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Showing posts from May, 2022

भगवान की कृतज्ञता

 

संध्या-बेला सन्देश

आध्यात्मिक ज्ञान ही नित्य कहलाता है, जो कभी पुराना नहीं होता। जबकि भौतिक-ज्ञान कभी नया नहीं रहता, क्योंकि नित्य नये-नये आविष्कार उस ज्ञान को पुराना कर देते हैं। हम सभी आत्मायें ज्ञानवान होने के बावजूद भी विषय-भोगों में आसक्त हो कर अज्ञानता में आ चुके हैं.....सुघीर भाटिया फकीर

"दुख" एक WARNING/REMINDER - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-881)-31-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

मनुष्य को सतोगुण में ले जाने के लिये यानी परमात्मा से जोड़ने के लिए मायातीत महापुरुषों ने परमात्मा की प्रेरणा से आरम्भ में कुछ धार्मिक-कर्मकांड रच दिये, ताकि मनुष्य इन कर्मकाण्डों को ज्ञानपूर्वक करता हुआ रजोगुणी विषय-भोगों में डूबने से भी बचे और अपनी आध्यात्मिक उन्नति को एक गति प्रदान करे.....सुधीर भाटिया फकीर

पदार्थ, क्रिया, ज्ञान, भक्ति

 

संध्या-बेला सन्देश

जीवन की मिली हुई सांसे सीमित हैं यानी हमारे पास कर्म करने की, प्रभु का ज्ञान-विज्ञान समझने की और प्रभु की भक्ति करने का समय निरन्तर हमारे हाथ से निकलता जा रहा है. इसपर एक सामान्य मनुष्य कभी विचार ही नहीं करता.....सुधीर भाटिया फकीर

स्थूल से सूक्ष्मता का एक क्रम - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-880)-30-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

प्रकृति के 5 विषय-भोगों को अमर्यादित ढंग से रसपूर्वक भोगने से मन के 5 विकार }}}}} काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार राक्षस बन कर मनुष्यों से कितने पाप-कर्म करवाते रहते हैं, सत्सँग के अभाव में मनुष्य को इसका बोध भी नहीं होता.....सुधीर भाटिया फकीर

पाप-कर्म क्रियाशील-पुण्य-कर्म चुपचाप

 

संध्या-बेला सन्देश

शास्त्रों का ज्ञान हम सभी मनुष्यों को जीवन का सही रास्ता दिखाने के लिए है, जोकि अक्सर गुरू के प्रवचनों द्वारा हम मनुष्यों को समझाया जाता है, लेकिन हम सभी मनुष्यों को बताये गये इन रास्तों पर चलना ही होगा, तभी हम परमात्मा रुपी मंजिल को पा सकते हैं, अन्यथा नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

कलयुगी मन की स्थितियाँ:- मूढ़, क्षिप्त, विक्षिप्त - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-879)-29-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

अक्सर ऐसा बोल दिया जाता है कि मनुष्य अपने जीवन में जैसी बुद्धि बना लेता है, फिर वैसी ही दिनचर्या यानी जीवन बनता जाता है और मरने पर अगली योनि का निर्धारण होता है अर्थात् जैसी मति, वैसी गति, जबकि बिना सत्संग किये बुद्धि राजसी/तामसी ही बनी रहती है, फलस्वरूप ऐसी स्थिति विशेष में पाप-कर्म होते ही रहते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

संस्कारों की 5 अवस्थायें

 

संध्या-बेला सन्देश

मन के 5 विकारों पर सत्संग की लगाम से ही नियंत्रण में लिया जा सकता है, अन्यथा यह काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रूपी राक्षस मनुष्यों से पाप-कर्म ही करवाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

शारीरिक, मानसिक व निष्काम कर्म = कर्माशय/संस्कार की स्थितियाँ- सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-878)-28-5-22

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

सभी अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में सात्विक अन्तकरण वाला मनुष्य प्रतिकूल परिस्थितियाँ मिलने पर भी उनसे जल्दी से बाहर निकल आता है, लेकिन अनुकूल परिस्थितियों मिलने पर भी इनका भोग नहीं करता, बल्कि इन अनुकूल परिस्थितियों का सदुपयोग करते हुए अपनी आध्यात्मिक उन्नति में गति ले आता है.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य की सतोगुणी स्थितियाँ

 

संध्या-बेला सन्देश

सभी जीव यानी आत्माएं परमात्मा का ही अंश मानी जाती हैं, क्योंकि आत्मा और परमात्मा दोनों चेतन तत्व हैं। परमात्मा एक आनंदस्वरुप सत्ता हैं, इसलिए परमात्मा हम सभी मनुष्यों को भी आनन्द देने के लिये अपनी ओर आकर्षित करते रहते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

व्यवहार और स्वभाव में अन्तर - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-877)-27-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

हम सभी मनुष्यों को अपने जीवन को रजोगुण की 5 विषय-भोगों की गलियों में यूँ ही खुला नहीं छोड़ना चाहिए, इसे सतोगुण की लगाम से यानी ब्रेक से सदा नियंत्रण में रखना होगा, अन्यथा कुसंग रूपी हवा का झोंका कब मनुष्य के जीवन को नकारात्मक दिशा में मोड़ दे, मनुष्य को स्वयं भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर

चार आश्रम:- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास

 

संध्या-बेला सन्देश

संसार में अक्सर ऐसा देखा जाता है कि एक मनुष्य अपने जीवन में सत्सँग के अभाव में की गई गलती को बार-बार करता हुआ अपने पाप-कर्मों का कर्माशय बिगाड़ लेता है, जिसके फलस्वरूप मरने के बाद पुन: जल्दी से मनुष्य योनि नहीं मिलती.....सुधीर भाटिया फकीर

सतोगुणी घड़ा (सत्सँग):- रजोगुण (छोटा-छेद), तमोगुण (बड़ा-छेद) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-876)-26-5-22

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

संसार में रहते हुए मनुष्य अपनी एकाग्रता यानी ध्यान जहां कहीं भी अर्थात् जिस कार्य विशेष में लगाता है, तब एक समय अंतराल के बाद वहीं का ज्ञान रूपी फल हमें प्राप्त होता है। मनुष्य योनि में ही परमात्मा का ध्यान लगाते हुए परमात्मा का आनन्द पा लेना संभव है। इसलिए मिले हुए अवसर का हम सभी मनुष्यों को अवश्य ही लाभ उठाना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

मन को कैसे वश में करें ?

 

संध्या-बेला सन्देश

भले ही सारा संसार लेना-देना पर ही टिका है, जो मनुष्य अपने जीवन में सदा दूसरों से लेने की फिराक में ही रहता है, समझ लो, कि ऐसे मनुष्य का सत्संग में मन नहीं टिकेगा और यदि मनुष्य देने का अपना स्वभाव बना लेता है, तो समझ लेना कि उसके जीवन में आध्यात्मिकता का प्रवेश हो चुका है.....सुधीर भाटिया फकीर

भौतिक उपकरण:- 84 लाख योनियाँ-असंख्य उपकरण - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-875)-25-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

मेला कहीं भी लगा हो, कभी भी स्थायी नहीं होता, इसीलिए संसार की तुलना एक मेले से कर दी जाती है अर्थात् मेले की चकाचौंध सदा नहीं रहती। जैसे मेले की चकाचौंध में अबोध बच्चे अपने मां-बाप से बिछड़ जाते हैं, वैसे ही अज्ञानी मनुष्य संसार रूपी मेले में परमात्मा से बिछुड़ जाता है यानी दूर हो जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

परमात्मा } न्याय, न्यायालय } निर्णय

 

संध्या-बेला सन्देश

प्रकृति में हर क्षण कितनी ही क्रियायें होती रहती हैं, जिसके फलस्वरूप संसार में अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियां बनती-बिगड़ती रहती है, जो हमारे-आपके किये गये कर्मों के आधार पर हम सभी जीवों को सुख-दुख मिलते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

भगवान {आत्मा की स्थितियाँ } तमोगुण ●, रजोगुण ~~, सतोगुण ○ [सुधीर भाटिया फकीर]-कक्षा-874-24-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

शास्त्रों का यथार्थ ज्ञान समझें बिना अक्सर एक साधारण मनुष्य अपने जीवन में बार-बार गल्तियां करता रहता है, तब ऐसी स्थिति विशेष में मनुष्य अज्ञानतावश कुतर्क रुपी पाप भी कर जाता है। इसलिए हम सभी मनुष्यों को सत्संग करते हुए सदा ज्ञानमय स्थिति में ही रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

स्वस्थ स्थूल-शरीर की कसौटी

 

संध्या-बेला सन्देश

सभी मनुष्य सुख पाने की इच्छा से ही कर्म करते हैं। एक सफल मनुष्य ही सुखी होता है और सफलता बिना आध्यात्मिक ज्ञान के असम्भव है और ज्ञान श्रद्धापूर्वक निरंतर सत्संग करते रहने से ही मिल पाता है, अब निर्णय आपको करना है ? .....सुधीर भाटिया फकीर

सुखों को देखने का नजरिया }} अल्पकालीन-दीर्घकालीन ? - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-873)-23-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

अक्सर मनुष्य अपने जीवन में की गई गलतियों को बार-बार दोहराता रहता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य का पाप-कर्मों का कर्माशय अघिक तेजी से बिगड़ने लगता है, जो मनुष्य को मरने के बाद नीचे की योनियों में ही जन्म लेने को बाध्य करता है, लेकिन निरन्तर सत्संग करते रहने पर हम मनुष्यों को की गई गलतियों में सुधार लाने की प्रेरणा मिलती है.....सुधीर भाटिया फकीर

मन/चित् की स्थितियाँ

 

FREE - FREE }} कुछ नहीं "कर्मफल-सिद्धान्त" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-872)-22-05-2022

 

संध्या-बेला सन्देश

मनुष्य योनि कर्मयोनि है, जहाँ केवल मनुष्य के स्वयं द्वारा ही किये गये पाप-पुण्य कर्म नहीं लिखे जाते, अपितु हमारे द्वारा निर्देशित कर्म, जो अन्य द्वारा भी किये जाते हैं, ऐसे सभी करवाये गये पाप-पुण्य भी हमारे ही खाते में लिख दिये जाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

भले ही सभी आत्माएं ज्ञानवान ही होती हैं, लेकिन मनुष्य द्वारा होने वाले पाप-कर्मों से आत्मा का ज्ञान आवर्त होने से जीव क्रमश: अचेत होता जाता है, फलस्वरूप उसे दुखों का बोध नहीं होता, जैसे सभी पेड़-पौधे लगभग पूर्ण रूप से अचेत हैं, इसलिए उन्हें कटने पर भी पीड़ा का एहसास नहीं होता.....सुधीर भाटिया फकीर

कर्म की गति

 

संध्या-बेला सन्देश

मनुष्य योनि में धर्म कमाओ, न कि धन। धन तो अक्सर जीते जी भी काम नहीं आता (पिछले वर्ष अप्रैल'21 का कोरोना-काल इस बात की पुष्टि करता है), जबकि धर्म तो मरने के बाद भी हमारा कल्याण ही करता है.....सुधीर भाटिया फकीर

"जन्मदिन" एक मृत्यु "ज्ञान-सन्देश" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-871)-21-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

सत्संग के अभाव में एक साधारण मनुष्य की स्थिति कुसंग की ही बनी रहती है। तमोगुण प्रत्यक्ष रूप से कुसंग माना जाता है, जबकि रजोगुण अप्रत्यक्ष रूप से देर-सबेर कुसंग में ही गिरा देता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य को आध्यात्मिक ज्ञान हो नहीं होता। ऐसी स्थिति में कब पाप-कर्म शुरु हो जाते हैं, मनुष्य को इसका बोध भी नहीं हो पाता.....सुधीर भाटिया फकीर

गीता का सन्देश

 

संध्या-बेला सन्देश

संसार में अक्सर ऐसा देखा जाता है कि वृद्धावस्था आने पर अधिकांश लोगों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सत्संग होने मात्र से सतोगुण बढ़ने लगता है, जो मनुष्य के विषय-भोग अमर्यादित नहीं होने देता.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रसाद और भोजन में अन्तर - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-870)-20-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

सभी आत्मायें स्वभाविक ही ज्ञानयुक्त हैं, लेकिन मनुष्य योनि पाकर जब मनुष्य जड़ प्रकृति का मर्यादा से अधिक भोग कर लेता है, तो आत्मा का ज्ञान ढक जाता है यानी आवृत हो जाता है, फलस्वरूप आत्मा परमात्मा से विमुख हो स॔सार में ही उलझ जाती है। इसलिए मनुष्य जीवन में सत्सँग करते रहिये, ताकि हम पुन: आध्यात्मिक ज्ञान में लौट सकें.....सुधीर भाटिया फकीर

मन एक दर्पण:- पारदर्शक, पारभासक, मलिन

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

जीवन की एक सच्चाई है कि धन के जाने पर सत्संग में भी मन अपने आप ही लगने लगता है, जबकि धन अधिक आने पर सत्संग में भी मन उखड़ा-उखड़ा ही रहता है, फिर भी मनुष्य के मन के भीतर धन की चाह बनी रहती है ?.....सुधीर भाटिया फकीर

सतोगुण की उपेक्षा } बड़ी-गलती व रजोगुण से अपेक्षा } छोटी-गलती - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-869)-19-5-22

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

हम सभी मनुष्यों को मिले हुए एकांत समय का स्वयं के चिन्तन यानी जन्म-मरण पर सकारात्मक मंथन करते रहना चाहिए, ताकि परमात्मा की याद आये, अन्यथा अधिकांश मनुष्यों द्वारा भौतिक विषयों पर ही विचार-विमर्श होता रहता है, जो अन्तत: मनुष्य को परमात्मा से ही विमुख करते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

स्वार्थ के अस्थाई रिश्ते

 

संध्या-बेला सन्देश

हम सभी मनुष्यों को मिले हुए एकांत समय का स्वयं के चिन्तन यानी जन्म-मरण पर सकारात्मक मंथन करते रहना चाहिए, ताकि परमात्मा की याद आये, अन्यथा अधिकांश मनुष्यों द्वारा भौतिक विषयों पर ही विचार-विमर्श होता रहता है, जो अन्तत: मनुष्य को परमात्मा से ही विमुख करते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

सात्विक कर्मों में ही निवेश कीजिये - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-868)-18-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

कलयुग में मनुष्य के जीवन में जैसे-जैसे सुख-सुविधा के साधनों में वृद्घि होती जा रही है, वैसे-वैसे ही मनुष्य के जीवन में प्रमाद व आलस्य आने से कई प्रकार की नई-नई समस्याएँ भी जन्म लेती जा रही हैं, जिनके फलस्वरूप मनुष्य के जीवन में दुख, क्लेश, अशान्ति बनी रहती है.....सुधीर भाटिया फकीर

ज्ञान की अवस्थायें:- तमोगुण/मोह , रजोगुण/भोग, सतोगुण/ज्ञान

 

संध्या-बेला सन्देश

जीवन में निरंतर सत्संग करते रहने का लाभ उस दिन मिलता है, जब मनुष्य को अपने जीवन भर के संग्रह किए गये सभी धन/पदार्थ बेकार लगने लगते हैं यानी भौतिक पदार्थों से ज्ञानपूर्वक वैराग्य व परमात्मा से सहज ही प्रीति होने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य का मन (मन्दिर...मंगलवार...मेहमान ?) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-867)-17-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

प्रकृति रूपी खेत में हम सभी मनुष्य अपने जीवन में कर्मरूपी बीज डालते  रहते हैं, जिसका प्रकृति एक समय अन्तराल के बाद सुख-दुख रुपी फल प्रदान करती है। सुख रूपी फल का त्याग तो किया जा सकता है, लेकिन दुख रूपी फल मनुष्य को स्वयं ही भोगना पड़ता है। हालाँकि परमात्मा सदा ही मिले हुए दुखों को सहने की शक्ति प्रदान करते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

गुणों का खेल-कर्मों का मेल

 

संध्या-बेला सन्देश

सत्संग के अभाव में व संसारी मेलों की चकाचौंध के प्रभाव में अक्सर एक सामान्य मनुष्य विषय-भोगों में ही लिप्त रहता है और इन भोगों में आसक्त होते हुए कब परमात्मा को भूल जाता है यानी जीवन के मूल लक्ष्य को हाथ से ही गवाँ देता है.....सुधीर भाटिया फकीर

भोग का रोग से संबंध - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-866)-16-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

भौतिक प्रकृति त्रिगुणात्मक है। 3 गुण तमोगुण + रजोगुण + सतोगुण एक नित्य तत्व हैं, लेकिन फिर भी इनमें एक गुण प्रधान, दूसरा गुण गौण व तीसरा गुण अति गौण की स्थिति में बने रहते हैं। मनुष्य योनि में ही हमें अपना सतोगुण बढ़ाने का एक अवसर मिलता है, जिसका लाभ उठाने में ही हमारी समझदारी है, अन्यथा ? .....सुधीर भाटिया फकीर

संसार रूपी सागर {{{{{ गन्ध, रस, रुप, स्पर्श, शब्द

 

संध्या-बेला सन्देश

सभी मनुष्यों के तीन शरीर होते हैं, स्थूल-शरीर, सूक्ष्म-शरीर/मन-बुद्धि व कारण-शरीर/स्वभाव। मनुष्य अपने जीवन में जिस शरीर को विशेष महत्व देता है, बस, उसी निर्णय पर ही उसके बड़े भविष्य का निर्माण होता है.....सुधीर भाटिया फकीर

24 तत्वों का ब्रह्मांड व 3 शरीर + 24 धंटे के दिनरात - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-865)-15-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

एक साधारण मनुष्य अपने जीवन में 5 विषय-भोगों को अघिक से अधिक भोगने के लिए दिन-रात भाग-दौड करता हुआ जितनी भौतिक उन्नति कर भी लेता है, ऐसी सारी उन्नति मरने के साथ ही समाप्त हो जाती है, जबकि आध्यात्मिक उन्नति मरने के बाद भी सदा सुरक्षित बनी रहती है.....सुधीर भाटिया फकीर

सतयुग:- तप, पवित्रता, दया, सत्य

 

सन्ध्या-बेला सन्देश

अनुशासित व व्यवस्थित दिनचर्या निरन्तर जीवन में बनी रहने से ही सात्विक अन्तकरण/स्वभाव बनता है, जो रजोगुण के आकर्षणों को मर्यादा में रखते हुए मनुष्य को तमोगुण में गिरने से अवश्य ही बचाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

मेलों की चकाचौंध को समझें ! - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-864)-14-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

शास्त्रों में मन को ही बन्धन व मोक्ष का प्रमुख कारण कहा गया है। इसलिए सभी मनुष्यों को सत्संग सदा ही श्रद्धापूर्वक करना होगा, यदि कानों के साथ मन सुनता ही नहीं और मन विषय-भोगों की स्मृति में ही धूमता रहता है, तब ऐसी स्थिति में सत्सँग से हमें कोई लाभ हो नहीं पाता, इसीलिए हमारे स्वभाव या दिनचर्या में कोई सकारात्मक परिवर्तन नहीं आता.....सुधीर भाटिया फकीर

भगवान सर्वज्ञ और जीव अल्पज्ञ

 

संध्या-बेला सन्देश

प्रकाश को सदा ज्ञान से जोड़ा जाता है, जैसे सूर्य अपना प्रकाश किरणो के जरिए बिखेरने में कभी भी भेदभाव नहीं करता, उसी प्रकार एक विवेकशील महापुरुष भी अपना ज्ञान समाज के सभी वर्गों में बिना किसी भेदभाव के देते रहते हैं, ताकि कोई भी मनुष्य अज्ञानता में नहीं रहे.....सुधीर भाटिया फकीर

सात्विक-संस्कारों की प्रधानता (सुख-शांति) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-863)-13-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

सभी मनुष्य अपने स्थूल-शरीर की इन्द्रियों से कर्म करते हुए दिखाई तो देते हैं, लेकिन इनके पीछे सूक्ष्म-शरीर के मन और बुद्धि की प्रेरणा व कारण-शरीर में बने हुए संस्कारों की बाध्यता ही होती है। इसलिए हम सभी मनुष्यों को सत्संग करते हुए अपने मन और बुद्धि को सदा ही परमात्मा के चिंतन में लगाए रखना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य:- उप + योग, भोग, योग

 

स्थूल-शरीर एक कच्चा-घड़ा - सुधीर भाटिया फकीर,(कक्षा-862)-12-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

इस दुनिया में अधिकांश लोग परमात्मा की सत्ता को प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से मानते ही हैं, लेकिन परमात्मा को यथार्थ रूप से जानने वाले इंसान तो केवल गिनती के ही हैं, फिर बिना जानने वाले मनुष्य अंधविश्वास की गहरी खाई में गिर जाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

शब्द/1%, अर्थ/10%, ज्ञान/100%

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

हम सभी जीवात्माएं स्वभाव से ही ज्ञानस्वरुप हैं यानी ज्ञान आत्मा का दिव्य गुण है, लेकिन मनुष्य योनि में हम प्रकृति के पदार्थों को मर्यादा से अधिक भोगने के कारण हमारा ज्ञान आवृत/ढक जाता है, जो सत्संग करते रहने से अज्ञानता क्रमश: समाप्त होती जाती है.....सुधीर भाटिया फकीर

"वर्तमान" एक भविष्य की नीवं - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-861)-11-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

एक साधारण मनुष्य अक्सर मृत्यु पर बात करने से डरता भी है और बचता भी है, जबकि मृत्यु एक निश्चित धटना है, जिसे स्वीकार किए बिना तो निष्काम कर्म शुरु ही नहीं होते, जो आध्यत्मिक यात्रा की शुरुआत हैं, तब ऐसी स्थिति में भगवान की भक्ति होना तो बहुत ही दूर की बात है.....सुधीर भाटिया फकीर

श्रद्धा:- तात्कालिक-स्थायी

 

संध्या-बेला सन्देश

मनुष्य योनि में किए गए सकाम-कर्मों के आधार पर ही प्रकृति हमें नंबर/फल देती है। हमें शास्त्रों में बताए गए विहित-निषेध कर्मों को पढ़कर/समझ कर ही अपने कर्मों को करना होगा, ताकि हम पाप-कर्मों से तो कम से कम अवश्य ही बच सकें.....सुधीर भाटिया फकीर

एकान्त - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-860)-10-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

केवल मनुष्य योनि में ही सतोगुण बढ़ाये जाने का एक अवसर मिलता है और जीवन में सतोगुण बढ़ाने के लिए सूर्य निकलने से पूर्व 2 घंटे 40 मिनट पहले जरुर उठ जाना चाहिए। ऐसा स्वभाव/संस्कार जितना अधिक मजबूत होगा, उतने अनुपात में ही मनुष्य पाप-कर्मों से बच सकता है, अन्यथा ?..... सुधीर भाटिया फकीर

कलयुगी मन:- विषयों की प्रधानता-बुद्धि की गौणता

 

संध्या-बेला सन्देश

सभी मनुष्यों में सुख पाने की प्रवृति सदा बनी ही रहती है, जिसमें कोई बुरी बात भी नहीं है, लेकिन यह बुराई तब बन जाती है, जब मनुष्य अपने सुख के लिये अन्य जीवों को दुख देने लगता है, तब इन किये गए पाप-कर्मों का हमें भी दुख रूपी फल भोगने ही पड़ते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

मन-बुद्धि और मस्तिष्क ? - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-859)-09-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

प्रकृति के 3 गुण सतो + रजो + तमोगुण नित्य होने के बावजूद भी जड़ बताये गये हैं। प्रकृति के सभी पदार्थ तामसी हैं और सभी पदार्थों का अंतिम परिवर्तन नाश होना ही है, फिर भी मनुष्य इन्ही नाशवान पदार्थों के लिए कर्म ही नहीं, विकर्म/पाप भी करता हुआ स्वयं ही अपनी अधोगति का रास्ता बना लेता है.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

हम सभी भाई-बहनों को अपने जीवन में धार्मिक कर्मकांड करते रहना चाहिए। इन कर्मकांडों को, मनुष्य भले ही भयपूर्वक करे, इनको करते रहने से भी मनुष्य पाप-कर्मों से तो बच ही जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

शब्दों की वापसी, नहीं ?

 

सतोगुण एक छाता - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-858)-08-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

मनुष्य योनि में ही हमारे अन्तकरण में शुभ-अशुभ संस्कार बनते भी हैं और बिगड़ते भी हैं। इन संस्कारों की स्थिति पर पैनी नजर बनाए रखनी चाहिए। बलवान संस्कार हमारे स्थूल शरीर को कर्म करने की प्रेरणा ही नहीं देते, बल्कि कर्म करने को बाध्य भी कर देते हैं, क्योंकि कुसंग प्रथम क्षण से ही बलवान संस्कार बनाता है, जबकि सत्संग ?.....सुधीर भाटिया फकीर

5 विषयों (गन्ध, रस, रुप, स्पर्श, शब्द) का वेग

 

संध्या-बेला सन्देश

प्रकृति के सभी जीवों के शरीरों की आवश्यकताएं होती हैं, जबकि मनुष्य योनि में हम अपने जीवन में भोग प्रेरित इच्छाएं बना लेते हैं, फिर इन भोग-इच्छायों को बढ़ाते रहने से अंतत: मनुष्य अपने दुखों को ही बढ़ा लेता है.....सुधीर भाटिया फकीर

परमात्मा और पदार्थों का आपके जीवन में अनुपात - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-857)-07-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

हम सभी मनुष्यों की आत्मा, जो 3 शरीरों के बन्धनों से बन्धी हुई है। यह तीनों बन्धन केवल मनुष्य योनि में ही साधना करते हुए समाप्त किये जा सकते हैं, शेष अन्य किसी भी योनि में नहीं, जिसका आरम्भ निष्काम भाव से कर्म करने से ही होता है, अन्यथा मनुष्य योनि में किये गये पाप-पुण्य कर्म ही हमारे नये जन्म का निर्धारण करते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

भगवान:- ब्रह्मा, विष्णु, शंकर

 

संध्या-बेला सन्देश

हम सभी मनुष्यों के स्थूल शरीर कच्चे घड़े के समान है, जो कभी भी टूट सकते है। केवल मनुष्य योनि में ही स्थूल-शरीर के रहते हुए हम अपने कारण-शरीर से अशुभ संस्कार समाप्त करते हुए आध्यात्मिक उन्नति करते-करते परमात्मा के आनंद को क्रमश: पा सकते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

मन के फुरने - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-856)-06-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

सभी मनुष्य ही नहीं, अपितु सभी जीवात्मायें स्वाभाविक ही अनादिकाल से सदा ही दुखरहित स्थिति/परम सुख/आनंद की तलाश के लिए ही प्रयत्नशील रहती हैं, जबकि यह आनंद केवल और केवल परमात्मा को पाने से ही मिल सकेगा, अन्यथा नहीं, क्योंकि परमात्मा ही एकमात्र आनन्दस्वरुप सत्ता हैं, जिसको एक रजोगुणी संसारी मनुष्य मन से स्वीकार नहीं करता.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

मनुष्य योनि कर्म व साधना योनि है, जबकि एक साधारण मनुष्य अपने जन्म को बहुत ही हल्के में या मजाक में ही लेता है यानी मनुष्य योनि के महत्व को ही समझ नहीं पाता, इसीलिए तो मिले हुए मनुष्य जीवन के अवसर को यूँ ही हाथ से गँवा देता है.....सुधीर भाटिया फकीर

शरीर की 5 अवस्थायें :- बचपन, किशोर, युवा, अधेड़, बुढ़ापा

 

पाप-कर्मोंं का दुख-रुपी फल भोगना "ही-ही-ही"... - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-855)-05-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

5 भोग्य-विषय इन्द्रियाँ के, इन्द्रियाँ मन के और मन को बुद्धि के क्रमश: सैद्धांतिक रूप से अधीन रखा गया है, जबकि बुद्धि की स्वभाविक स्थिति सात्विक ही होती है, लेकिन मनुष्य सत्संग के अभाव में और रजोगुण के प्रभाव से बुद्धि को क्रमश: राजसी व तामसी बना लेता है, फलस्वरूप मन, इन्द्रियाँ भी विषय भोगों की गलियों में आवारागर्दी करने से बच पाती और मनुष्य की परमात्मा से विस्मृति हो जाती है.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

व्यवहार में ऐसा देखा जाता है कि अघिकांश कलयुगी मनुष्यों में परमात्मा के बारे में जानने की कोई जिज्ञासा नहीं होती। हाँ, ऐसे मनुष्यों की विषय-भोगों को भोगने की रूचि तो बनी रहती है, फलस्वरूप ऐसे मनुष्य सत्संग भले ही करते हुए दिखाई तो देते हैं, लेकिन ?.....सुधीर भाटिया फकीर

आध्यात्मिक/भौतिक उन्नति }} समय का फिसलना

 

मनुष्य की दिनचर्या यानी भोग प्रेरित उछल-कूद - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-854)-04-05-2022

 

सन्ध्या-बेला सन्देश

मनुष्य योनि में ही परमात्मा को जाना-समझा व पाया जा सकता है। जिसके लिए मनुष्य को अपनी दिनचर्या में सात्विकता लाते हुए कर्मयोग व ज्ञानयोग में मजबूती लाते हुए भक्तियोग में स्थित हो परमात्मा से जुड़ना होता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य का जीवन सार्थक हो पाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

दर्शक और दृष्टा में भेद - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-853)-03-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

अक्सर एक साधारण मनुष्य को पाप-कर्म छुड़वाने के लिए ही पुण्य-कर्म करने की एक शिक्षा दी जाती है, जबकि पाप-कर्म और पुण्य-कर्म दोनों ही बार-बार के जन्मों का कारण माने गये है। केवल निष्काम भाव से कर्म होने से ही हमारी आध्यात्मिक यात्रा में उन्नति होती है.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

सँसार में अक्सर ऐसा देखा जाता है कि मनुष्य द्वारा अधिक विषय-भोगों को भोगने के साथ-साथ मन के विकार भी बढ़ने लगते हैं। यह विकार ही ऐसे छिद्र हैं, जो मनुष्य द्वारा किये गये सत्संग को प्रभावहीन करते जाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य का बेलगाम रजोगुण ही तमोगुण में गिराता है।

 

प्रतिदिन चार-युग आते-जाते हैं - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-852)-02-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

हम सभी मनुष्यों को अपने जन्म और भविष्य में होने वाली मृत्यु पर गहरा चिन्तन करने मात्र से ही वर्तमान जीवन का महत्व अपने आप ही समझ में आ जाता है और मनुष्य का संसार से वैराग्य व भगवान से प्रेम हो जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

संसार में एक बात निश्चित तौर पर स्वीकार की जाती है कि माया के सुख रुपी फलों को भोग कर आज तक किसी भी मनुष्य की तृप्ति और कल्याण नहीं हुआ और न ही भविष्य में कभी यह संभव हो सकेगा, फिर भी इन सुखों की प्राप्ति के लिए पाप-कर्म करने से परहेज नहीं करता ?.....सुधीर भाटिया फकीर

कर्मों की पेटियाँ

 

3 गुणों का गणित - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-851)-01-05-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

सभी संसारी मनुष्य आज नहीं तो कल, इस बात को स्वीकार कर ही लेते हैं, कि संसार के विषय-भोगों को चखना तो बहुत आसान है, जबकि इनसे छूट पाना बहुत ही कठिन है, लेकिन फिर भी निरंतर सत्संग करते रहने से इन विषय-भोगों से क्रमश: वैराग्य होना संभव होने लगता है.....सुधीर भाटिया फकीर