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Showing posts from September, 2021

कार्य-कारण

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

अक्सर लंबे समय तक रुके हुए पानी में विषैले जीव जन्म ले लेते हैं, उसी तरह बहुत अधिक धन का संग्रह भी मनुष्य में अधिक विकारों को जन्म दे देता है, जिसके फलस्वरूप हमारा स्वयं का पतन होने लगता है.....सुधीर भाटिया फकीर

वृध्दावस्था एक वरदान या अभिशाप - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-637)-30-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश स्थूल पदार्थों के सूक्ष्म तत्व क्रमश: गन्ध, रस, रूप, स्पर्श और शब्द ही हैं, जो हम सभी मनुष्यों के भोग विषय कहलाते हैं। इन सभी विषयों के भोगों में रस/सुख अस्थायी है, ऐसा ज्ञान मन में स्थिर होने पर ही इन विषयों के प्रति अरुचि और स्थायी सुख/आनंद/भगवान की तलाश शुरू होती है, उससे पूर्व नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

सत्सँग यानी बुझा हुआ दीपक जलाना

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मनुष्य योनि में साधना करते हुए जब परमात्मा का पूर्ण ज्ञान-विज्ञान तत्व रुप से समझ में आ जाता है। तब ऐसी स्थिति में मनुष्य का भौतिक विषयों के प्रति सहज ही अरुचि पैदा होने से परमात्मा की भक्ति आरंभ होती है.....सुधीर भाटिया फकीर

असावधानी और प्रमाद (90% पाप कर्मों की जननी) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-636)-29-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

जब तक मनुष्य के मन में विषय-भोगों (गन्ध, रस, रुप, स्पर्श व शब्द) को भोगने की वासना बनी रहती है, तब तक हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संसार से ही जुड़े रहते हैं। तब ऐसी स्थिति में परमात्मा से हमारी शुद्ध भक्ति आरंभ ही नहीं हो पाती और हमारा जन्म-मरण 84,00000 योनियो कर्मों व संस्कारों के अनुसार होता ही रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मनुष्य के 5 विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार ही हम मनुष्यों से प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से कम-अधिक पाप कर्म करवाते ही रहते हैं, जबकि निरन्तर सत्संग किये बिना मन के विकार दूर नहीं होते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

कर्म : प्रारब्ध, संचित, क्रियमाण

 

पदार्थ-क्रिया में सम्बन्ध, ज्ञान-भक्ति में सम्बन्ध - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-635)-28-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रकृति जड़ है, जिसमें सूर्य के बिना अंधकार सदा ही बना रहता है और अन्धकार में हमारा तन ठोकरें खाता है, जबकि सत्संग के अभाव में अज्ञानता बनी रहती है और अज्ञानता में मन ठोकरें खाता है, फिर भी एक साधारण मनुष्य प्रकृति के भोगों में रह कर खुश होता है और सत्संग में...?.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सभी मनुष्यों को सर्वप्रथम अपने जीवन की दिनचर्या को अनुशासित व व्यवस्थित रखना होगा, तभी जीवन में सात्विकता आने लगेगी, तभी परमात्मा के सत्संग में मन सहज ही लगने लगता है, अन्यथा...?....सुधीर भाटिया फकीर

मन एक नौकर या मालिक

 

विष + यों (GRRSS) का चिन्तन - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-634)-27-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रकृति की 84,00000 योनियो में केवल मनुष्य योनि में ही हम प्रकृति के 3 गुणों, सतो, रजो, तमो से बंधते हैं, हमें तमोगुण से परहेज, रजोगुण मर्यादा में और सतोगुण का अधिक से अधिक संग करना है, ताकि हमारा सूक्ष्म + कारण शरीर पवित्र हो अर्थात् हमारा जीवन सफल व सार्थक हो जाये.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मनुष्य योनि में ही हम अपने कारण शरीर में प्रकृति के गुणों का अनुपात + - कर सकते हैं, अर्थात् मनुष्य योनि में ही हम सतोगुण का अधिकाधिक संग करते हुए आध्यात्मिक यात्रा आरम्भ कर मायातीत भी हो सकते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

परमात्मा पास या दूर

 

कर्मों का विपाक और संस्कारों का सम्बन्ध - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-633)-26-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी मनुष्यों की स्कूल व कॉलेज में जाकर पढ़ने-लिखने से केवल बुद्धि विकसित होती है, जबकि लंबे समय तक निरंतर सत्संग करते रहने से विवेक-शक्ति जागृत होना आरंभ होती है. विवेक-शक्ति जागने से ही परमात्मा का ज्ञान-विज्ञान समझ में आता है, बुद्धि से नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या बेला संदेश"

जीवन में सेवा, सत्संग, स्वाध्याय निरंतर करते रहने से ही मनुष्य अपनी आध्यात्मिक उन्नति को को एक दिशा दे सकता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य पाप कर्मों से भी बचा रहता है और अपने मिले हुए जीवन को सफल व सार्थक कर लेता है.....सुधीर भाटिया फकीर

कुदृष्टि भी एक पाप है।

 

"सात्विक संदेश"

अपने जीवन की दिनचर्या अनुशासित व सात्विक बनाने के लिए सर्वप्रथम भगवान, आत्मा व प्रकृति के यथार्थ ज्ञान को समझें। इस दिशा में आप सभी भाई-बहनों का "आध्यात्मिक ज्ञानात्मक चैनल" www.youtube.com/c/SudhirBhatiaFAKIR (+632वीडियो) व "ज्ञान-सागर" www.sudhirbhatiafakir.com में बहुत-बहुत स्वागत है।  आपका आध्यात्मिक मित्र सुधीर भाटिया फकीर

क्रियमाण कर्म +++ 》 संचित कर्म 》प्रारब्ध - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-632)-25-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी मनुष्यों को अपने मिले हुए जीवन में सत्संग करते रहना चाहिए, क्योंकि ज्ञान के अभाव में मनुष्य के कर्म भी सही दिशा में हो नहीं पाते। जबकि निरंतर सत्संग करते रहने से ही परमात्मा का ज्ञान-विज्ञान समझ में आता है, जो भक्ति का बंद दरवाजा खोल देता है.....सुधीर भाटिया फकीर

पशु की दौड़ अन्न के लिये-मनुष्य की दौड़ धन के लिये

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हम सभी मनुष्यों के पास मिले हुए जीवन की सांसे निश्चित हैं यानी हमारे पास कर्म करने की, प्रभु का ज्ञान-विज्ञान समझने की और प्रभु की भक्ति करने का समय निरन्तर हमारे हाथों से फिसलता जा रहा है। इसपर चिन्तन करें.....सुधीर भाटिया फकीर

अशुद्ध आत्मा का अर्थ जानिए

 

स्थूल इन्द्रियों के 5 भोग-विषय (GRRSS) -सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-630)-24-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

एक साधारण मनुष्य के जीवन में धन के चले जाने पर सत्संग में मन अपने आप ही श्रद्धापूर्वक लगने लगता है, जबकि जीवन में धन अधिक आ जाने पर होने वाले सत्संग में भी क्रमश: कमजोरी आने की सम्भावनाएं प्रबल होने लगती हैं, फिर भी मनुष्य धन को ही ?.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हम सभी के स्थूल शरीर तामसी हैं, जबकि मनुष्य स्वभाव से तो राजसी है, लेकिन मनुष्य के पास सतोगुण में वृद्घि करने का एक अवसर है। इसलिए हम सभी मनुष्यों को सत्संग करते रहना चाहिए, ताकि हमारी आध्यात्मिक यात्रा आरम्भ हो सके.....सुधीर भाटिया फकीर

तन-मन-स्वभाव

 

परमात्मा से बचना (ESCAPE) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-629)-23-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी मनुष्यों को संसार प्रत्यक्ष रूप से हर जगह नजर में आता है, इसलिए सँसार के होने पर कभी भी शक नहीं होता, जबकि मनुष्य को परमात्मा प्रत्यक्ष रूप से तो मंदिर में भी नजर नहीं आता, इसलिए मन में शक होने लगता है, जबकि परमात्मा की सत्ता कण-कण में मौजूद है....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मनुष्य संसार को जितने करीब से देखता है, उसे संसारी लोगों का असली चेहरा नजर आने लगता है, जबकि दूसरी ओर हम परमात्मा के जितना करीब जाते हैं, परमात्मा की दया का एहसास होने लगता है, फिर भी एक सामान्य मनुष्य सही दिशा का चुनाव नहीं करता ?.....सुधीर भाटिया फकीर

परमात्मा की कृपा

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

स्वयं के खाने के लिये पुरूषार्थ करना तामसी प्रवृति है। स्वयं + परिवार के अन्य सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पुरूषार्थ करना राजसी प्रवृत्ति है, जबकि प्रकृति के सभी जीवों की आवश्कताओं की पूर्ति के लिए यथासंभव पुरूषार्थ करना ही सात्विकता है.....सुधीर भाटिया फकीर

अच्छे संस्कार-बुरे संस्कार - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-628)-22-09-2021

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मोह-ममता के संबंध केवल तन के स्तर पर ही लाभ-हानि के आधार पर बनते-बिगड़ते हैं, जबकि प्रीति/प्रेम आत्मा के स्तर पर ही होता है, जो लाभ-हानि की छाया से भी दूर रहते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

लोभ एक आरंभिक फिसलन

 

अज्ञानता एक अन्धकार - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-627)-21-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी मनुष्य जन्म के साथ ही एक विशेष स्वभाव लेकर आते हैं। एक साधारण मनुष्य स्वभाव से रजोगुणी होता है, लेकिन मर्यादा से अधिक भोगों को भोगने से अक्सर मनुष्य का स्वभाव बिगड़ने लगता है और अन्ततः तमोगुण में गिर जाता है, जबकि सतो का संग/सत्संग करने मात्र से मनुष्य का स्वभाव सुधरने लगता है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

प्रकृति में घटने वाली सभी परिस्तिथियाँ किसी एक जीव के लिये अनुकूल होती हैं और किसी अन्य जीव के लिये प्रतिकूल, जैसे एक मरा हुआ पशु मनुष्यों को दुर्गन्ध और गिद्ध-कौवे आदि को सुगंध देता है.....सुधीर भाटिया फकीर

परमात्मा ही पूर्ण यानी परम कहलाते हैं।

 

कर्म-फल (इच्छा-योग्यता)-सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-626)-20-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

भूतकाल की मनुष्य योनियों में या वर्तमान मनुष्य योनि में किए गए कर्मों से मिलने वाले सुख-दुख रुपी फलों को ब्रह्माण्ड की किसी भी अन्य शक्ति द्वारा बदला नहीं जा सकता। इसलिये मनुष्यों को इधर-उधर के उपायों में समय/धन गंवाने की बजाय नये कर्मों को एक अच्छी दिशा देनी चाहिए, ताकि...  ...सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

प्रकृति की 84,00000 योनियो में केवल मनुष्य ही अधिक बुद्धिमान जीव माना जाता है, फिर भी मनुष्य अपने जीवन में मरते दम तक निर्णय नहीं ले पाता कि प्रकृति के पदार्थो से मात्र हाय-हैलो ही रखनी है यानी उन्हे गले नहीं लगाना है, अन्यथा ?.....सुधीर भाटिया फकीर
 

गीता:- पड़ी है/1%, पढ़ी है/10%, समझी है/100% - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-625)-19-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रकृति के नियमों के अनुसार सभी पदार्थों का अंतिम परिवर्तन नाश होना ही होता है, फिर भी मनुष्य इन्ही नाशवान पदार्थों के लिए कर्म ही नहीं, विकर्म/पाप कर्म करने से परहेज नहीं करता, जबकि दूसरी ओर मिले हुए पदार्थों का सीमा से अधिक भोग करने में हमारी इंद्रियां सदा समर्थ नहीं रहती.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

गर्भावस्था, बचपन, युवा व वृद्धावस्था आदि को शरीर की अवस्थाएँ माना जाता है, जबकि मन-बुद्धि की स्थितियाँ सात्विक, राजसी या तामसी होती हैं, जो हमारे जीवन के अधिकांश कर्मों को पुण्य-पाप करने की प्रेरणा देती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

तमोगुण यानी अन्धकार/अज्ञानता

 

योग:- तन/1%, वाणी/10%, मन/100% - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-624)-18-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य अपने जीवन में शरीर की आवश्यकताओं से अधिक जो कुछ भी चाहता है, उसे आप काम/भोग ही मानो अर्थात् निरन्तर कामनाओं के बढ़ते रहने से लोभ-संग्रह की गलियोँ से गुजरता हुआ मनुष्य कब पाप-नगरी में डूब जाता है, मनुष्य को स्वयं भी पता नहीं चलता। इसपर आप भी चिन्तन करें.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हम सभी मनुष्यों को सत्संग सदा ही श्रद्धापूर्वक करना यानी सुनते समय मन को भी सदा शामिल रखना चाहिए, यदि मन सुनता ही नहीं और मन विषय-भोगों की स्मृति में रहता है, तब ऐसे में किये गये सत्सँग से हमारा स्वभाव नहीं सुधरता.....सुधीर भाटिया फकीर

सुख-कारण-दुख

 

आत्मा:- विद्दुत प्रवाह व सिम कार्ड - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-623)-17-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रकृति को ही माया भी कहा जाता है। माया का अर्थ है कि जो हमें दिखाई तो देती है, लेकिन वास्तव में नहीं होती। यह प्रकृति त्रिगुणात्मक है अर्थात् प्रकृति में 3 गुण सतोगुण + रजोगुण + तमोगुण नित्य बने रहते हैं। मनुष्य जिस गुण का अधिक संग करता है, उसी गुण का रंग उसका स्वभाव बन जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर.

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मृत्यु को ह्रदय से स्वीकार करने पर ही निष्काम भाव से कर्म होने आरम्भ होते हैं, जो आध्यत्मिक यात्रा की शुरुआत करते हैं, फिर परमात्मा का ज्ञान और परमात्मा की भक्ति आरंभ होती है.....सुधीर भाटिया फकीर
 

रजोगुणी मनुष्य की स्थिति:- लाभ/0, हानि/0 》 --- (सुधीर भाटिया फकीर-कक्षा-622)-16-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी जीवात्माएँ, चाहे चींटी/कबूतर/हाथी या मनुष्य हो, सभी जीवों में सुख पाने की प्रवृत्ति और दुखों से निवृत्ति की इच्छा नित्य/हर क्षण बनी ही बनी रहती है, क्योंकि केवल मनुष्य की ही कर्म योनि है, इसीलिए सभी मनुष्यों को ज्ञानमयी स्थिति में रहते हुए ही सुख प्राप्ति के लिए कर्म करने चाहिए और पाप कर्मों से अवश्य ही बचना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

कलयुग में अधिकांश मनुष्य रजोगुणी या तमोगुणी स्वभाव के ही होते हैं, लेकिन मनुष्य योनि में सतोगुण में वृद्धि करने का एक अवसर है, जिसका प्रथम सरल उपाय सत्संग करना ही है.....सुधीर भाटिया फकीर

परमात्मा और प्रकृति की कृपा में अन्तर

 

इन्द्रियाँ, मन बुद्धि व आत्मा की विभिन्न स्थितियाँ - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-621)-15-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

परमात्मा ने मनुष्य योनि हमें केवल आध्यात्मिक यात्रा आरम्भ करने के लिए ही दी है, मरते दम तक मनुष्य जितनी यात्रा कर लेता है, अगली मनुष्य योनि में आध्यात्मिक यात्रा उस बिन्दु विशेष से आगे की ही करनी होती है अर्थात् पुरानी आध्यात्मिक यात्रा सुरक्षित बनी रहती है, जबकि भौतिक उन्नति मरने के साथ ही समाप्त हो जाती है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

अधिक सुखों को भोगने की इच्छाएं ही मनुष्य को पदार्थों का संग्रह करने के लिये उकसाती है और पदार्थों का संग्रह करते-करते मनुष्य से कब पाप कर्म होने आरंभ हो जाते हैं, मनुष्य को स्वयं भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर

सँसार का प्रवाह और प्रलय

 

पुण्य-कर्म:- तामसी, राजसी, सात्विक - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-620)-14-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रकृति मनुष्य योनि में ही किए गए सकाम कर्मों के आधार पर नंबर/फल देती है, जबकि भगवान मनुष्यों द्वारा किये गये निष्काम कर्म, आध्यात्मिक ज्ञान व भक्ति के आधार पर ही नंबर/फल/कृपा करते हैं, इसलिये परमात्मा से जुड़ने के लिए सदा निष्काम भाव से ही कर्म करने चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

जब तक मनुष्य की मन में पांच भोग-विषयों (गन्ध, रस, रुप, स्पर्श, शब्द) को भोगने की वासना बनी रहती है, तब तक हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संसार से ही जुड़े रहते हैं, तब ऐसे में परमात्मा से हमारा योग हो नहीं पाता.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रभु को 1 मानो और स्वयं को 0 मानो

 

मनुष्य जीवन:- निरर्थक (रजोगुण+तमोगुण), सार्थक (सतोगुण) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-619)-13-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी देशों के सभी मनुष्यों में वृद्धावस्था का आना एक सच्चाई है, लेकिन अन्य देशों की तुलना में भारत में लगभग 80-90% लोगों का बुढ़ापे में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सत्संग करने में कुछ रुचि बनने लगती है, भले ही आरंभिक सत्संग बेमन से होता है, जबकि अन्य देशों में ऐसी प्रवृति कम रहती है.....सुधीर भाटिया फकीर

पहले प्रभु को जानिए, फिर मानिये

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सभी मनुष्यों को ज्ञानमयी स्थिति में रहना चाहिए, ताकि हम पाप कर्मों से बच सकें, क्योंकि सभी मनुष्यों द्वारा किए गए पाप कर्मों पर प्रकृति की पैनी नजर सदा ही बनी रहती है.....सुधीर भाटिया फकीर

कर्मों का विपाक - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-618)-12-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्यों द्वारा धार्मिक कर्मकांड करते रहने से भी परमात्मा से जुड़ना आसान होता है, भले ही यह एक आरंभिक शुरुआत है, मंजिल नहीं, लेकिन 99% लोग इन कर्मकांडों को भय या लोभ से ही करते हैं, ज्ञानपूर्वक नहीं करते, फलस्वरूप आध्यात्मिक यात्रा आरंभ ही नहीं हो पाती.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश

सभी मनुष्यों का भौतिक व आध्यात्मिक ज्ञान अलग-अलग स्तर के होते हैं, जैसे शिक्षा की अलग-अलग कक्षायें होती हैं, इसी कारण सभी मनुष्यों के कर्मों में भी अन्तर देखा जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

एकाग्रता के लाभ

 

अर्थ (धन) का सही अर्थ समझें, अन्यथा....अनर्थ - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-617)-11-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रकृति के सभी जीव/आत्माएं परमात्मा का ही अंश है। सभी जीव जन्म से ही सुख चाहते हैं, दुख कोई नहीं चाहता। इसलिए जैसा व्यवहार हम स्वयं के लिए नहीं चाहते, वैसा व्यवहार हमें अन्य जीवों के प्रति भी नहीं करना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

भौतिक प्रकृति एक यन्त्र

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

आज के कलयुग में साधारणत सभी मनुष्यों में कम-अधिक मात्रा में काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार रुपी विकार रहते ही हैं। मनुष्य योनि में ही हम निरंतर सत्सँग करते हुए इन विकारों पर विजय पा सकते है.....सुधीर भाटिया फकीर

जीवन के कठिन फैसले - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-616)-10-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

परमात्मा केवल मनुष्यों से ही नहीं, बल्कि प्रकृति के सभी जीवों से प्रेम करते हैं, जबकि सँसार में अक्सर एक मनुष्य स्वार्थ से प्रेरित होकर ही दूसरे मनुष्यों से प्रेम करता हुआ दिखाई देता है, उससे पूर्व नहीं। जबकि परमात्मा से प्रेम होने पर अन्य मनुष्यों से ही नहीं, बल्कि प्रकृति के सभी जीवों के प्रति दया बनी रहती है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

संसार और परमात्मा में बहुत गहरा फासला है, जिसे एक साधारण मनुष्य अपने पूरे जीवन काल में भी समझ नहीं पाता और जब कुछ समझ में आने लगती है, तब जीवन समाप्ति की ओर होता है.....सुधीर भाटिया फकीर

जीवन एक गणित की किताब

 

अच्छी सरकारें (खड्डे)-अच्छे संस्कार (विकार) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-615)-09-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

धार्मिक कर्मकांड करना एक आरंभिक प्रक्रिया है, जैसे बच्चे को प्ले/नर्सरी स्कूल भेजा जाता है, ताकि बच्चा कुछ सीखने लगे, जबकि आगे की एक लंबी यात्रा जैसे प्राइमरी स्कूल, हाई स्कूल, कॉलेज आदि जाकर पढ़ना होता है। इसी तरह कर्मकाण्ड के बाद एक लम्बी आध्यात्मिक यात्रा है.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य योनि में ही स्वभाव + - होता है, कैसे ?, जानिए

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मनुष्य योनि पाकर ही मनुष्य अपनी आध्यात्मिक यात्रा आरम्भ कर सकता है, जिनका आरंभ धार्मिक कर्मकांड करने से ही होता है। इन कर्मकांडों को भले ही लोभ से किया जाये या भय से, इनको करने मात्र से ही मनुष्य अधोगति से तो बच ही जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य का जीवन: सत्संग,कुसंग,चर्चा,मनन,संस्कार - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-614)-08-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

एक साधारण मनुष्य अपने वर्तमान जीवन के समय में भूतकाल की यादों में या भविष्य की कल्पनाओं में ही खोया रहता हुआ अपना वर्तमान समय यूँ ही गवांता रहता है, जिसके फलस्वरूप उसके सुन्दर भविष्य का निर्माण नहीं हो पाता, इसलिये अपने जीवन में सात्विकता बढ़ाते जायें, ताकि भविष्य व बडा भविष्य दोनों ही क्रमश: सुन्दर बनते जायें.....सुधीर भाटिया फकीर

दिखावटी जीवन

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

जीवन में मिलने वाले अधिकांश सुख-दुख हमारे स्वयं द्वारा किये गये पुण्य-पाप रुपी कर्मों का ही फल होते हैं। इसलिए हम सभी मनुष्यों को सत्सँग करते रहना चाहिए, ताकि ज्ञानमयी स्थिति में रहते हुए पाप कर्मों से तो अवश्य ही बचा जा सके.....सुधीर भाटिया फकीर

राम नाम ही सत्य है, इसे आज ही ह्रदय से स्वीकारें - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-613)-07-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

संसार में प्राय ऐसा देखा जाता है कि एक साधारण मनुष्य भीड़ से जल्दी प्रभवित होता है, जबकि यह भी एक सच्चाई है कि भीड़ में गिनती के ही समझदार मनुष्य होते हैं, शेष भीड़ मूर्खों की यानी झूठों की ही होती है। इसलिए एक समझदार मनुष्य को अपनी आध्यात्मिक उन्नति करने के लिए भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मनुष्य योनि पाकर ही हमें परमात्मा को जानने का एक अवसर मिलता है, अन्य किसी भी योनि में यह अवसर ही नहीं दिया जाता, यानी हम सभी मनुष्यों को परमात्मा को जानने-समझने और पाने के अवसर का अवश्य ही लाभ उठाना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

सर्वप्रथम सूर्य के जागने से पहले आप स्वयं जाग जायें

 

जीवन में उमंग-उल्लास - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-612)-06-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य से नीचे की 80,00000 योनियों के असंख्य सभी जीव (वृक्ष, कीड़े-मकोड़े, कीट-पतंगे, पक्षी व पशु) मनुष्य बनने की लाईन में लगे हुए हैं, जबकि मनुष्य अज्ञानतावश छोटे-छोटे विषय-भोगों के सुख भोगने के लिये बड़े-बड़े पाप कर्म करता हुआ नीचे की योनियों में लौटने का अपना दुर्भाग्य खुद ही लिख रहा है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हम सभी मनुष्यों के 3 शरीर होते हैं, स्थूल, सूक्ष्म व कारण शरीर। स्थूल शरीर/तन हर वक्त बूढ़े होते जाते हैं और एक दिन मर/समाप्त भी हो जाते हैं, यही प्रकृति का एक नियम है, जबकि हमारा सूक्ष्म शरीर/मन-बुद्धि व कारण शरीर की मृत्यु नहीं होती, जहाँ कर्माशय + संस्कार रहते हैं, जो अगले नये जन्म का कारण बनते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रकृति और जीवात्मा (एक विजातीय सम्बंध)

 

पक्षियों से मिल-बाँट कर खाने की एक सीख - सुधीर भाटिया फकीर-05-09-2021

 

पक्षियों से मिल-बाँट कर खाने की एक सीख - सुधीर भाटिया फकीर-05-09-2021

 

मनुष्य जीवन की गति:- पुण्य/साधना, भोग/पाप - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-610)-05-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

एक कहावत है कि जैसी मति, वैसी गति। मनुष्य अपने जीवन में सत्सँग करते हुए सात्विक बुद्धि/मति भी बना सकता है और सत्सँग के अभाव में यानी कुसंग करते हुए तामसी/राजसी बुद्धि बनाने में भी स्वतंत्र है। मनुष्य जैसी मति बना लेता है, फिर वैसी ही गतिविधियाँ/कार्य/कर्म (पाप-पुण्य) होने से मरने पर वैसी ही सहज गति होती है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला संदेश"

जीवन में स्थाई वैराग्य जितने अनुपात में होगा, फिर उतने ही अनुपात में लिया हुआ ज्ञान मन में टिकता है, फिर टिका हुआ ज्ञान ही मन को प्रभु भक्ति में लगाता है, अन्यथा जीवन में कर्मकाण्ड होते ही दिखाई देते हैं, जिनसे कोई विशेष आध्यात्मिक उन्नति नहीं होती.....सुधीर भाटिया फकीर

विवेक-वैराग्य

 

परमात्मा-आत्मा का अटूट सम्बन्ध - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-609)-04-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

आत्मा और प्रकृति परमात्मा की ही दो शक्तियाँ बताई गयी हैं, प्रकृति जड़ है और आत्मा चेतन है। जैसे चेतन शक्ति आत्मा के रहते हुए स्थूल शरीर चेतनमय लगते हैं, वैसे ही सम्पूर्ण भौतिक प्रकृति जड़ होते हुए भी परमात्मा की ब्रह्मशक्ति द्वारा क्रियाशील दिखती है.....सुधीर भाटिया फकीर

क्या आपका रजोगुण, सतोगुण द्वारा नियंत्रित है ?

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

एक साधारण मनुष्य स्वभाव से तो रजोगुणी है, लेकिन निरन्तर सत्संग करते रहने से उसे सतोगुणी बनने का एक अवसर है, जबकि कुसंग करते ही तमोगुणी बनते भी देर नहीं लगती, फिर यही बड़ा हुआ तमोगुण मरने के बाद अधोगति करवा देता है......सुधीर भाटिया फकीर

जीवन एक प्रबन्धन - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-608)-03-09-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

परमात्मा एक ही है और सभी जीवों/मनुष्यों का है, किसी एक व्यक्ति/समुदाय/देश का नहीं है यानी परमात्मा सभी जीवों के हितैषी हैं। परमात्मा अनादिकाल से अनेकों अवतार लेकर प्रकट होते आये हैं, लेकिन सभी अवतारों में एक ही मूल तत्व यानी एक ही सत्ता मौजूद रहती है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या बेला सन्देश"

सभी इन्द्रियाँ मन के अधीन होती हैं और मन बुद्धि के अधीन यानी मन को सदा बुद्धि के अधीन ही रखना चाहिये, ताकि मन विषय भोगों की गलियों में आवारागर्दी करने से बच सके, क्योंकि भोगों में लिप्त मन परमात्मा का चिन्तन नहीं कर सकता.....सुधीर भाटिया फकीर

क्या आप अपने कारण शरीर को जानते हैं ?

 

कारण शरीर/संस्कार, सूक्ष्म शरीर/वृतियाँ, स्थूल शरीर/इन्द्रियाँ - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-607)2-9-21

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

धन और जल दोनों का स्वभाव एक जैसा ही है, जैसे अधिक जल ढलान की ओर गिरने लगता है, वैसे ही मनुष्य के पास अधिक धन आने से मनुष्य के विषय-भोग बढ़ने से मनुष्य के पतन होने की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं। इस कड़वे सत्य पर एक साधारण मनुष्य विचार ही नहीं करता....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

अधिकांश मनुष्य भौतिक प्रकृति के भोगों को भोगने की इच्छा ही रखते हैं, न कि परमात्मा के बारे में जानने की जिज्ञासा होती है। सँसार में केवल गिनती के ही लोग हैं, जो परमात्मा को तत्व रुप से जानने-समझने का प्रयास करते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

शास्त्र और गुरु मनुष्यों को केवल प्रेरणा ही दे सकते हैं।

 

प्रारब्ध-(भोग), पुरुषार्थ-(योग) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-606)-01-09-3021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

84,00000 योनियों में केवल मनुष्य योनि में ही सत्संग करने का एक अवसर है, जिसके निरंतर करते रहने से विवेक-शक्ति जगने लगती है। सत्संग सफेद रंग की तरह धीरे-धीरे अपना असर दिखाता है, जबकि कुसंग काले रंग की तरह तुरंत अपना असर दिखाता है......सुधीर भाटिया फकीर