शास्त्रों में परमात्मा को परमचेतन और जीव को चेतन कहा गया है अर्थात् दोनों में सजातीय संबंध है। सभी आत्माएं परमात्मा का ही अंश मानी जाती हैं। इसीलिए जीव जन्म से ही परम सुख यानी आनन्द चाहता है, दुख कोई नहीं चाहता.....सुधीर भाटिया फकीर
जीवात्मा प्रकृति के 3 गुणों (सतो, रजो व तमो) की बेडियों यानी रस्सियों से बन्धा हुआ है। इन रस्सियों की पकड़ को केवल मनुष्य योनि में ही समाप्त या कमजोर किया जा सकता है, जिसका शुभारंभ सत्संग करने से ही होता है.....सुधीर भाटिया फकीर
अधिकांश मनुष्यों के जीवन में जब-जब सुख लम्बे समय तक जीवन में बने रहते हैं और मनुष्य इन सुखों को राग पूर्वक भोगता है, तब-तब इन्सान में अक्सर इंसानियत का बने रहना कुछ कठिन हो जाता है यानी मनुष्य के मन में परमात्मा की भी क्रमश: विस्मृति होने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर
कलयुग में एक साधारण मनुष्य धन कमाने में ही अपने जीवन का अधिकांश समय यूँ ही गँवा देता है, क्योंकि धन कमाने के पीछे मनुष्य का लक्ष्य पदार्थों का अधिक से अधिक भोग करने का ही होता है, जबकि भोगने वाली इंद्रियां क्रमश: शिथिल होती जाती है, इसपर कभी चिन्तन ही नहीं करता ? .....सुधीर भाटिया फकीर
सभी मनुष्यों पर कर्मफल सिद्घांत लागू होता है, जिसके फलस्वरूप सुख-दुख रूपी फल भोगने के लिये ही 84,00000 योनियो में जन्म लेना पड़ता हैं। केवल निष्काम कर्म ही मनुष्य की आध्यत्मिक यात्रा की शुरुआत करते हैं, जो अन्तत: भगवान की भक्ति आरंभ करवाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
सँसार के सभी मनुष्य भगवान को प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से मानते ही हैं, लेकिन कलयुग में भगवान को तत्व रुप से जानने का प्रयास करने वाले मनुष्य तो केवल गिनती के ही होते हैं, फिर ऐसे जिज्ञासु मनुष्यों का ही भगवान से प्रेम हो पाता है, शेष अन्य मनुष्यों का नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर
सँसारी मनुष्य अपने जीवन में एक ही गलती को अक्सर बार-बार दोहराता रहता है। जबकि भूतकाल में की गई गल्तियों से सीख लेनी चाहिए यानी वर्तमान समय में नये कर्मों में सुधार करते हुए अपना बड़ा भविष्य सवांरना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर
हम सभी मनुष्यों को मिले हुए जीवन में सतोगुण बढ़ाने के अवसर का पूर्ण लाभ उठाना चाहिए। इसीलिए शास्त्रों में भी कहा गया है कि हम सभी मनुष्यों को ब्रह्ममुहूर्त में अवश्य ही उठ जाना चाहिए, क्योंकि ब्रह्ममुहूर्त प्रकृति का एक सर्वोतम सतोगुणी समय माना जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर
मनुष्य योनि में ही हम अपनी अज्ञानता मिटा सकते हैं। ज्ञान कभी भी दिया नहीं जाता, ज्ञान सदा ही लिया जाता है और श्रद्धापूर्वक लिया हुआ ज्ञान ही मन में टिकता है, जो मनुष्य को परमात्मा की भक्ति में लगाता है। भक्ति ही हमारी शुद्ध कमाई मानी जाती है.....सुधीर भाटिया फकीर
सभी आत्माओं में परम सुख/आनन्द पाने की इच्छा बने रहना एक स्वभाव है, दुख पाने की इच्छा कभी नहीं होती, जबकि प्रकृति द्वैत है, यहां सुख-दुख दोनों ही मौजूद रहते हैं, जबकि परमात्मा ही आनन्दस्वरुप सत्ता है, जिसकी सम्मुखता बने रहने से ही आत्मा आनंदित हो सकती है, अन्यथा नहीं..... सुधीर भाटिया फकीर
जीवन में निरंतर सत्संग करते रहने का अभ्यास बनाये रखने से ही मन में ज्ञानरूपी ज्योत जलती है, जो विषय-भोगों की वासनायों को मारने लगती है और विवेक-शक्ति जगा परमात्मा से प्रीति करवाने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर
वास्तव में हम सभी मनुष्य अपने स्थूल-शरीर की इन्द्रियों से नहीं, अपितु मन और बुद्धि की प्रेरणा से ही कर्म करने को प्रेरित/बाध्य होते हैं, इसलिए हमें अपने मन+बुद्धि को सदा ही सात्विक यानी परमात्मा के चिंतन में ही लगाये रखना होगा, अन्यथा पाप-कर्म होने की सम्भावनायें बढ़ने लगती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
मनुष्य अपने जीवन में भौतिक उन्नति भी कर सकता है और आध्यात्मिक उन्नति भी। भौतिक उन्नति मरने के साथ ही समाप्त हो जाती है, जबकि आध्यात्मिक उन्नति मरने के बाद भी सुरक्षित बनी रहती है। फिर भी एक साधारण मनुष्य गलत फैसला कर लेता है.....सुधीर भाटिया फकीर
मनुष्य को अपने जीवन में निरन्तर आध्यात्मिक उन्नति करते रहने के लिए सर्वप्रथम अपने कर्तव्य-कर्मों को प्रसन्नतापूर्वक निभाते रहना चाहिए और जीवन में मिलने वाली सभी अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में भी परमात्मा की भक्ति अवश्य ही करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर
मनुष्य के 5 विकारों (काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार) को नियंत्रित करने के लिए हम सभी मनुष्यों को निरन्तर सत्संग करते रहना होगा, अन्यथा यह मन के विकार ही मनुष्यों से कितने पाप-कर्म करवाते रहते हैं, मनुष्य को स्वंय भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर
साधारणतया मनुष्य अपने स्थूल शरीर की इंद्रियों पर तो लोभ से, भय से या किसी अन्य के दबाव से नियंत्रण में ले सकता है, लेकिन कोई भी मनुष्य अपने मन पर बिना निरन्तर दीर्घकाल तक सत्संग किए नियंत्रण में नहीं ले सकता, मन पर नियंत्रण पा लेना ही मनुष्य जीवन की सार्थकता है.....सुधीर भाटिया फकीर
भौतिक प्रकृति की 84,00000 योनियों में रहने वाले असंख्य जीवों में केवल मनुष्य योनि में ही परमात्मा को जानने-समझने और पाने का एक अवसर दिया गया है, शेष अन्य किसी भी योनि में ऐसा अवसर नहीं मिलता। इसलिए मिले हुए अवसर का लाभ उठाने में ही समझदारी है.....सुधीर भाटिया फकीर
हम सभी मनुष्यों को ह्रदय से मृत्यु को स्वीकार करना ही होगा, तभी हम निष्काम भाव से कर्म करने को प्रेरित होंगे, जो हमारी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत करते हैं यानी हमारी विवेक-शक्ति जागृत कर परमात्मा का ज्ञान-विज्ञान समझाते हैं, ताकि हमारी परमात्मा से प्रीती हो.....सुधीर भाटिया फकीर
मनुष्य को धन केवल तन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही कमाना चाहिए, जबकि जीवन का मुख्य लक्ष्य सदा ही परमात्मा को पाने का रखना चाहिए और इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ही अपना समय और शक्ति का सदुपयोग करना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर
हम मनुष्यों की आध्यात्मिक यात्रा उस दिन आरंभ होती है, जिस दिन हम परमात्मा से मांगना बन्द कर देते हैं। फिर ऐसे मनुष्य वर्तमान जीवन में मिली हुई सभी अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में प्रसन्न रहते हुए अपने कर्तव्य कर्मों को भी ईमानदारी से निभाते हैं और परमात्मा का भी सदा शुक्राना ही करते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
आनंद शब्द परमात्मा के लिये ही कहा जाता है, जबकि दुखालय शब्द संसार/प्रकृति के लिए कहा जाता है, फिर भी मनुष्य अपने जीवन में अज्ञानतावश सँसार यानी प्रकृति में ही आनंद तलाश करने की भूल करता रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर
हम सभी मनुष्यों की इच्छा सदा ही सुख पाने की बनी ही रहती है कि बड़े से बड़ा सुख मिले और सुख घटे नहीं व सुखों को भोगने की हमारी इंद्रियां भी सदा जवान बनी रहे, किंतु ऐसा हो पाना संभव ही नहीं है, जबकि प्रकृति स्वयं भी प्रतिक्षण प्रलय की ओर ही अग्रसर है.....सुधीर भाटिया फकीर
हम सभी मनुष्यों के कर्म प्रकृति रूपी मिट्टी में बोये गए बीजों के समान है, जो दिनों, महीनों, सालों या अगले जन्म/जन्मों में पक जाने पर अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में सुख-दुख रूपी फल भोगने ही होते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
एक साधारण मनुष्य का मन अक्सर सत्संग के अभाव में 5 विषय-भोगों को भोगने का बना रहने की अघिक सम्भावनायें रहती हैं, जो मात्र एक अल्पकालिक अस्थाई सुख ही दे पाती है, जो अन्ततोगत्वा मनुष्य का पतन ही करवाती हैं। इस मन को केवल सात्विक बुद्धि द्वारा ही नियंत्रण में लिया जा सकता है और सात्विक बुद्धि बिना सत्संग के नहीं बनती.....सुधीर भाटिया फकीर
इस संसार में अधिकांश मनुष्य +60 हो जाने के बाद आज नहीं तो कल स्वीकार कर ही लेते हैं कि संसार के चक्रव्यूह में घुसना तो बहुत आसान है, पर इस चक्रव्यूह से निकल पाना लगभग असंभव है, लेकिन जीवन में निरन्तर सत्संग करते रहने से असंभव ही सम्भव बन जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर
एक साधारण मनुष्य प्रकृति के रजोगुणी यानी सँसारी आकर्षणों से जल्दी बन्ध जाता है, क्योंकि रजोगुण अपना असर तुरन्त दिखाने लगता है, जबकि सतोगुण यानी सत्संग अपना असर धीरे-धीरे दिखाता है, जबकि अन्ततः मनुष्य का कल्याण केवल सतोगुण में ही सम्भव हो पाता है.....सुधीर भाटिया फकीर
भगवान ही पूर्ण हैं यानी आनन्दमयी हैं, जबकि जीव अपूर्ण है यानी आनन्दरहित है और संसार अभावों यानी दुखों से ही युक्त है। मनुष्य को अभावों की दलदल से निकलकर प्रभु को पा कर पूर्ण होना है, जिसकी शुरुआत सत्संग करने से ही होती है.....सुधीर भाटिया फकीर
सुख की इच्छा करना सभी जीवों का स्वभाव है। दुख पाने की इच्छा कभी भी किसी भी जीव की नहीं होती, जबकि प्रकृति में सुख-दुख दोनों ही किये गये कर्मों के आधार पर मिलते हैं। सतोगुण में अन्ततः सुख, रजोगुण में अन्ततः दुख, तमोगुण में मोह/अज्ञानता की स्थिति में अक्सर पाप-कर्म ही अधिक होते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
कलयुग में युवावस्था में होने वाले अघिकांश विवाह स्थूल-शरीर या अन्य स्थूल स्थितियों को देख कर ही तय हो जाते हैं और अक्सर सत्संग के अभाव में, एक साधारण मनुष्य दूसरों के मन के विचारों व स्वभाव को समझ नहीं पाता, जिसके फलस्वरूप विवाह उपरांत अनचाहे परिणाम घरों/कोर्ट-कचहरी में देखे जातें हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
प्रकृति यानी माया त्रिगुणात्मक है। माया, जो हमें दिखाई तो देती है, लेकिन वास्तव में नहीं होती। त्रिगुणात्मक अर्थात् 3 गुण सतोगुण + रजोगुण + तमोगुण, जो नित्य एक क्रम में आते हैं। मनुष्य जिस गुण का अधिक संग करता है, उसी गुण का रंग ही उसका स्वभाव बन जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर.
भगवान का कर्मफल सिद्धान्त हम सभी जीवों पर लागू होता हैं, जिसके अनुसार कोई भी जीवात्मा केवल अपने मनुष्य योनि में ही किए गए कर्मों का फल खा/भोग सकता है, यदि कोई मनुष्य अन्य किसी जीव का हिस्सा खाता है, तो प्रकृति रुपी अदालत उसे दंड दिए बिना नहीं छोड़ती.....सुधीर भाटिया फकीर
जैसे फलों का राजा आम है, फूलों का राजा गुलाब है, वैसे ही 84,00000 योनियों में मनुष्य योनि को राजा योनि ही मानो और परमात्मा रुपी मंजिल को पाने के लिए साधना करो, नांकि भिखारियों की तरह संसारी पदार्थों को कमाने, छीनने में ही मिले हुए अनमोल अवसर को मत गँवाओ, अन्यथा ?.....सुधीर भाटिया फकीर
संसार में सभी मनुष्य अपनी ही बात को ऊपर रखना चाहते हैं यानी अपना ही ढोल पीटना चाहते हैं यानी अपनी ही सत्ता चाहते हैं, इसी प्रक्रिया में मनुष्य स्वयं को सफल करने मे दूसरे मनुष्यों को असफल करता हुआ कितने अधिक पाप-कर्म कर जाता है, मनुष्य को पता ही नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर
शास्त्रों में भौतिक प्रकृति को स्वभाव से ही अन्धकारमयी बताया गया है। यहाँ के मिलने वाले सभी सुख अल्पकालिक यानी अस्थाई ही होते हैं, फिर भी एक साधारण मनुष्य सत्संग के अभाव में व संसार की चकाचौंध के प्रभाव से इन अस्थाई सुखों को भोगने के लिए दिन-रात मेहनत करता हुआ कर्म ही नहीं, पाप-कर्म भी कर स्वयं ही अपना बड़ा भविष्य बर्बाद कर लेता है.....सुधीर भाटिया फकीर
कर्म व ज्ञान दोनों ही बिना योग के भौतिक ही बने रहते हैं, जो मनुष्य को संसारी गतिविधियों में ही उलझाये रखती हैं, जबकि भक्ति अपने आप में ही अभौतिक होने के कारण परमात्मा से जोड़ती है, इसलिए कर्म व ज्ञान के साथ योग जोड़ें, ताकि यह कर्मयोग व ज्ञानयोग बन जायें.....सुधीर भाटिया फकीर
कर्म व ज्ञान दोनों ही बिना योग के भौतिक ही बने रहते हैं, जो मनुष्य को संसारी गतिविधियों में ही उलझाये रखती हैं, जबकि भक्ति अपने आप में ही अभौतिक होने के कारण परमात्मा से जोड़ती है, इसलिए कर्म व ज्ञान के साथ योग जोड़ें, ताकि यह कर्मयोग व ज्ञानयोग बन जायें.....सुधीर भाटिया फकीर
मनुष्य योनि में सत्संग करने के अवसर को नहीं गवांना चाहिए, क्योंकि निरंतर सत्संग करते रहने से ही सतोगुण मन में टिकने लगता है, जिसके फलस्वरूप विवेक शक्ति जगने से रजोगुण व तमोगुण की भौतिक छाया मरने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर
5 भोग विषयों का निरंतर मन में चिंतन होते रहने से उन भोगों को भोगने की कामना प्रबल होने लगती है। फिर मनुष्य उन कामनाओं की पूर्ति के लिए प्रयास करता है, फिर इसी प्रक्रिया में ही मनुष्य से कब पाप कर्म हो जाते हैं, मनुष्य को स्वंय भी पता नहीं चलता, जो भविष्य में हमारे दुख का कारण बनते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
संसार में विषय-भोगों का कोई अन्त नहीं है। सभी कामनायें कभी किसी भी मनुष्य की पूरी नहीं होती, जो पूरी हो गई, उनसे मोह हो जाता है और जो नहीं पूरी हुई, उनपर क्रोध की स्थितियां बनने से अक्सर पाप कर्म होने की सम्भावनायें बनी रहती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
परमात्मा की सत्ता भौतिक प्रकृति के कण-कण में विद्यमान है यानी परमात्मा की शक्ति सर्वव्याप्त है, फिर भी सत्संग के अभाव में एक साधारण मनुष्य के मन में ऐसी श्रद्धा दृढ़ नहीं होती। फिर ऐसे लोगों को दुख की बड़ी चोट ही परमात्मा की सहज याद कराती है, जबकि परमात्मा तो परम दयालु हैं और परमात्मा सभी मनुष्यों/जीवों से सदा ही प्रेम करते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
हमारा-आपका मिला हुआ जीवन परमात्मा का दिया हुआ एक उपहार व अवसर है। सत्संग करते हुए इस मिले हुए अवसर का लाभ उठायें यानी और अधिक सवारें, न कि कुसंग करते हुए बिगाड़ने में जीवन गवायें.....सुधीर भाटिया फकीर
सभी मनुष्यों को अपने जीवन में धार्मिक कर्मकांड भी करते रहना चाहिए, क्योंकि यह परमात्मा से जोड़ने में सहायक होते हैं, भले ही यह एक आरंभिक शुरुआत होती है, हालाँकि 99% लोग इन कर्मकांडों को भय या लोभ से ही करते हैं, ज्ञानपूर्वक नहीं करते, फलस्वरूप अधिकांश लोग यहीं रुके रह जाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
परम-सुख पाने की इच्छा करना आत्मा का एक स्वभाव माना गया है, लेकिन सत्संग के अभाव में मनुष्य गलती से विषय-भोगों को पाने की इच्छा कर लेता है और यह इच्छाएं मनुष्य के मरते समय तक भी समाप्त नहीं होती.....सुधीर भाटिया फकीर
हम सभी मनुष्यों को यह बात पक्के तौर पर याद रखनी ही चाहिए कि जब-जब हम अपने सुख के लिये अन्य मनुष्यों को या प्रकृति के अन्य जीवों को भी दुख/पीड़ा देते है, तो भविष्य में हमें भी दुख रुपी फल भोगने के लिए नीचे की योनियो में जाने की संभावनाएँ बड़ने लगती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
संसार में लगभग सभी मनुष्य अपना जीवन चिंताग्रस्त ही व्यतीत करते हैं, क्योंकि मनुष्य अपने जीवन में उस भगवान का चिंतन ही नहीं करता, जबकि संसार की सभी चिन्तायें अज्ञानता के कारण ही होती हैं, फिर भी मनुष्य सत्संग नहीं करता.....सुधीर भाटिया फकीर
माता सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त स्वर मल्लिका लता जी के संसार को छोड़कर जाना हम सभी भाई-बहनों के लिये एक दुखद स्थिति है, लेकिन उनके द्वारा गाये गये सभी भजन रूपी गीत सदा हमारे अन्दर एक सात्विक ऊर्जा प्रदान करते रहेंगे। भगवान से हम सभी की विनती है कि आगे की यात्रा में भी भगवान का आशीर्वाद उनपर सदा बना रहे.....सुधीर भाटिया फकीर
मनुष्य को अपने जीवन में मिले हुए पदार्थों का कुछ अनुपात दूसरे जीवों को खिलाने में अवश्य ही रखना चाहिए, क्योंकि देने में ही सुख की अनुभूति होती है और दूसरों से सुख लेने में ग्लानि व शर्म महसूस होनी चाहिए, तभी मनुष्य का सतोगुण तेजी से बढ़ता हुआ हमारी आध्यात्मिक यात्रा आरंभ करवाता है, अन्यथा एक साधारण मनुष्य का सारा जीवन यूँ ही व्यर्थ चला जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर
अक्सर सुख ढोल-नगाड़े बजाते हुए आते हैं, जबकि दुख बिना बुलाए ही आते हैं, लेकिन एक समय के बाद सुख-दुख दोनों ही चुपचाप चले जाते हैं, क्योंकि सुख-दुख दोनों ही हमारे-आपके द्वारा किये हुए कर्मों का ही फल होते हैं, किसी अन्य का नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर
"बसन्त-पंचमी" यानी "ज्ञान की देवी माँ सरस्वती देवी" के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करते हुए आप सभी भाई-बहनों को भी बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनायें। इसी दिशा में आप सभी भाई-बहनों का "आध्यात्मिक ज्ञानात्मक चैनल" www.youtube.com/c/SudhirBhatiaFAKIR से जुड़कर अपने जीवन को अनुशासित, व्यवस्थित, सात्विक व विवेकपूर्वक बनाने हेतू बहुत-बहुत स्वागत है। आपका आध्यात्मिक मित्र सुधीर भाटिया फकीर
प्रकृति की सभी योनियो के सभी जीव जीने की निश्चित सांसें ले कर आते हैं, जो जन्म के साथ ही घटती जाती हैं अर्थात् हमारी मृत्यु नजदीक आती जा रही है यानी हम सभी मनुष्यों का भी कर्म-ज्ञान व भक्ति करने का समय निरन्तर हमारे हाथ से फिसलता जा रहा है। इसपर मनुष्य चिन्तन ही नहीं करता.....सुधीर भाटिया फकीर
जीवन में निरंतर सत्संग करते रहने से ही मन में सात्विक स्थितियां बनने लगती है, जिसके परिणामस्वरूप विषय भोगों की वासनायें मरने लगती है और विवेक शक्ति जगने लगती है, जो परमात्मा से प्रीति करवाती है.....सुधीर भाटिया फकीर
केवल मनुष्य योनि में ही परमात्मा ने कर्म करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की है, इस मिली हुई स्वतंत्रता यानी अधिकार का मनुष्य को सदा सदुपयोग करना चाहिए, अन्यथा इन शक्तियों का दुरुपयोग होने से मनुष्य की अधोगति यानी निम्न योनियों में जन्म लेने की सम्भावनायें प्रबल होने लगती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
कलयुगी मेले की चकाचौंध में अक्सर एक सामान्य मनुष्य विषय-भोगों में ही लिप्त रहता हुआ यानी इन भोग-विषयों में फिसल कर परमात्मा को ही भूल जाता है, इसलिए जीवन में सदा सत्संग करते रहिये, ताकि परमात्मा की स्मृति बनी रहे.....सुधीर भाटिया फकीर
मनुष्यों के सभी सकाम कर्म-विकर्म लिखे जाते हैं और एक समय अंतराल के बाद पदार्थ रूपी फल दे कर नष्ट भी हो जाते हैं, जबकि किये गये निष्काम कर्म आध्यात्मिक ज्ञान रूपी फल देते हैं, जो मनुष्य का संसार से वैराग्य और परमात्मा से प्रीति का बीज डालते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
मनुष्य को सत्सँग का तब पूर्ण लाभ यानी + तभी मिलता है, जब मनुष्य श्रद्धापूर्वक सत्सँग करता है। जबकि बेमन से सत्सँग होने पर भी मनुष्य -/धाटा से तो बच ही जाता है, हालाँकि उसके जीवन विशेष में कोई सकारात्मक परिवर्तन नहीं आता.....सुधीर भाटिया फकीर
हम सभी भाई-बहन अनुभव कर ही सकते हैं कि हमारे जीवन में जैसे-जैसे सुख-सुविधा के साधनों में वृद्घि हुई है, वैसे-वैसे ही हमारे जीवन में नई-नई समस्याओं ने भी जन्म लिया है, जिनके फलस्वरूप हम सभी मनुष्यों के जीवन में दुख, क्लेश, अशान्ति बढ़ती जा रही है, इसपर एकांत में चिन्तन करें.....सुधीर भाटिया फकीर
एक साधारण मनुष्य सुखों की वर्षा में नहाते समय परमात्मा की मौजूदगी को पसंद नहीं करता यानी सुखों को भोगने में अक्सर लोग परमात्मा को भूल जाते हैं। शादी समारोह में अक्सर DJ पर ऐसी ही स्थितियां देखने को मिलती है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य के कर्म बिगड़ जाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
सृष्टि के आरम्भ में सतो + रजो + तमो गुणों का ही 23 तत्वों में विस्तार होता है। हमारे जीवन में हर रोज इन 3 गुणों के आने-जाने का एक निश्चित क्रम है, लेकिन परमात्मा से प्रीति तभी ही हो पाती है, जब मनुष्य सतोगुण का अधिक संग करता है, अन्यथा नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर