचर्या रखनी होगी, क्योंकि सभी बुराईयों की जड़ें विकारों द्वारा ही पोषित होती हैं। सात्विक दिनचर्या बनाये रखने के लिए "आध्यात्मिक ज्ञानात्मक चैनल" www.youtube.com/c/SudhirBhatiaFAKIR से जुड़ें। आपका आध्यात्मिक मित्र सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

यह सारा संसार लेना-देना लेना-देना पर ही टिका है, जिस मनुष्य ने अपने जीवन में दूसरों को देना ही अपना स्वभाव बना लिया है, तो समझ लेना कि उसके जीवन में आध्यात्मिकता का प्रवेश हो चुका है.....सुधीर भाटिया फकीर

स्मृतियाँ

 

अनुभव से सीख - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-651)-14-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य अपने स्थूल शरीर को जबरदस्ती कहीं भी बिठा सकता है, लेकिन मन को नहीं, क्योंकि मन अपने बने हुए स्वभाव का गुलाम होता है। इसीलिये हम सभी मनुष्यों को निरन्तर सत्संग करते हुए अपना स्वभाव सुधारना होगा, ताकि मन को विषय-भोगों में आवारागर्दी करने से रोका जा सके.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

एक साधारण मनुष्य द्वारा निरंतर विषय-भोगों को भोगते-भोगते मनुष्य में प्रमाद आ जाता है और फिर प्रमाद ही धीरे-धीरे आलस्य और मोह को जन्म देता है, जो मनुष्य को सत्संग करने से रोक देता है.....सुधीर भाटिया फकीर

धुंध और प्रकाश

 

मनुष्य के कर्तव्य 》लाभ-हानि - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-650)-13-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

हम सभी मनुष्यों को अपने मिले हुए जीवन के प्रत्येक पल/क्षण का सदुपयोग करना चाहिए। मनुष्य योनि में ही सेवा, सत्संग व स्वाध्याय करते हुए आध्यात्मिक उन्नति कर पाना संभव है, तभी हमारा जीवन सफल व सार्थक हो पाता है, अन्यथा एक साधारण मनुष्य का झुकाव विषय-भोगों की ओर सहज ही होता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य की अधोगति होने की संभावनाएं बढ़ने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

भौतिक प्रकृति में 84 लाख योनियों के सभी स्थूल शरीरों को कच्चे घड़े के समान ही समझो, जो कभी भी टूट सकते हैं यानी मृत्यु आ सकती है। इसलिए हम सभी मनुष्यों को मिले हुए इस स्थूल शरीर का सदुपयोग करते हुए सत्संग करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

सार्थक-निरर्थक

 

मनुष्य अपनी हार स्वयं ही लिखता है - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-649)-12-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

एक कहावत है कि जैसी मति, वैसी गति। मनुष्य योनि में ही हम अपनी बुद्धि (मति) जैसी भी बना लेते हैं, फिर वैसी ही हमारे जीवन की गतिविधियाँ यानी कर्म/ज्ञान/भक्ति होने लगती हैं और मरने पर उसी के अनुसार ही गति होती है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

गुरू या शास्त्रों का ज्ञान हम सभी मनुष्यों को जीवन का रास्ता दिखाने के लिए है। हम सभी मनुष्यों को बताये गये इन रास्तों पर चलना होगा, तभी हम परमात्मा रुपी मंजिल यानी लक्ष्य को पा सकते हैं, अन्यथा नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

सँसार अपना और परमात्मा ?

 

सँसारी चमक-दमक - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-648)-11-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मन के 5 विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार हैं, जिन पर मनुष्य योनि में ही निरंतर दीर्धकाल तक सत्सँग करते रहने से ही विजय प्राप्त की जा सकती है या सतोगुण के प्रभाव से इन्हें नियन्त्रण में रखा जा सकता है, अन्यथा यह विकार ही मनुष्यों से पाप कर्म करवाते ही रहते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

"लोग क्या सोचेंगे" अक्सर एक साधारण मनुष्य इसी बात पर ही चिंता करता रहता है, जबकि परमात्मा ने मनुष्य योनि साधना करने के लिए ही दी है, इस बात पर चिन्तन नहीं करता कि "भगवान क्या सोचेंगे", लेकिन आप अवश्य ही इस पर चिन्तन करें.....सुधीर भाटिया फकीर

त्रिगुणात्मक प्रकृति

 

सतयुग से....कलयुग का आगमन - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-647)-10-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

केवल भगवान ही अपने आप में पूर्ण सत्ता माने जाते हैं। सम्पूर्णता यानी आनंद, जोकि परमात्मा का ही एक पर्यायवाची नाम है, जबकि सँसार को अपूर्णता/अभावों/दुखों से ही जोड़ा जाता है। हम सभी मनुष्यों को अभावों की दलदल से निकलकर प्रभु को पाकर पूर्ण होना चाहिये, न कि सँसारी आकर्षणों में भटकना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सभी मनुष्यों में ही नहीं, बल्कि सभी जीवों में भी सुख पाने की प्रवृति और दुखों से निवृति की इच्छा सदा ही बनी रहती है, लेकिन सभी मनुष्यों की अपने धर्म/कर्तव्य निभाने की भी जिम्मेदारी सदा बनी रहती है, ताकि मनुष्य अपने सुख पाने के लिए अन्य किसी भी जीव को पीड़ा न दे, अन्यथा ?.....सुधीर भाटिया फकीर

मृत्यु....स्वर्गवास ?

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

जैसे प्रकाश के अभाव में अन्धकार सहज ही अस्तित्व में आ जाता है, वैसे ही सत्सँग के अभाव में मनुष्य का कुसंग सहज ही होने लगता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य के कर्म दोषपूर्ण होने की संभावनाएँ अधिक बनी रहती है.....सुधीर भाटिया फकीर

सुख मात्र एक छलावा है, क्योंकि...? - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-646)-09-10-2021

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

भौतिक प्रकृति मनुष्य योनि में ही किए गए सकाम कर्मों के आधार पर सुख/दुख रुपी फल देती है, जबकि भगवान केवल निष्काम कर्म, आध्यात्मिक ज्ञान व भक्ति के आधार पर ही कृपा करते हैं, जिसका आरंभ सत्संग करने से ही संभव हो पाता है, अन्यथा नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

जीवन एक समझौता

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

हम सभी मनुष्यों को अपने मिले हुए जीवन में स्थूल शरीर की आवश्यकताओं को सदा ही सीमा में रखना चाहिए। इन आवश्यकताओं को कभी भी भोग इच्छा मत बनने दो, अन्यथा यह भोग इच्छाएं ही हम मनुष्यों को देर-सबेर पाप कर्मों में धकेल ही देती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

कर्म-फल व्यवस्था (प्रबन्धन-बड़ा भविष्य) - (कक्षा-645) - सुधीर भाटिया फकीर - 08-10-2021

 
 

पाप-कर्म पीछा नहीं छोड़ते - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-644)-07-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

भगवान का चिंतन होने मात्र से हमारा मन सतयुग में प्रवेश कर जाता है, सतो के साथ रजोगुण का चिंतन मन को त्रेतायुग में, रजोगुण + तमोगुण का चिंतन द्वापरयुग में और केवल तमोगुण का चिंतन हमें कलयुग में ले आता है। आप किस युग में ?.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

वर्तमान जीवन में किये गये कर्मों के आधार पर ही हमारे बड़े भविष्य रुपी इमारत की नीवं रखी जाती है। यदि नीवं कमजोर है यानी पाप कर्मों से सींची गई है, तो भविष्य रुपी इमारत अवश्य ही ढह जायेगी, इस पर निरंतर चिन्तन करते रहें.....सुधीर भाटिया फकीर

अचेत योनियाँ

 

सँसार एक परिणाम दुख - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-643)-06-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य जन्म से नहीं, बल्कि वर्तमान जीवन में अपने स्वभाव, विचारों व कर्मों के आधार पर ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र बनता है और फिर मनुष्य अपने बने हुए स्वभाव के अनुसार ही प्रकृति के गुणों का करता है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सभी जीवों में सुख पाने की प्रवृति और दुखों से निवृति की इच्छा सदा ही बनी रहती है, लेकिन मनुष्य का धर्म/कर्तव्य/जिम्मेदारी बन जाती है कि मनुष्य अपने सुख पाने के लिए अन्य सभी जीवों को पीड़ा न दे, अन्यथा....?.....सुधीर भाटिया फकीर

सुख-सुविधा-स्वाद से सदा बचते रहें !

 

आध्यात्मिक उन्नति:- स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर, कारण शरीर - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-642)-05-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि में ही स्वभाव सुधरता भी है और बिगड़ता भी है, अर्थात् मनुष्य अपने जीवन में जैसा स्वभाव बना लेता है, फिर वैसे ही कर्म अपने आप होने लगते हैं. सत्संग के अभाव में अक्सर स्वभाव बिगड़ने लगता है,  इसलिए स्वयं को सदा ही सत्संग में रखना चाहिए, ताकि हमारे स्वभाव में निरंतर सुधार होता रहे अर्थात् हम पाप कर्मों से बच सकें.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

केवल मनुष्य योनि में ही सेवा, सत्संग, स्वाध्याय करते रहने से मनुष्य अपनी आध्यात्मिक उन्नति को एक गति दे सकता है, इसलिए मिले हुए जीवन का सदुपयोग करते हुए मनुष्य को सदा सेवा, सत्संग व स्वाध्याय के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए, तभी हमारा जीवन सफल व सार्थक हो.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रमाण :- शब्द ज्ञान 1%, अनुमान ज्ञान 10%, प्रत्यक्ष ज्ञान 100%

 

परमात्मा/योग《मनुष्य》भोग/प्रकृति - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-641)-04-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि में ही आध्यात्मिक उन्नति कर पाना संभव होता है, अन्य किसी भी योनि में नहीं, हमारे जीवन में सत्संग के अतिरिक्त होने वाला सभी प्रकार का संग ही कुसंग बन जाता है, जो मनुष्य से कब-कब पाप-कर्म करवा लेता है, मनुष्य को स्वयं भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर

जीवन का यूँ ही बीत जाना

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

भोगी मनुष्यों के भोगों में बाधा उत्पन्न करने वालों पर क्रोध आता है। इस क्रोध को कभी भी किसी आंधी-तूफान से कम नहीं आंकना चाहिए, क्योंकि आंधी-तूफान आते तो कम समय के लिए हैं, लेकिन नुकसान बहुत लंबे समय का कर जाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य ने क्या खोया-क्या पाया ? ऋण-बचत-शुद्ध कमाई - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-640)-03-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सृष्टि के आरम्भ में ही वेदों द्वारा ज्ञान दे दिया जाता है, कि मनुष्य को अपने जीवन में क्या-क्या करना है और क्या नहीं करना अर्थात् यह करो और यह मत करो, यानी कि विधि-विधान द्वारा कर्म करने से सुख की प्राप्ति और निषेध कर्म करने से भविष्य में दुख की प्राप्ति अवश्य ही होती है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

धार्मिक कर्मकांड भले ही लोभ से करो या भय से करो, इनका केवल इतना ही लाभ है कि मनुष्य रजोगुण में डूबने से यानी तमोगुणी पतन से अवश्य ही बच जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

भौतिक ज्ञान-आध्यात्मिक ज्ञान

 

भगवान द्वारा क्षतिपूर्ति (एक बीमा कवर) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-439)-02-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी जीवों का एक ही भगवान है और सुख की इच्छा करना सभी जीवों का स्वभाव है, लेकिन हमें अपने सुख की प्राप्ति के लिए अन्य सभी जीवों के सुख का भी ध्यान रखना होता है, अन्यथा दूसरे जीव को दुख पहुंचाते ही हमारा पाप कर्म होने से भविष्य में हमें भी दुख रूपी फल ही मिलता है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हम सभी मनुष्यों के तीन शरीर होते हैं, स्थूल, सूक्ष्म/मन-बुद्धि व कारण शरीर/स्वभाव, लेकिन अक्सर ऐसा देखा जाता है कि युवा अवस्था में होने वाले विवाह स्थूल शरीर को देख कर ही होते हैं, मन के विचार व स्वभाव हम समझ नहीं पाते, इसीलिए इनके परिणाम कोर्ट-कचहरी में देखे जा रहे हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

कर्मकाण्ड - 0 +

 

माया के रंग:- लाल, पीला, हरा - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-638)-01-10-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

एक साधारण मनुष्य का सारा जीवन अपने बने हुए लक्ष्य के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है, अब यदि हमारा लक्ष्य ही धन कमाना है, तो हमारे सभी कर्म ही नहीं, बल्कि विकर्म भी स्वाभाविक ही उसी दिशा में ही होने लगते है, जबकि परमात्मा को पाने का लक्ष्य बन जाने से कम से कम पाप कर्मों से बचने की सम्भावनायें तो प्रबल होती ही जाती हैं......सुधीर भाटिया फकीर