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Showing posts from July, 2021

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सभी मनुष्यों को आज नहीं तो कल, इस बात को स्वीकार करना ही पड़ता  है, कि संसार के चक्रव्यूह में घुसना तो बहुत आसान है, पर इस चक्रव्यूह से निकल पाना बहुत ही कठिन है, लेकिन फिर भी असंभव नहीं है.....सुधीर भाटिया फकीर

ज्ञान द्वारा जीवन दिशा

 

भगवान:- शब्द ज्ञान, अनुमान ज्ञान, प्रत्यक्ष ज्ञान - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-574)-31-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

केवल मनुष्य योनि में ही परमात्मा को जानने की जिज्ञासा कर पाना संभव है, अन्य किसी भी योनि में यह अवसर ही नहीं है। सत्संग करते-करते जितने-जितने अंश में हमारी अज्ञानता मिटती जाती है, फिर उतने-उतने अंश में मूल ज्ञान प्रकट होता जाता है। पूर्ण तत्वज्ञान हो जाने पर मनुष्य को केवल आनंद पाने की ही इच्छा बनी रहती है.....सुधीर भाटिया फकीर

सत्सँग: तन, मन, आत्मा

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

जिंदगी का सफर भले ही जन्म के साथ आरंभ हो जाता है, लेकिन आध्यात्मिक यात्रा उसी दिन ही आरंभ होती है, जब मनुष्य अपने जीवन के व्यवहार में निरंतर सात्विकता बनाये रखता है.....सुधीर भाटिया फकीर

परिस्थिति-मनस्थिति

 

सुखों में टकराव-दुखों में मेल - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-573)-30-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी मनुष्यों के स्थूल शरीर यानी तन की आवश्यकताएँ सदा ही सीमित होती है, लेकिन मन में भोग की इच्छाएं असीमित बनती जाती है, जिनकी पूर्ति के लिए ही अक्सर मनुष्य कर्म ही नहीं, विकर्म यानी पाप कर्म भी कर अपना जीवन बिगाड़ लेता है.....सुधीर भाटिया फकीर

कर्मों की श्रंखला.....फिर एक स्वभाव को जन्म देती है

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

तन को संसार में हिलाते रहने से यानी कर्म करते रहने से हमारा स्थूल शरीर स्वस्थ रहता है, जबकि सत्संग में मन को टिकाने से मन स्वस्थ रहता है, लेकिन मनुष्य दोनों ही कार्यों से अपने तन और मन को चुराता रहता है और फिर स्वयं ही दुखी होता है.....सुधीर भाटिया फकीर

आत्मा: पुण्यात्मा/पापात्मा

 

क्रोध से अवश्य बचें ! अन्यथा ? - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-572)-29-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

जीवन में निरंतर सत्संग करते रहने से ही हमारे अन्तकरण में शुभ-संस्कार बनने आरंभ होते हैं और पूर्व के बने हुए अशुभ संस्कार धीरे-धीरे मिटने/कमजोर होने लगते हैं, जिससे हमारे नए कर्मों में निष्कामता आने लगती है और प्रभु-भक्ति का बीज अंकुरित होता है, जिससे हमारी आध्यात्मिक यात्रा गति पकड़ लेती है.....सुधीर भाटिया फकीर

लेना-देना

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मनुष्य योनि में ही आध्यात्मिक यात्रा/साधना करने का एक अवसर है। मनुष्य मरते दम तक जितनी आध्यात्मिक यात्रा कर लेता है। यह आध्यात्मिक उन्नति अगले मनुष्य योनि में भी सुरक्षित बनी रहती है, अर्थात् की गई आध्यात्मिक यात्रा कभी भी बेकार नहीं जाती.....सुधीर भाटिया फकीर

बुढ़ापा एक चेतावनी

 

परिस्थितियों का प्रभाव - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-571)-28-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

वास्तव में सभी मनुष्य अपने शरीर की इन्द्रियों से नहीं, अपितु मन और बुद्धि की प्रेरणा से ही कर्म करते हैं. इसलिए हमें अपने मन और बुद्धि को सदा ही परमात्मा के चिंतन में लगाए रखना चाहिए यानी सत्संग में लगाये रखना चाहिए, ताकि हमारी स्थूल इंद्रियां सदा ही सभी जीवों के कल्याण के लिए कर्म करें, न कि केवल स्वयं के भोग के लिए.....सुधीर भाटिया फकीर

सूर्य और प्रभु का इन्तजार

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सभी आत्माएं परमात्मा का ही अंश है। सभी जीव जन्म से ही सुख चाहते हैं, दुख कोई नहीं चाहता. इसलिए हम मनुष्य जैसा व्यवहार स्वयं के लिए नहीं चाहते, वैसा व्यवहार हमें भूल कर भी अन्य जीवों के प्रति नहीं करना चाहिए। यही हमारा धर्म है.....सुधीर भाटिया फकीर

मन की खिड़कियाँ (INTERNET)

 

मान्यता की कसौटी - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-570)-27-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि में ही किये गये सभी सकाम भाव के कर्म-विकर्म लिखे जाते हैं। सकाम कर्म केवल पदार्थ रूपी फल दे कर नष्ट हो जाते हैं, जबकि निष्काम कर्म आध्यात्मिक ज्ञान रूपी फल देते हैं, जो संसार से वैराग्य और परमात्मा से प्रीति का बीज डाल देते हैं। यह बीज पहले अंकुरित होता है, फिर एक दिन वृक्ष का रूप धारण कर मनुष्य को आनंद रूपी फल देते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

शुभ-संस्कार

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

केवल मनुष्य योनि में ही हम परमात्मा का ज्ञान अर्जित कर सकते हैं, अन्य किसी भी योनि में नहीं अर्थात् हमें अपने जीवन में मरते दम तक ज्ञानरूपी प्रकाश अवश्य ही लेते रहना चाहिए, ताकि परमचेतन परमात्मा से जुड़ा जा सके......सुधीर भाटिया फकीर

कर्म-वृति-संस्कारों का चक्र

 

गल्तियों में सुधार (आत्म निरीक्षण) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-569)-26-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

संसार को सही-सही जानने-समझने के लिए बुद्धि की विशेष जरूरत होती है, जो स्कूल-कॉलेज में जा कर क्रमश: विकसित होती जाती है, जबकि दूसरी ओर परमात्मा को जानने-समझने और पाने के लिए विवेक शक्ति चाहिए, जो केवल निरंतर सत्संग करने से ही जागृत होती है.....सुधीर भाटिया फकीर

सतोगुण-मनुष्य या भोग/रजोगुण+तमोगुण

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सभी वैदिक शास्त्र हम सभी मनुष्यों के कल्याण के लिए ही हैं। शास्त्रों में एक-एक शब्द तौल-तौल कर ही लिखा गया है। इन शब्दों के अर्थ जान कर ही परमात्मा से जुड़ना सम्भव हो पाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

नींद कितने घंटे की लेनी चाहिए ?

 

मनुष्य का आर्थिक लक्ष्य - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-568)-25-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी मनुष्यों को अपने जीवन में सदा सत्सँग करते रहना चाहिए, क्योंकि ज्ञान लेने से ही शिक्षा/संदेश यानी प्रेरणा मिलती है, जैसे गुटखा, सिगरेट, शराब हमारी सेहत के लिए ही हानिकारक नहीं है, बल्कि इनके गहरे परिणाम जान लेने पर इन बुराईयों से सहज ही वैराग्य होने लगता है.....सुधीर भाटिया फकीर

भगवान द्वारा क्षतिपूर्ति

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सभी मनुष्यों के स्थूल शरीर एक दिन मृत्यु को अवश्य प्राप्त होते हैं। यदि मनुष्य अपने जन्म और मृत्यु पर ही गहरा चिन्तन करता जाए, तो जीवन का अर्थ अपने आप ही समझ में आ जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

सामान्य मृत्यु या दुर्घटना से मृत्यु

 

सोना-सोना - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-567)-24-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि पा कर हमें संसारी आकर्षणों की वर्षा में नहाने से सदा ही बचना होगा अर्थात् रजोगुणी भोगो में गहरे तल पर कभी नहीं उतरना चाहिए, अन्यथा सतोगुण का पकड़ा हुआ हाथ कब छूट जाता है, हमें स्वयं को भी पता नहीं चलता, इसलिए अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से सत्संग करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

जैसा संग- वैसा रंग

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

भौतिक प्रकृति परमात्मा की एक ऐसी व्यवस्था है कि सभी मनुष्यों द्वारा मनुष्य योनि में किये हुए पाप-पुण्य कर्मों का दुख-सुख रुपी फल आना निश्चित बना रहता है। संसार के सुख रुपी फलों को भोग कर आज तक किसी भी मनुष्य का कल्याण नहीं हुआ और न ही भविष्य में कभी कल्याण हो सकेगा.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रथम सत्य....भगवान, अन्तिम सत्य....मृत्यु

 

जब जागो, तभी सबेरा - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-566)-23-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सँसार में अक्सर ऐसा देखा जाता है कि एक साधारण मनुष्य अपने जीवन में एक ही गलती को बार-बार दोहराता रहता है। हम सभी मनुष्यों को अपने जीवन के भूतकाल में की गई गल्तियों से सीख लेनी चाहिए और वर्तमान समय में नये कर्मों पर सुधार करते रहना चाहिए, ताकि हमारा बड़ा भविष्य बिगड़ने से बच जाये, अन्यथा ?.....सुधीर भाटिया फकीर

आनन्द (स्थायी सुख)-भौतिक सुख (अस्थायी)

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

भोग-विषयों का निरंतर मन में चिंतन बने रहने से ही कामनायें जन्म लेती है, सभी कामनाएं कभी पूरी नहीं होती, जो पूरी हो गई, उनसे मोह व लोभ की उत्पत्ति होती है और बाधा डालने वाले पर क्रोध, यानी यह भोग ही मनुष्य का पतन करवाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य के मरने के बाद का अगला जन्म

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

हम सभी मनुष्यों को मनुष्य योनि अपने सतोगुण में वृद्घि करने यानी आध्यात्मिक उन्नति करने के लिए ही मिली है और यह तभी संभव हो पाता है, जब मनुष्य अपने जीवन में अपने कर्तव्यों को प्रसन्नतापूर्वक निभाते हुए परमात्मा का चिन्तन करता रहता है, अन्यथा नहीं ?.....सुधीर भाटिया फकीर

परमात्मा के दिव्य गुण - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-565)-22-07-2021

 

क्या जन्मदिन मनाना चाहिए ?

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

भौतिक प्रकृति में रहने वाले असंख्य जीवों में केवल मनुष्य योनि में ही परमात्मा को जानना-समझना और पा लेना सम्भव है, अन्य किसी भी योनि में नहीं। इसलिए मिले हुए अवसर का सदुपयोग करते हुए अपने जीवन में सत्सँग करते हुए इस दिशा की ओर बढ़ते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

भक्ति: साधना, भावना, प्रेम

 

प्रकृति तो द्वैत ही है - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-564)-21-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी मनुष्यों को मन से स्वीकार करना चाहिए, कि जीवन में मिली हुई सभी अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियां यानी मिलने वाले सुख-दुख हमारे द्वारा ही किए गए कर्मों का ही फल हैं, किसी अन्य दूसरे-तीसरे मनुष्य का नहीं। हम सभी मनुष्यों को आध्यात्मिक उन्नति करने के लिए जीवन में अपने कर्तव्यों को प्रसन्नतापूर्वक निभाते हुए परमात्मा का चिन्तन करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

ज्ञानरुपी ज्योत

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हम सभी मनुष्य निश्चित सांसें लेकर ही जन्म लेते हैं यानी हर साँस के साथ हमारा मिला हुआ जीवन छोटा होता जा रहा है यानी भक्ति करने का समय भी हाथ से फिसलता जा रहा है.....सुधीर भाटिया फकीर

एकान्त की खोज

 

प्रथम स्वयं में सुधार - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-563)-20-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य के 5 विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार ही हम मनुष्यों से प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से पाप कर्म करने को बाध्य करते हैं, लेकिन निरन्तर सत्संग करते रहने से ही मन के विकार दूर होने आरम्भ होते हैं, जिसके फलस्वरूप हमारा स्वभाव शुद्ध होने लगता है.....सुधीर भाटिया फकीर

दिशा परिवर्तन से दशा में सुधार

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

एक साधारण मनुष्य अपने शरीर की इंद्रियों पर तो लोभ/भय या किसी दबाव से नियंत्रण में अस्थायी रूप से ही लिया जा सकता है, लेकिन कोई भी मनुष्य अपने मन को बिना सत्संग किये स्थायी रूप से नियंत्रण में नहीं ले सकता.....सुधीर भाटिया फकीर

मन की ऊँची-नीची स्थितियाँ - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-562)-19-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि पाकर हमें अपने जीवन में निरंतर श्रद्धापूर्वक सत्संग करना चाहिए, अर्थात् अपना सुनना इतना गहरा बनाओ, ताकि हमारी सोयी हुई विवेक शक्ति जाग जाए, ताकि परमात्मा का रस/आनंद पीने को मिल जाए और हमारा संसारी विषय-भोगों के प्रति सहज ही वैराग्य उत्त्पन्न हो जाये, अन्यथा ?.....सुधीर भाटिया फकीर

अपनी दिनचर्या सुधारें

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

इस संसार को सही-सही जान लेने पर सहज ही संसार से वैराग्य होता है, जबकि संसार से वैराग्य हुए बिना परमात्मा से मनुष्य की एक साधारण हाय-हैलो यानी एक साधारण शिष्टाचार ही रहता है, कोई प्रेम नहीं हो पाता.....सुधीर भाटिया फकीर

ज्ञान और जानकारी में भेद

 

आनन्द प्राप्ति की इच्छा करना आत्मा का स्वभाव है - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-561)-18-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

भौतिक प्रकृति की 84,00000 में रहने वाली सभी असंख्य आत्माओं को भी परमात्मा ने अलग-अलग आधार नंबर प्रदान किये गये हैं (केवल समझाने के लिए), जिसके अन्तर्गत केवल मनुष्य योनि में ही किए गए व्यतिगत पाप-पुण्य कर्मों का लेखा-जोखा लिखा जाता है, पुण्य कर्मों के फलों को त्यागा जा सकता है, लेकिन पाप कर्मों का फल तो हमें भोगना ही पड़ता है.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य योनि एक बन्धन या मोक्ष

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

स्थूल शरीर के रिश्ते जन्म के साथ ही बनते हैं और मृत्यु होने के साथ ही समाप्त हो जाते है, लेकिन आत्मा-परमात्मा का सजातीय संबंध है, इसलिए संबंध टूटने का तो प्रश्न ही नहीं उठता.....सुधीर भाटिया फकीर

धन-तन-मन

 

परीक्षा के अन्तिम 30 मिनट (बुढ़ापा) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-560)-17-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सत + चित + आनंद = सच्चिदानंद, जो केवल भगवान के लिए ही कहा जाता है, जबकि प्रकृति केवल सत्य है यानी चित + आनंद रहित है, जबकि जीव चित यानी चेतन है, लेकिन आनंद रहित है। इसलिए आत्मा में सदा सुख की ही इच्छा होती है, दुख की कभी इच्छा नहीं होती..... सुधीर भाटिया फकीर

विधि-विधान और निषेध

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सत्संग करते-करते मनुष्य के जीवन में जितने-जितने अंश में अज्ञानता मिटती जाती है, उतने-उतने अंश में मूल ज्ञान अपने आप ही प्रकट होता जाता है और उतने ऊंचे अंश में सुख की इच्छा बनती जाती है। पूर्ण तत्वज्ञान हो जाने पर केवल आनंद को पाने की ही इच्छा बनती है.....सुधीर भाटिया फकीर

शीशे में प्रतिबिम्ब एक भ्रम

 

स्वार्थ:- स्वार्थ-स्वार्थ - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-559)-16-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी जीवों के 3 शरीर होते हैं। स्थूल, सूक्ष्म व कारण शरीर। हम सभी मनुष्यों के स्थूल शरीर/तन हर वक्त बूढ़े होते जाते हैं और एक दिन समाप्त भी हो जाते हैं, यही प्रकृति का एक नियम है, जबकि हमारे सूक्ष्म शरीर यानी मन-बुद्धि में भोगों की कामना कभी बूढ़ी नहीं होती, जो नये जन्म का आधार/कारण बनती हैं......सुधीर भाटिया फकीर

घड़ी की सुईयों से प्रेरणा

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सभी शुभ कर्म हमें परमात्मा के क्रमश नजदीक लाते जाते हैं, जबकि सभी अशुभ कर्म यानी पाप कर्म हमें परमात्मा से दूर करते जाते हैं। अब हम स्वयं ही फैसला कर सकते हैं कि हमारे कर्म किस दिशा में हो रहे हैं ?.....सुधीर भाटिया फकीर

स्वर्ग में नरक

 

काल का ग्रास - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-558)-15-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि में ही मनुष्य अपने जीवन में भौतिक उन्नति भी कर सकता है और आध्यात्मिक यात्रा यानी साधना करता हुआ आध्यात्मिक उन्नति भी कर सकता है, लेकिन भौतिक उन्नति मरने के साथ ही समाप्त हो जाती है, जबकि आध्यात्मिक उन्नति मरने के बाद भी सुरक्षित बनी रहती है, अब फैसला आपके हाथ में है ?.....सुधीर भाटिया फकीर

जीवन झूला

 

जन्मदिन-जन्म रात

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

दाल-रोटी की इच्छा करना शरीर की एक आवश्यकता है, लेकिन मलाई-कोफ्ता, रायता, अचार, पापड़, कुल्फ़ी आदि की चाह रखना ही इच्छा बन जाता है, लेकिन यह इच्छाएं देर-सबेर मनुष्य से पाप कर्म करवाती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

भगवान, आत्मा, प्रकृति (विकारी)-सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-557)-14-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मन कभी भी खाली नहीं बैठ सकता, यदि यह मन सत्संग में जाकर नहीं टिकता, तो इस मन को भोगों की गलियों में जाने से रोकना कठिन हो जाता है। इसलिए इस मन को जबरदस्ती सत्संग में लगाने का निरन्तर अभ्यास करते रहना चाहिये.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

परमात्मा हम सभी मनुष्यों को सदा धर्म मार्ग पर चलने की शिक्षा देते रहते हैं, लेकिन मनुष्य ज्ञान को सुनने तक ही सीमित रखता है, उसे अपने जीवन के व्यवहार में नहीं लाता। इसीलिए मनुष्य के कर्मों में सुधार नहीं आ पाता.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रकाश एक रास्ता

 

संस्कारों से कर्मों की यात्रा - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-556)-13-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

भौतिक ज्ञान की प्राप्ति से सुख-सुविधा-स्वाद आदि पदार्थों को खरीदा तो जा सकता है। इसीलिए एक माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल-कालेज भेज देते हैं, लेकिन आध्यात्मिक ज्ञान, जो केवल निरन्तर सत्संग करने से ही मिलता है, जिसको लिये बिना सुख रुपी शान्ति कभी नहीं मिल सकती, मनुष्य इसपर कभी विचार ही नही करता ?.....सुधीर भाटिया फकीर

सतोगुण/+ कमाई, रजोगुण/0 खर्चा, तमोगुण/- ऋण

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

संसार में अक्सर ऐसा देखा जाता है कि एक साधरण इन्सान के जीवन में जब अधिक ऊंचे सुख अधिक समय तक बने रहते हैं, तो इन्सान में इंसानियत कमजोर पड़ने की संभावनाएं बढ़ने लगती हैं। इसलिए जीवन में मिलने वाले दुखों को भी सदा आदर भाव से ही देखना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

जीवन एक गणित की किताब

 

संयोग-वियोग और त्याग - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-555)-12-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रकृति में 3 गुण सतो, रजो व तमो नित्य यानी हर पल मौजूद रहते हैं, फिर यह गुण एक क्रम में प्रधान, गौण, अति गौण रूप में आते-जाते रहते हैं. सूर्य के डूबते ही तमोगुण अपनी प्रधान अवस्था से आरंभ होना शुरू कर देता है, फिर सतोगुण और फिर रजोगुण. इनका आने का क्रम कभी नहीं बदलता, हम मनुष्य जिस-जिस गुण का जितना-जितना संग करते हैं, उस गुण का उतना-उतना रंग यानी असर यानी प्रभाव हमारे जीवन में सहज ही पड़ता जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य योनि एक अधिकार व अवसर

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

प्रकृति के 3 गुणों में सतो, रजो व तमो नित्य बने रहने के बावजूद भी इन गुणों में आने का एक क्रम बना रहता है, लेकिन इन तीनों गुणों में एक गुण प्रधान, दूसरा गौण और तीसरा अति गौण रूप में रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर

सूर्य की शिथिलता

 

पुण्य कर्मो द्वारा पाप कर्म समाप्त नहीं होते - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-554)-11-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी जीवों का परम सुख यानी दुख रहित सुख यानी आनन्द पाने की इच्छा बने रहना स्वभाव है, जैसाकि हम सभी जानते हैं, कि इच्छा केवल सुख की ही होती है, दुख की कभी इच्छा नहीं होती. प्रकृति द्वैत है, यानी यहां सुख दुख दोनों मौजूद रहते हैं, जबकि परमात्मा ही केवल आनन्द स्वरुप एक सत्ता है, जिसकी सम्मुख्ता बने रहने से ही आत्मा भी आनंदित हो सकती है, अन्यथा नहीं..... सुधीर भाटिया फकीर

मैं यानी आत्मा और मेरा यानी शरीर

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मनुष्य लाख कोशिशें भी कर ले, तब भी इस संसार को पूर्ण रूप से पाया नहीं जा सकता, दूसरी ओर लाख नहीं करोड़ों कोशिशें भी कर लो, परमात्मा को खोया भी नहीं जा सकता, हां, भुलाया अवश्य जा सकता है.....सुधीर भाटिया फकीर

नींद कितने घंटे की लेनी चाहिए ?

 

भोजन की भूख ! सत्सँग की भूख ? - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-553)-10-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी आत्माएं स्वभाव से ही ज्ञानवान बताई जाती हैं, लेकिन प्रकृति के पदार्थों का मर्यादा से अधिक भोगने से हमारी आत्मा का ज्ञान आवृत हो जाता है और यह आवरण केवल और केवल निरंतर सत्संग करते रहने से ही समाप्त हो पाना संभव है, जबकि सत्संग करने का एकमात्र अवसर केवल मनुष्य योनि में ही मिलता है....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य और अन्य जीवों का आश्चर्यचकित अनुपात (कक्षा-157)

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मनुष्य योनि कर्म-योनि है, इसीलिये वेद/शास्त्रों में बार-बार इस बात को बताया गया है कि मनुष्यों को अपने जीवन में क्या-क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना है यानी विधि-निषेध। विधि यानी पुण्य कर्म और निषेध यानी पाप कर्म.....सुधीर भाटिया फकीर

जप : तन, मन, आत्मा

 

पृष्ठभूमि पर चिन्तन - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-552)-09-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रत्येक मनुष्य/जीव स्वाभाविक ही अनादिकाल से सदा ही दुखरहित सुख यानी आनंद की तलाश में ही प्रयत्नशील रहता है। यह आनंद केवल और केवल परमात्मा को पाकर ही मिलेगा और यह तभी संभव हो सकता है, जब मनुष्य अपने जीवन में सतोगुण का संग अधिक से अधिक करता हुआ आध्यात्मिक यात्रा आरम्भ करता है, उससे पूर्व नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

आत्म-जागरण

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सँसार में अक्सर ऐसा देखा जाता है कि अधिकांश मनुष्यों में उम्र बढ़ने के साथ-साथ मन के विकार भी बढ़ने लगते हैं। यह विकार ही ऐसे छेद हैं, जिनसे किया गया सत्संग प्रभावहीन होता जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

क्रोध की कुल्हाड़ी'( कक्षा-180 )

 

सीमित आवश्यकतायें - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-551)-08-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

अक्सर ऐसा देखा जाता है कि जीवन में मिलने वाले सभी सुख ढोल-नगाड़े बजाते हुए आते हैं, लेकिन एक समय के बाद चुपचाप बिना बताये ही चले जाते हैं, दूसरी ओर मिलने वाले दुख भले ही बिना बुलाए आते हैं, लेकिन एक समय के बाद सभी दुख भी चुपचाप चले जाते हैं, वास्तव में सुख-दुख दोनों ही हमारे-आपके द्वारा किये हुए कर्मों का ही फल होते हैं, किसी दूसरे-तीसरे का नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

धन की यात्रा से धर्म की यात्रा की ओर यू टर्न-(कक्षा-155)

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

प्रत्येक यन्त्र की क्रिया के पीछे एक कर्ता होता है, जो सदा चेतन ही होता है। प्रकृति भी परमात्मा का एक विशाल यन्त्र है, जिसका संचालन परमात्मा द्वारा होता है, जैसे हमारे स्थूल शरीर का संचालन आत्मा द्वारा होता है.....सुधीर भाटिया फकीर

जीवन एक रेलगाड़ी-(कक्षा-178)

 

दृश्य-दृष्टा संयोग यानी दु र व - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-550)-07-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

हम सभी मनुष्यों को अपने जीवन में सीमित आवश्यकतायें रखनी चाहिए, ताकि भोग प्रेरित इच्छाएं जन्म ही न लें, अन्यथा यह इच्छाएं ही हमसे उल्टे-सीधे काम करवा करवाते हुए पाप नगरी में डकैलती है. जबकि मनुष्य को आवश्यकता की पूर्ति के लिये मात्र साधारण पुरुषार्थ ही करना होता है.....सुधीर भाटिया फकीर

पशु-वृत्तियाँ: आहार, मैथुन, निंद्रा,भय-(कक्षा-154)

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

कर्म-फल सिद्धान्त के अनुसार भौतिक प्रकृति का प्रत्येक जीव केवल अपने मनुष्य योनि में ही किए गए कर्मों का फल खा/भोग सकता है, किसी दूसरे-तीसरे का हिस्सा खा ही नहीं सकता, यदि कोई खाता है, तो प्रकृति रुपी अदालत (परमात्मा की शक्ति) उसे दंड दिए बिना छोड़ती नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

जीवन एक संघर्ष (कक्षा-177)

 

सैद्धांतिक कथन, व्यावाहारिक बातें - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-549)-06-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि में ही किये गये सभी सकाम भाव के कर्म-विकर्म लिखे जाते हैं। सकाम कर्म केवल पदार्थ रूपी फल यानी अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियां दे कर नष्ट हो जाते हैं, जबकि निष्काम कर्म आध्यात्मिक ज्ञान रूपी फल देते हैं, जो परमात्मा से प्रीति का बीज अंकुरित करवाने में सहायक होते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रकृति:- पदार्थ-क्रिया

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

जानना और मानना में बहुत गहरा अन्तर है। सँसार में भी ऐसे जानने वालों की संख्या कम नहीं है, लेकिन मानने वालों की संख्या सदा ही कम रही है, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या कलयुग में बहुत अधिक है, जो जाने बिना ही मान लेते हैं और फिर अन्धविश्वास की गलियों गिर जाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

संसारी उप्लब्दीयाँ (कक्षा-175)

 

सुख घंटो के - दुख महीनों के - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-548)-05-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

ज्ञान को प्रकाश भी कहा जाता है, जिस तरह एक दीपक बिना किसी भेदभाव के सभी दिशाओं में समान रूप से अपना प्रकाश फैलाता है, उसी तरह से आध्यात्मिक गुरुओं का ज्ञान भी समाज के सभी वर्गों के लिए समान रूप से बिना किसी भेदभाव के प्रदान किया जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

जीवन एक उत्सव

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

प्रकृति के सभी पदार्थ प्रकृति के सभी जीवों के उपयोग मात्र के लिए ही हैं, न कि केवल मनुष्यों के भोग के लिए। उप+योग में योग बना रहता है, जबकि भोग अन्ततः रोग ही उत्त्पन्न करता है, जो सदा ही दुखदायी होता है.....सुधीर भाटिया फकीर

देव और दानव में युद्ध (कक्षा-174)

 

स्थूल शरीर की अवस्थाएँ:- बचपन/तमोगुण, युवा/रजोगुण,बुढ़ापा/सतोगुण-सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-547)4-7-21

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी संसारी आकर्षण रजोगुण के कारण ही हमें आकर्षित करते हैं, लेकिन मनुष्यों को रजोगुणी भोगों में कभी भी गहरे तल पर नहीं जाना चाहिए, अन्यथा सतोगुण का पकड़ा हुआ हाथ छूट जाता है और सतोगुण की गैर मौजूदगी में तमोगुण हमें कब अपनी पकड़ में जकड़ लेता है, हमें स्वयं को भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर

पाप-पुण्य कैसे बनते हैं ? (कक्षा-151)

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हम सभी मनुष्यों को मनुष्य योनि परमात्मा को जानने-समझने व जुड़ने यानी योग के लिए ही मिली है, न कि भोग के लिए। योग तैरने का नाम है और भोग डूबने का। इसलिए सुख-सुविधा-स्वाद रुपी पदार्थों को चखने से सदा बचते रहो, अन्यथा....? सुधीर भाटिया फकीर

ईश्वर के 5 कार्य

 

तमोगुण/अन्धकार, रजोगुण/धुन्ध, सतोगुण/प्रकाश - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-546)-03-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य अपने जीवन में पढ़ने/सुनने से जितना भी सत्संग श्रद्धापूर्वक करता है, बस वही मन का हिस्सा/संस्कार बनता है। अधिकांश लोग धर्म की बातें पढ़ते/सुनते भी हैं, लेकिन मन से शत-प्रतिशत मानते नहीं, इसीलिये धर्म हमारे व्यवहार में नजर नहीं आता, परिणामस्वरूप कलयुग हर रोज अधिक गहरा होता जा रहा है.....सुधीर भाटिया फकीर

सागर का जल (कक्षा-150)

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मनुष्य योनि में ही हम सभी मनुष्यों को सत्संग करने का अधिकार और अवसर मिलता है। इसलिए मिले हुए अवसर को हमें हाथ से यूँ ही नहीं गँवाना नहीं चाहिए यानी जीवन में निरंतर सत्संग करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

सुख की आशा

 

बीज से वृक्ष की यात्रा - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-545)-02-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

एक साधारण मनुष्य भोजन में विष मात्र का शक होने से ही उस भोजन का त्याग कर देता है, जबकि संसार के सभी 5 भोग विषयों में विष ही विष भरा पड़ा है, लेकिन फिर भी आम साधारण मनुष्य इन्हें भोगने के लिए पुण्य कर्म ही नहीं, पाप कर्म करने से भी बाज नहीं आता.....सुधीर भाटिया फकीर

कर्मकांडों का उद्देश्य

 

"सन्ध्या- बेला संदेश"

सँसार में अधिकांश लोग दुखों से पीड़ित होने पर ही परमात्मा को याद करते हैं, तब ऐसी परिस्थिति में अक्सर स्वस्थ और धनी इंसान परमात्मा को याद नहीं करते, ऐसे लोग अक्सर तन से भक्ति करते हुए नजर भले ही आते हैं, लेकिन उनका मन सँसार में ही अटका रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर

मृत्यु एक परक्षाई

 

स्वतन्त्र योनि-परतन्त्र योनियाँ - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-544)-01-07-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रकृति परमात्मा द्वारा संचालित एक अदालत ही समझो, जहाँ मनुष्य योनि में ही किए गए पाप-पुण्य कर्मों का फल निर्धारित किया जाता है। इस अदालत में एक न्याय व्यवस्था है, जहाँ देर भी नहीं है और अन्धेर भी नहीं है, इसलिए मिले हुए मनुष्य जन्म में कभी भी पाप मत करो, अन्यथा ?.....सुधीर भाटिया फकीर

साधना का समय