मनुष्य वर्तमान समय रुपी मिट्टी में जैसे कर्म रुपी बीज बोता है, फिर एक समय अन्तराल के बाद यानी भविष्य में यह बोये हुए बीज पक कर सुख-दुख रुपी फल देते हैं। सुख रुपी फलों का त्याग भी किया जा सकता है, लेकिन दुख रुपी फलों को स्वयं ही खाना/भोगना पड़ता है.....सुधीर भाटिया फकीर