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Showing posts from August, 2021

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

मनुष्य वर्तमान समय रुपी मिट्टी में जैसे कर्म रुपी बीज बोता है, फिर एक समय अन्तराल के बाद यानी भविष्य में यह बोये हुए बीज पक कर सुख-दुख रुपी फल देते हैं। सुख रुपी फलों का त्याग भी किया जा सकता है, लेकिन दुख रुपी फलों को स्वयं ही खाना/भोगना पड़ता है.....सुधीर भाटिया फकीर

फूल-मनुष्य और भगवान

 

जानना/1, मानना/2, उपासना/3-एक क्रम - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-605)-31-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

वास्तव में हम सभी मनुष्य अपने शरीर से नहीं, अपितु मन और बुद्धि की प्रेरणा से ही अपने कर्मों को एक दिशा प्रदान करते हैं। इसलिए मनुष्य को अपने मन और बुद्धि को सदा ही परमात्मा की स्मृति में ही लगाए रखना चाहिए, ताकि हमारी स्थूल इंद्रियां सदा प्रकृति के सभी जीवों के हित/कल्याण के लिए ही कर्म करें.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

एक साधारण 60+ मनुष्य अपने जीवन में सुनने या पढ़ने से सत्सँग करता तो है, लेकिन मनुष्य ज्ञान को सुनने तक ही सीमित रखता है, उसे अपने व्यवहार में नहीं लाता। इसीलिए मनुष्य के कर्मों में सुधार नहीं आ पाता.....सुधीर भाटिया फकीर

मन की आवारागर्दी

 

पुण्य-कर्म:- प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष, अनुमोदन - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-604)-30-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

स्थूल शरीर यानी तन के रिश्ते जन्म के साथ ही बनते हैं और मृत्यु होने के साथ ही समाप्त भी हो जाते है, लेकिन आत्मा परमात्मा का ही अंश माना गया है, इसलिये सम्बन्ध टूटने का तो प्रश्न ही नहीं उठता, लेकिन भोगों में लिप्त मनुष्य परमात्मा को अक्सर भूल जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

पुण्य कर्म पाप कर्मों से अच्छे माने जाते हैं, क्योंकि पाप कर्म छुड़वाने के लिए पुण्य कर्म करने की शिक्षा दी जाती है, लेकिन पाप और पुण्य दोनों ही बंधन का कारण हैं, क्योंकि भौतिक सुख-दुख भोगने के लिए शरीर की आवश्यकता होती है.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रकृति के गुण:- प्रधान, गौण, अति गौण

 

परमात्मा की अदालत (प्रकृति) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-603)-29-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

जाग्रत अवस्था में मन कभी भी क्षण भर के लिए खाली नहीं बैठ सकता। यदि यह मन सत्संग में जाकर नहीं टिकता, तो इस मन को भोगों की गलियों में आवारागर्दी करने से रोकना कठिन हो जाता है, इसलिए सभी मनुष्यों को इस मन को अपने जीवन में जबरदस्ती सत्संग में लगाने का अभ्यास निरंतर करते रहना होगा, अन्यथा ?....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

सत्संग के अभाव में कुसंग सहज ही होने लगता है, जिसके फलस्वरूप अज्ञानता की स्थिति बनने से पाप कर्म होने शुरु हो जाते हैं, इसलिए पाप कर्मों से बचने के लिए अपने जीवन में निरंतर सत्संग करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

ज्ञान और क्रिया का सम्बन्ध

 

टोका-टाकी, एक हितकारी बन्धन - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-602)-28-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

किसी मनुष्य में स्थूल शरीर के स्तर पर अपंगता हो सकती है, लेकिन मन-बुद्धि तो सदा ही बने रहते हैं। मन को सदा बुद्धि के अधीन रखना चाहिये, ताकि मन विषय-भोगों की गलियों में आवारागर्दी करने से बच सके, क्योंकि भोगों में लिप्त मन कभी भी परमात्मा का चिन्तन नहीं सकता.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

भगवान श्रीकृष्णजी ने गीता में इस संसार को दुखालय नाम से सम्बोधित किया है अर्थात् दुखालय रूपी संसार में रहते हुए हम सभी मनुष्यों को दुख रूपी ताप कम अधिक मात्रा में अपने-अपने कर्मों के हिसाब से मिलते ही रहते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

छोटा भविष्य-बड़ा भविष्य

 

बुरे संस्कार:- हटाना, सुलाना, मारना - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-601)-27-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि परमात्मा का दिया हुआ एक उपहार है। इसे सत्संग करते हुए और अधिक सवारें, न कि कुसंग करते हुए बिगाड़ने में जीवन गवायें यानी मनुष्य को पाप कर्म करने से तो अवश्य ही बचना चाहिए, अन्यथा बड़ा भविष्य ?....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

विषय-भोगों को मर्यादा से अधिक भोगने वाला इंसान प्रमाद रूपी राक्षस से बच नहीं सकता. फिर प्रमाद ही आलस्य और मोह को जन्म दे हमें तमोगुण की गहरी खाई मे गिरा हमारा पतन करवा देता है.....सुधीर भाटिया फकीर

एक यात्रा अशांति से आनन्द की ओर

 

शमशान घाट-एक क्षणिक वैराग्य - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-600)-26-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रकृति के 3 गुण सतोगुण, रजोगुण व तमोगुण हैं। मनुष्य अपने जीवन में जिस गुण का अधिक संग करता है, उस गुण विशेष के लक्षण मनुष्य के स्वभाव यानी व्यवहार में भी दिखने आरम्भ हो जाते हैं, जैसे सतोगुण का अधिक संग होने मात्र से ही भगवान की स्मृति सहज ही बनने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

भगवान का चिंतन होने मात्र से मन सतयुगी बन जाता है, जबकि विषय-भोगों के चिन्तन मात्र से पहले मन कलयुगी बनता है और फिर भोगने से तन भी कलयुगी बन जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

आत्मा और परमात्मा-एक सजातीय संबंध

 

सुख दुख - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-599)-25-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

हम सभी मनुष्यों को मनुष्य योनि केवल सत्संग करने के लिये ही मिली है। निरंतर सत्संग करते रहने से ही हमारी सात्विक बुद्धि बनती जाती है, जो धीरे-धीरे विवेक-शक्ति को जागृत करने लगती है। सात्विक बुद्धि ही मन को नियंत्रण में रख विषय भोगों से बचा सकती है, अन्यथा नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

भंडारा (मुफ्त में अन्न का वितरण)

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

मनुष्य संसार के जितना-जितना करीब जाता है, उसे संसारी लोगों की संकीर्णता का पता चलता जाता है, जबकि दूसरी ओर हम परमात्मा के जितना-जितना करीब जाते हैं, परमात्मा की विशालता का एहसास होने लगता है, फिर भी एक सामान्य मनुष्य गलत दिशा में चला जाता है ?.....सुधीर भाटिया फकीर

संस्कारों का खेल-कर्मों का मेल - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-598)-24-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य अपने जीवन के वर्तमान समय में जो भी कर्म-विकर्म करते है, भविष्य में हमें इन्ही का सुख-दुख रूपी फल मिलता है, अर्थात् भविष्य का जन्म ही भूतकाल की कोख/गर्भ से होता है अर्थात् हमें अपने जीवन में सत्संग करते हुए अपने भविष्य का निर्माण करना चाहिए, क्योंकि सत्संग के अभाव में हमारे कर्म दोषपूर्ण होने की संभावनाएँ अधिक रहती हैं....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

हमारा वर्तमान जीवन ही भविष्य की नींव को रखता है, नींव जितनी अधिक मजबूत होगी, भविष्य रूपी इमारत उतनी ही ऊंची और सुंदर बन सकेगी। जीवन में सत्संग करते हुए ही हमारा वर्तमान व भविष्य दोनों ही सुन्दर बनते हैं,अन्यथा ?.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य :- योग, कर्म, भोग

 

सादा जीवन-उच्च विचार - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-597)-23-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

आज का कलयुग यानी दुनिया एक मेले के समान है और मेले की चकाचौंध में अक्सर एक सामान्य मनुष्य विषय-भोगों में ही लिप्त रहता हुआ परमात्मा को भूल जाता है यानी अपने जीवन के मूल लक्ष्य को ही भूल जाता है, इसलिए मनुष्य को अपने जीवन में सदा सत्संग करते रहना चाहिए, ताकि परमात्मा की स्मृति बनी रहे.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

प्रकृति मनुष्यों द्वारा किये गये कर्मों-विकर्मोँ का एक समय अन्तराल के सुख-दुख रुपी फल प्रदान करती है, जबकि दूसरी ओर परमात्मा सदा ही मिले हुए दुखों को सहने की शक्ति और इन दुखों से बाहर निकलने का अवसर व ज्ञान देते है.....सुधीर भाटिया फकीर

तीन बन्धन:- तमोगुण/स्थूल, रजोगुण/सूक्ष्म व सतोगुण/कारण शरीर - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-596)-22-08-21

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रकृति की 84,00000 योनियो में केवल मनुष्यों द्वारा किये गये सकाम भाव के पाप-पुण्य कर्म ही लिखे जाते हैं। प्रकृति परमात्मा की ही एक अदालत है, जो सभी मनुष्यों के कर्मों-विकर्मोँ का पूरा लेखा-जोखा बनाये रखती है और एक समय अन्तराल के बाद सुख-दुख रुपी फल प्रदान करती रहती है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

प्रकृति के सभी स्थूल शरीर कच्चे घड़े के समान है, जो कभी भी टूट सकते है। इसलिए इस स्थूल शरीर का सदुपयोग करते हुए हमें जीवन में सदा ही सत्संग करते रहना चाहिए, क्योंकि सत्संग करने से ही हमारा सूक्ष्म और कारण शरीर पवित्र होता जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

हमारी आध्यात्मिक स्थिति: 1-10-100-1000

 

आध्यात्मिक चेतावनी - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-595)-21-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

जब-जब मनुष्य अपने जीवन में भोग प्रेरित इच्छाएं बढ़ाने लगता है, तब-तब अंतत: भविष्य में हमारे दुख ही बढ़ते हैं, जबकि आध्यात्मिक इच्छा यानी प्रभु को पाने की इच्छा रखने मात्र से प्रारम्भ से ही सुख बढ़ने लगते हैं, फिर भी मनुष्य अपने जीवन में गलत फैसला कर जाता है ? इस पर चिन्तन करें.....सुधीर भाटिया फकीर
 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मनुष्य अपने जीवन में प्रकृति के गुणों का संग करता हुआ जैसा अपना स्वभाव बना लेता है, फिर उसी दिशा विशेष में मनुष्य द्वारा वैसे ही कर्म अपने आप होने लगते हैं। अक्सर सत्संग के अभाव में मनुष्य का स्वभाव बिगड़ने लगता है, इसलिए मनुष्य को सदा ही सत्संग करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

जिन्दगी का सफर

 

सामान्य मनुष्य का जीवन:- रजोगुण का प्रभाव, सतोगुण का अभाव - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-594)-20-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि पा कर ही परमात्मा को जाना-समझा-पाया जा सकता है। सर्वप्रथम हमारे मन में प्रभु को जानने की जिज्ञासा होनी चाहिए, फिर जिज्ञासा पूर्ति के लिए निरंतर प्रयत्न करना हमारा काम है, शेष सब परमात्मा का काम है अर्थात् मनुष्य योनि पा कर हमें अपने जीवन में निरंतर सत्संग करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

परमात्मा को ब्रह्म-मुहूर्त में ही लूटा जा सकता है।

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

मनुष्य अपने जीवन में मरते दम तक जितने भी पाप-पुण्य कर्म सकाम भाव से स्वयं करता है या दूसरे अन्य किसी मनुष्य/जीव से भी करवाता है, ऐसे सभी कर्म-विकर्म हमारे अपने स्वयं के खाते में ही लिखे जाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

भोग ही मनुष्य के पतन का कारण बनते हैं।

 

योग:- योग/स्थूल शरीर, योग/सूक्ष्म+कारण शरीर - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-593)-19-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य में निरंतर सत्संग करते रहने से ही हमारे कारण शरीर में शुभ संस्कार बनने लगते हैं और पहले के बने हुए अशुभ संस्कार धीरे-धीरे मिटने/कमजोर होने लगते हैं, जिससे हमारे कर्मों में निष्कामता आने लगती है और भक्ति का बीज अंकुरित होता है, जो हमारी आध्यात्मिक यात्रा को गति प्रदान करता है.....सुधीर भाटिया फकीर

अपने कर्मों में सदा निष्कामता बनाये रखें

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

जीवन में निरंतर सुखों को भोगते रहने से मनुष्य में अहंकार, प्रमाद और आलस्य कब अपने पांव पसार कर हमें तमोगुण में गिरा देता है, हमें स्वयं को भी पता नहीं चलता, इसलिए जीवन में मिलने वाले दुखों का भी हमें सदा ही स्वागत करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

अभ्यास ही एक दिन स्वभाव को जन्म देता है।

 

तमोगुणी, रजोगुणी, सतोगुणी - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-592)-18-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी भोगी, योगी मनुष्य व अन्य सभी जीवों का भी मुख्य लक्ष्य सुख की प्राप्ति और दुख से निवृत्ति का ही होता है, लेकिन सत्संग के अभाव में भोगी मनुष्य की दिशा गलत हो जाती है, अर्थात् भोगी मनुष्य भोगों के लिए पाप कर्म करने से भी परहेज नहीं करता, जबकि योगी के जीवन में किसी भी स्थिति में भटकाव नहीं आता.....सुधीर भाटिया फकीर

आत्मा पर तामसी पदार्थों का आवरण

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

कलयुग में ऐसा देखा गया है कि अधिकांश लोग दुखों में तो परमात्मा को सहज ही याद करने लगते हैं, जबकि यही लोग सुखों की वर्षा में नहाते समय परमात्मा को बहुत जल्दी से भूल जाते हैं, यह एक सच्चाई है....सुधीर भाटिया फकीर

स्थूल कार्य के पीछे का सूक्ष्म कारण

 

संस्कार यानी बीजों का अंकुरण - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-591)-17-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रकृति के सभी पदार्थों का अंतिम परिवर्तन नाश होना ही है, फिर भी बुद्धिमान मनुष्य इन्ही नाशवान पदार्थों को पाने के लिए कर्म ही नहीं, पाप कर्म करने से भी परहेज नहीं करता, दूसरी ओर मिले हुए पदार्थों का एक समय विशेष के बाद भोग करने वाली हमारे स्थूल शरीर की इंद्रियां भी क्रमश: शिथिल यानी असमर्थ होती जाती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य की स्थिति रेलवे स्टेशन पर खड़े हुए मुसाफिर की भांति है।

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

विषयों का निरंतर चिंतन बने रहने से कामना पैदा होती है, सभी कामनाएं किसी भी मनुष्य की पूरी नहीं होती, जो पूरी हो जाती हैं, उनको भोगने से मोह, प्रमाद, आलस्य आ जाने से अन्ततः पाप कर्म कब होने लगते हैं, मनुष्य को स्वयं भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर

कथा-कहानियों के पीछे का रहस्य

 

वृतियों का प्रवाह:- गन्ध, रस, रुप, स्पर्श, शब्द - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-590)-16-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

84,00000 योनियो में मनुष्य योनि एक राजा योनि है, जिसमें मनुष्य साधना करते-करते परमात्मा को जान-समझ व पा सकता है, जिसका आरंभ सत्संग करने से ही होता है, लेकिन कलयुग में एक सामान्य मनुष्य सत्संग करने में उदासीन रहता है यानी मनुष्य की सत्संग के प्रति कोई विशेष रुचि नहीं होती, इसलिए मनुष्य मिले हुए अवसर का लाभ नहीं ले पाता.....सुधीर भाटिया फकीर

सभी पदार्थ तामसी ही कहलाते हैं।

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

मनुष्य योनि परमात्मा द्वारा दिया गया एक सुनहरा अवसर है, जिसका आरंभ सत्संग करने से ही होता है, लेकिन एक साधारण मनुष्य अक्सर सत्संग करने में उदासीन बना रहता है यानी सत्संग के अभाव अक्सर मनुष्यों से पाप कर्म अधिक ही होते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

मन एक दूरदर्शन - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-589)-15-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

भगवान के सभी अवतारों में एक ही ब्रह्म तत्व है, जैसे बर्फ, जल, भाप, बादल व कोहरा आदि सभी पदार्थों में मूल रुप से जल तत्व ही मौजूद रहता है, यह जल के ही अलग-अलग रूप है, उसी तरह परमात्मा भी अनादि काल से अनेकों अवतारों में प्रकट होने के बावजूद भी मूल रूप में परमात्मा एक ही होता है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

प्रकृति के सभी जीव केवल मनुष्य योनि में ही स्वयं द्वारा किए गए कर्मों का फल खा/भोग सकते हैं, किसी दूसरे-तीसरे-चौथे का हिस्सा खा ही नहीं सकते, ऐसा कर्मफल का एक सिद्घांत/विधान है.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रारब्ध:- जाति, आयु, भोग

 

जीवन में जीत:- स्थूल, सूक्ष्म व कारण शरीर - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-588)-14-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

जीवन में निरंतर सत्संग करते रहने का अभ्यास बनाये रखें, ताकि मन में सतोगुण की ज्योत जल ज्ञानरुपी प्रकाश हो, मन में ऐसी ज्योत जलने से ही विषय-भोगों की वासनायें मरने लगती है और विवेक-शक्ति जगने लगती है, जिसके फलस्वरूप परमात्मा की समझ बढ़ने से परमात्मा से प्रीति होने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर

समय:- सत्सँग-कुसंग

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मनुष्य की लाख कोशिशों के बावजूद भी संसार को पाया नहीं जा सकता, दूसरी ओर लाख नहीं करोड़ों कोशिशें भी कर लो, परमात्मा को खोया नहीं जा सकता, हाँ, भुलाया तो जा सकता है, जैसा कि कलयुग में ऐसा देखा जा सकता है?.....सुधीर भाटिया फकीर

सलाह 1/1000, सहयोग 1000/1

 

जीवन की एक सच्चाई "मृत्यु" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-587)-13-08-2031

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य से नीचे की सभी योनियों के सभी असंख्य जीव जैसे वृक्ष, कीड़े-मकोड़े, कीट-पतंगे, पक्षी व पशु आदि सभी जीवों की यात्रा मनुष्य बनने की ओर हर पल आगे बढ़ ही रही है, लेकिन मनुष्य अज्ञानतावश यानी सत्संग के अभाव में केवल भोगों के लिये ही पाप कर्म/विकर्म करता हुआ दोबारा से इन निकृष्ट योनियों में लौटने का अपना दुर्भाग्य खुद ही बना रहा है.....सुधीर भाटिया फकीर

दु:खों की FIRST-AID सत्सँग

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

परमात्मा एक ही है और सभी जीवों के लिये ही कल्याणकारी है, किसी एक व्यक्ति/समुदाय/देश का नहीं है, भले ही अनादिकाल से परमात्मा के अनेकों अवतार होते रहे हैं, लेकिन सभी अवतारों में मूल तत्व एक ही है.....सुधीर भाटिया फकीर

विज्ञापन यानी स्थूल शरीर, सत्सँग यानी कारण शरीर

 

प्रकृति का परिवार - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-586)-12-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि सतोगुण में वृद्घि करने के लिए यानी सत्संग करने के लिये ही मिली है और सत्संग करते रहने से ही आध्यात्मिक यात्रा आगे बढ़ती है, जिसके अभाव में अक्सर मनुष्य के कर्म दोषपूर्ण ही होते हैं। इसपर  विचार/चिन्तन करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

गरीबी और अमीरी दोनों ही एक रोग हैं।

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सच्चिदानंद यानी आनंद शब्द केवल परमात्मा के लिये ही कहा जाता है, जबकि दुखालय शब्द संसार या प्रकृति के लिए कहा जाता है, फिर भी मनुष्य अज्ञानतावश सँसार में ही सुख तलाश करने की भूल करता रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर

ज्ञान का प्रवाह

 

दुख-सुख - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-585)-11-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि विवेक-शक्ति जगाने के लिए ही परमात्मा का दिया हुआ एक अवसर है, जब तक मनुष्य की विवेक-शक्ति 100% जाग नहीं जाती, तब तक मनुष्य में कम-अधिक मात्रा में सुख भोगने की भौतिक इच्छाएं बनी ही रहती हैं. इसलिए मनुष्य योनि पाकर अधिक से अधिक सत्संग करते रहने का अपना लक्ष्य बनाये रखना चाहिए, क्योंकि सत्संग करने से ही विवेक-शक्ति जागती है.....सुधीर भाटिया फकीर

सभी कर्मों के पीछे 5 कारण होते हैं।

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

परमात्मा हम सभी मनुष्यों को सदा धर्म मार्ग पर चलने की ही शिक्षा देते हैं अर्थात् हमारे अर्थ व काम धर्म पूर्वक हों, ताकि मोक्ष यानी परम सुख/आनन्द की दिशा में हमारा जीवन अग्रसर हो.....सुधीर भाटिया फकीर

कर्म:- तामसी, राजसी, सात्विक

 

इच्छाओं की गुणवत्ता - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-584)-10-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सुख-दुख सभी मनुष्यों के जीवन आते-जाते रहते हैं। सुख भले ही ढोल-नगाड़े बजाते हुए आते हैं, लेकिन एक समय के बाद वापिस लौट जाते हैं, जबकि दुख भले ही बिना बुलाए आते हैं, लेकिन एक समय के बाद यह दुख भी चुपचाप चले जाते हैं, क्योंकि सुख-दुख हमारे ही किये हुए कर्मों का फल होते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

श्रद्धा का दीपक सदा जलाये रखें।

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

प्रकृति के सभी पदार्थो पर प्रकृति में रहने वाले सभी जीवों का अधिकार है और सभी पदार्थ सभी जीवों के उपयोग के लिए ही हैं। हम सभी मनुष्यों को भी इन पदार्थों का केवल अपनी आवश्यकतानुसार ही ग्रहण करना चाहिए, अन्यथा हम परमात्मा की नजरों में चोर ही माने जाएँगे.....सुधीर भाटिया फकीर

परमात्मा की गीता, जिसने भी पढ़ी, वही इन्सान जीता

 

सँसार एक रोग - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-583)-09-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सँसार में भले ही प्रत्येक राज्य/देशों में अलग-अलग स्तर पर अदालतें बनी रहती हैं, लेकिन परमात्मा द्वारा संचालित एक अदालत का नाम प्रकृति है, जहाँ  8400000 योनियों के असंख्य जीवों द्वारा मनुष्य योनि में ही किए गए पाप-पुण्य कर्मों का फल दिया जाता है, जहाँ देर भी नहीं है और अन्धेर भी नहीं है.....सुधीर भाटिया फकीर

रिश्ते सदा यादों से बनते हैं

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सभी मनुष्यों को अपने जन्म और भविष्य में होने वाली मृत्यु पर गहरा विचार/चिन्तन करते रहना चाहिए, यह चिन्तन ही मिले हुए वर्तमान जीवन का लक्ष्य समझा जाता है और मनुष्य को संसार से सहज ही वैराग्य जागने लगता है और मनुष्य भगवान से जुड़ जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

पुण्य कर्म कैसे बनते हैं ?

 

मोक्ष की स्थिति यानी मायातीत स्थिति - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-582)-08-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

कलयुग में प्राय ऐसा देखा गया है कि लगभग सभी मनुष्य धन कमाने में ही अपना अधिकांश जीवन यूँ ही व्यर्थ गँवा देते हैं, क्योंकि कमाए गए पदार्थों/धन का नाश होना निश्चित है, जबकि भोगने वाली हमारी स्थूल इंद्रियां भी एक सीमा के बाद कमज़ोर होती जाती है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मनुष्य योनि पाकर हम सभी मनुष्यों को अपने जीवन में धार्मिक कर्मकांड अवश्य ही करते रहना चाहिए, क्योंकि कर्मकाण्ड, भले ही लोभ से हों या भय से, इनका केवल इतना ही लाभ है कि मनुष्य अधोगति से तो बच ही जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

बचपन/तमोगुण, युवा/रजोगुण, बुढ़ापा/सतोगुण

 

स्थूल शरीर की वृद्धावस्था (एक मजबूरी) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-581)-07-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य स्वभाव से ही रजोगुणी है यानी प्रकृति के रजोगुण यानी सँसारी आकर्षणों से अधिक बंधा हुआ है, क्योंकि रजोगुण अपना असर तुरन्त दिखाता है, जबकि सतोगुण अपना असर धीरे-धीरे दिखाता है, जोकि अन्ततः मनुष्य का कल्याण ही करता है.....सुधीर भाटिया फकीर

सँसार किसे कहते हैं ?

 

मृत्यु के अन्तिम क्षणों की फिल्म

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हर क्षण हम सभी मनुष्यों की मृत्यु नजदीक आती जा रही है यानी कर्म करने का समय निरंतर कम होता जा रहा है, तब ऐसी स्थिति में हम कब ज्ञान लेंगे ? और कब प्रभु भक्ति आरंभ होगी, इस पर हमें सदा चिन्तन करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

आत्मा अपूर्ण-परमात्मा पूर्ण - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-580)-06-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

बेमन से यानी रजोगुणी अवस्था में किये गये सत्सँग का केवल इतना ही लाभ है कि हम अधोगति से बच सकते हैं, यह एक आरंभिक प्रक्रिया है जैसे बच्चे को प्ले/नर्सरी स्कूल भेजा जाता है ताकि बच्चा कुछ सीखने लगे और घर पर करने वाली शैतानियां से बच जाये यानी विषय-भोगों में अधिक आसक्त नहीं होने पाये.....सुधीर भाटिया फकीर

सत्सँग में डुबकियाँ

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

अपने जीवन में कमाये गये धन पर सदा नजर बनाये रखें कि धन शुद्ध है या अशुद्ध, क्योंकि अशुद्ध धन हमारे शुद्ध धन को भी अशुद्ध धन कब बना देता है, मनुष्य को स्वयं भी पता नहीं चल पाता.....सुधीर भाटिया फकीर

पास(1-10), दूर(10-100), अति दूर(10-1000)

 

कर्मों के परिणाम - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-579)-05-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि परमात्मा द्वारा हमें आध्यात्मिक यात्रा करने का एक अवसर दिया गया है, मनुष्य मरते दम तक जितनी भी आध्यात्मिक यात्रा कर लेता है, तब ऐसी की गई आध्यात्मिक यात्रा बेकार नहीं जाती, यह अगले मनुष्य योनि तक सुरक्षित बनी रहती है, लेकिन भौतिक उन्नति मरने के साथ ही समाप्त हो जाती है.....सुधीर भाटिया फकीर
 

"सन्ध्या-बेला सदेश

दुनिया के अधिकांश लोग भौतिक प्रकृति को ही गहरे तल पर जानने की इच्छा रखते हैं, लेकिन लोगों में परमात्मा के बारे में अधिक गहरे तल पर जानने की जिज्ञासा नहीं होती। केवल गिनती के ही लोग हैं, जो परमात्मा को तत्व रुप से जानने-समझने का प्रयास करते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

दिन:- दिन-रात

 

ब्रह्माण्ड और पिण्ड में अन्तर - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-578)-04-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

विवेक-शक्ति को केवल मनुष्य योनि में ही जगाया जा सकता है और जब तक मनुष्य की विवेक शक्ति 100% जाग नहीं जाती, तब तक एक साधारण मनुष्य में कम-अधिक मात्रा में सुख भोगने की इच्छा बनी ही रहती हैं, जबकि निरंतर सत्संग करते रहने से ही विवेक शक्ति जागना आरम्भ होती है....सुधीर भाटिया फकीर

कर्म:- सकाम-निष्काम

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हमारे वर्तमान जीवन का पुरुषार्थ भविष्य की नींव रखता है, नींव जितनी अधिक मजबूत होगी, भविष्य रूपी इमारत उतनी ही ऊंची और सुंदर बन सकेगी अर्थात् हमें अपने जीवन में सत्संग करते हुए अपने भविष्य का निर्माण करना चाहिए....सुधीर भाटिया फकीर

गुण-दोष देखने का अनुपात

 

मनुष्य:- लालची-संतोषी - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-577)-03-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

हम सभी मनुष्य अपने वर्तमान जीवन में जो भी कर्म-विकर्म करते है, भविष्य में हमें इन्ही किये गये कर्मों का सुख-दुख रूपी फल मिलता है, अर्थात् भविष्य का जन्म ही भूतकाल की कोख/गर्भ से होता है. दूसरी ओर हमारा वर्तमान जीवन ही भविष्य की नींव को रखता है.....सुधीर भाटिया फकीर

कर्म:- शारिरीक-मानसिक

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

अर्थ यानी धन को सदा ज्ञान पूर्वक अपने नियंत्रण में रखना चाहिए, अन्यथा धन हमारे मन में कब घुस जाता है, हमें स्वयं को भी पता तब चल पाता है, जब अर्थ यानी धन हमें अनर्थ की खाई में ही गिरा देता है.....सुधीर भाटिया फकीर

पाप किसे कहते हैं ?

 

सँसार:- टागं खींचना, पैर दबाना - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-576)-02-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्यों को संसारी विषय भोगो में गहरे तल पर कभी नहीं जाना चाहिए, अन्यथा सतोगुण का पकड़ा हुआ हाथ छूट जाता है और सतोगुण की गैर मौजूदगी में तमोगुण अपनी पकड़ में कब हमें कैद कर लेता है, हमें स्वयं को भी पता नहीं चलता, इसलिए मिले हुए जीवन में सत्संग करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

भौतिक जगत में कुछ विशेष योग्यता प्राप्त करने के लिए 20-25 वर्षों तक शिक्षा प्राप्त करनी पड़ती है, लेकिन अक्सर अधिकांश लोग 1-2 सत्संग करने से ही समझने की भ्रांति पाल लेते हैं कि उन्होनें परमात्मा को जान-समझ लिया है ?....सुधीर भाटिया फकीर

कुन्डली-मिलान:- तन/1%, मन/10%, स्वभाव/100% - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-575)-01-08-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

जब मनुष्य के जीवन में दूसरे जीवों को पदार्थ खिलाने या सहायता करने में सुख की अनुभूति होने लगे और दूसरों से लेने में शर्म महसूस होने लगे, तो समझ लेना कि हमारे सतोगुण में वृद्धि हो रही है, अर्थात् हमारी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत हो गई है.....सुधीर भाटिया फकीर

संख्यात्मक ज्ञान 1.... 10.... 100.... 1000