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Showing posts from June, 2021

"संध्या-बेला संदेश"

जो जीव जितना अचेत अवस्था में होता है, उसे क्रमश: कम दुख का बोध होता है। सभी पेड़-पौधे लगभग पूर्ण अचेत हैं, इसलिए उन्हें दुखों का कष्ट महसूस नहीं होता, जबकि हम सभी सचेत मनुष्यों को दुख की पीड़ा का पूर्ण अनुभव होता है.....सुधीर भाटिया फकीर

अपनी दिनचर्या सुधारें

 

प्रकृति (विकृति) का कार्य-काल - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-543)-30-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी मनुष्यों का मन-बुद्धि सदा ही जीवन में बने हुए लक्ष्य के इर्द-गिर्द ही प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से घूमता रहता है, क्योंकि कलयुग में अधिकांश मनुष्यों का लक्ष्य धन कमाना ही बना हुआ है, न कि धर्म कमाना। तब ऐसी स्थिति में मनुष्यों द्वारा धन कमाने में अक्सर पाप कर्म सहज ही होते रहते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

सोने व जागने का समय

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

धन नहीं होने से एक साधारण मनुष्य को दुख होता है, ऐसा तो सभी लोग जानते हैं, लेकिन धन होने से भी सुख तो मिलता नहीं, फिर ऐसी समझ या ज्ञान भी कुछ धनी लोगों को धन प्राप्ति होने के बाद ही पता चलता है.....सुधीर भाटिया फकीर

शरीर एक साधन

 

मन- बुद्धि व आत्मा की विभिन्न स्थितियाँ - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-542)-29-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

यदि आपका मन सत्संग में जाकर नहीं टिकता, तो इस मन को भोगों की गलियों में आवारागर्दी करने से नहीं रोका जा सकता, इसलिए इस मन को जबरदस्ती सत्संग में लाने का निरन्तर अभ्यास करते रहो, विश्वास कीजिये, एक दिन यही मन बिना सत्संग के नहीं रह पायेगा.....सुधीर भाटिया फकीर

सँसार का प्रवाह:- जन्म-मरण

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

व्यक्तिगत लाभ के लिये या पारिवारिक स्तर पर लाभ लेने के लिए जितने भी कर्म ( पाप-पुण्य ) किये जाते हैं, ऐसे सभी किये गये कर्मों से कोई आध्यात्मिक उन्नति नहीं होती। इसलिए कर्मों की गुणवत्ता पर अवश्य ही चिन्तन करें.....सुधीर भाटिया फकीर

संकल्प शक्ति

 

सँसार:- अभावों की एक दलदल - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-541)-28-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रकृति के 3 गुण सतो + रजो + तमो से ही 23 अन्य तत्वों में विस्तार होता है। यह दिखने वाली 23 तत्वों की सामान्य स्थूल प्रकृति प्रकट-अप्रकट होती है। हमारे-आपके जीवन में हर रोज इन गुणों के आने-जाने का एक निश्चित क्रम है। परमात्मा से प्रीति तभी हो पाती है, जब मनुष्य सतोगुण का अधिक संग करता है, अन्यथा नहीं। इस पर आप एकांत में चिन्तन करें.....सुधीर भाटिया फकीर

संग्रह यानी कीचड़

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हम सभी मनुष्यों को श्रद्धापूर्वक सत्संग करना चाहिए, यदि मन इन्द्रियों के साथ सुनता ही नहीं और अन्य विषय-भोगों में ही मानसिक रूप से विचरण करता रहता है, तब ऐसे में किया गया सत्सँग प्रभावहीन ही बना रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर

रटी-रटाई आरती

 

आत्मा के अस्थायी 84,00000 स्थूल शरीर - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-540)-27-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

जब-जब कोई मनुष्य रजोगुणी आकर्षणों में उलझ कर विषय-भोगों को भोगने में व्यस्त होने लगता है, तब ऐसी स्थिति में मनुष्य के मन से परमात्मा की विमुखता होने लगती है यानी रजोगुण पर सतोगुण का नियन्त्रण कमजोर होने मात्र से ही मनुष्य के तमोगुण में गिरने की सम्भावनाएं बढ़ने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर

आत्मा का स्वभाव

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

ऐसे इन्सान को सँसार में बेवकूफ ही समझा जाता है, जो अन्धकार को भगाने मात्र में ही अपने जीवन का अनमोल समय गवां देते हैं, जबकि अन्धकार को समाप्त करने के लिए केवल प्रकाश जलाने में ही समझदारी है.....सुधीर भाटिया फकीर

सुख-दुख

 

भगवान एक-रुप अनेक - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-539)-26-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

यह दुनिया एक मेला है। मेला कभी भी स्थायी रूप से नहीं होता। मेले की चकाचौंध सदा नहीं रहती। मेले की चकाचोंध में अक्सर बच्चे अपने मां-बाप से बिछड़ जाते हैं, जैसे मनुष्य भी आज के कलयुगी भोगों में अपने माता-पिता यानी परमात्मा को भूल चूका है यानी बिछुड़ गया है ?.....सुधीर भाटिया फकीर

सत्सँग और कुसंग

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

शास्त्रों में इस सँसार को दुखालय कहा जाता है, अर्थात् यहां कम-अधिक दुख बने ही रहते हैं। ऐसा मन से स्वीकार करने पर ही सत्संग में मन लगता है, अन्यथा नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

सत्संग से चरित्र-निर्माण

 

एक आदर्श जीवन:- तमोगुण 1%, रजोगुण 10%, सतोगुण 100%, - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-538)-25-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

अक्सर अधिकांश लोगों द्वारा यह स्वीकार कर लिया जाता है कि उनका सत्संग करने में मन नहीं लगता। यह मन सत्संग में तभी लगना आरंभ होता है, जब मनुष्य द्वारा यह स्वीकार कर लिया जाता है कि सँसार के विषय-भोगों में स्थायी सुख नहीं है, ऐसा स्वीकार करने मात्र से ही सत्संग में मन लगने लगता है.....सुधीर भाटिया फकीर

संस्कारों का वेग

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हम सभी मनुष्यों को मनुष्य योनि योग यानी साधना करने के लिए ही मिली है, न कि भोग के लिए। योग तैरने का नाम है और भोग डूबने का। इसलिए प्रकृति के सुखों को चखने से बचते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

आध्यात्मिक या भौतिक यात्रा

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रकृति के सभी असंख्य जीवों में (चाहे चींटी हो, हाथी हो या मनुष्य हो) सुख पाने की प्रवृत्ति और दुख से निवृत्ति की चाहना स्वभाव में सदा ही बनी रहती है। मनुष्यों द्वारा होने वाले सभी पाप-पुण्य कर्म भी इसी उद्देश्य से ही किये जाते हैं, लेकिन अक्सर सत्संग के अभाव में मनुष्य के कर्म दोषपूर्ण होने की संभावनाएँ अधिक बनी रहती है। इसलिए मनुष्य को अपने जीवन में सदा सत्संग करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

अष्टा प्रकृति:- 3 गुण + महतत्त्व + अहंकार + 5 तन्मात्रायें - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-537)-24-06-21

 

24 घण्टे:- तमो 1%, रजो 10%, सतो 100%

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

संसार को जानने-समझने के लिए बुद्धि की आवश्यकता होती है, जबकि परमात्मा को जानने-समझने और पाने के लिए विवेक-शक्ति चाहिए, जो केवल निरंतर सत्संग करते रहने से ही जागृत होती है, जबकि स्कूल-कालेज़ में केवल बुद्धि ही विकसित हो पाती है.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रवृति-निवृति

 

प्रकृति के गुण:- तमो + रजो (भोग), सतो-(अपवर्ग)-सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-536)-23-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

जैसे बच्चे को प्ले या नर्सरी स्कूल भेजा जाता है ताकि बच्चा कुछ सीखने लगे और घर पर करने वाली शैतानियां से बच गए, आगे की एक लंबी शिक्षा-यात्रा जैसे प्राइमरी, हाई, फिर कॉलेज आदि में जाकर पढ़ना होता है, ताकि जीवन में अच्छी नौकरी मिल सके, उसी तरह से मनुष्यों को सत्संग करने की सलाह दी जाती है, ताकि मनुष्य विषय-भोगों में डूबे नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

आवर्त आत्मा

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सभी मनुष्यों को सुखों की वर्षा में नहाने से सदा ही बचना चाहिए यानी रजोगुणी भोगों में गहरे तल पर कभी नहीं जाना चाहिए, अन्यथा सतोगुण का पकड़ा हुआ हाथ कब छूट जाता है, हमें स्वयं को भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य योनि एक किश्ती है

 

बुरे संस्कारों का विरोध - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-535) - 22-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रकृति ही परमात्मा द्वारा संचालित एक अदालत है, जहाँ मनुष्य योनि में ही किए गए पाप-पुण्य कर्मों के फलों का निर्णय होता है। इस अदालत में एक न्याय व्यवस्था है, जहाँ देर भी नहीं है और अन्धेर भी नहीं है, इसलिए हम सभी मनुष्यों को कभी भी पाप कर्म नहीं करना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

कर्माशय और संस्कार

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

परमात्मा की स्मृति सदा श्रद्धापूर्वक होनी चाहिए। यही सत्संग है, चाहे शास्त्रों को पढ़ने से हो या सुनने से, कभी बेकार नहीं जाता, फिर किये गये सत्संग का चिन्तन करते रहना चाहिए। यह चिन्तन ही एक दिन हमारा स्वभाव बनने से जीवन की दिशा में सकारात्मक परिवर्तन आ जाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

गरीबी और मौत को याद करना

 

प्रकृति के पदार्थ - सुधीर भाटिया फकीर -(कक्षा-534)-21-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

हम सभी मनुष्यों के 5 विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार ही हमें पाप कर्म करने को बाध्य कर देते हैं। मनुष्य योनि में ही हम अपने मनोविकारों पर विजय पा सकते हैं, जिसका शुभारम्भ सत्संग करने से ही होगा, अन्यथा नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रकृति के गुणों का संग

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

भूतकाल की मनुष्य योनियो में मनुष्यों द्वारा किए गए कर्मों के फल को सृष्टि की कोई भी शक्ति बदल नहीं सकती, हां, मनुष्य वर्तमान समय में नए पुरुषार्थ द्वारा क्रियामान कर्मों को अच्छी दिशा दे सकता है यानी निरंतर ऐसा करते रहने से मनुष्य बुरे कर्मों के फल के असर को भी कमजोर कर सकता है.....सुधीर भाटिया फकीर

मरने के बाद कहाँ जाना है ? - सुधीर भाटिया फकीर - (कक्षा-533) - 20-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

जीवन में निरंतर सत्संग करते रहने से ही भगवान के दिव्य गुणों का विशेष ज्ञान सुनने को मिलता है और ज्ञान ह्रदय में टिक जाने पर जीवन भर के संग्रह किए हुए धन/पदार्थ बेकार नजर आने लगते हैं, अर्थात् जीवन में की गई गल्तियों का ऐहसास होने लगता है। इसलिए हम सभी मनुष्यों को सभी बुराइयों से बचने के लिए मरते दम तक सत्संग करते ही रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

आत्महत्या और हत्या

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

कलयुग में अक्सर अधिकांश लोगों द्वारा यह स्वीकार कर लिया जाता है कि सत्संग करने में मन नहीं लगता। यह मन सत्संग में तभी लगना आरंभ होता है, जब मनुष्य का रजोगुण मर्यादा में रहता है, अन्यथा नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

संयोग और वियोग

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

कलयुग में प्राय सभी मनुष्यों का अंतिम लक्ष्य सुख की प्राप्ति का ही होता है कि उसे बड़े से बड़ा सुख मिले और सुख सदा बना रहे व सुखों को भोगने की स्थूल शरीर की इंद्रियां सदा जवान बनी रहे, किंतु भौतिक प्रकृति में सभी स्थूल शरीरों की इन्द्रियों क्रमश: शिथिल होती जाती हैं और अन्ततः स्थूल शरीरों की मृत्यु हो जाती है.....सुधीर भाटिया फकीर

कर्मकाण्ड:- एक क्रमिक विकास - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-532)-19-06-2021

 

परिस्तिथियों का सदुपयोग

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

जब-जब मनुष्य रजोगुणी विषय-भोगों को भोगने में व्यस्त होता है, अक्सर मनुष्य तब-तब परमात्मा से विमुख होने लगता है यानी रजोगुण पर सतोगुण का नियन्त्रण कमजोर होने मात्र से ही मनुष्य के तमोगुण में गिरने की सम्भावनाएं बढ़ने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर

कार्य और कारण

 

ब्रह्म-जिज्ञासा - सुधीर भाटिया फकीर - (कक्षा-531)-18-06-21

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

कलयुग में प्राय ऐसा देखा जाता है कि लगभग सभी मनुष्य धन कमाने में ही अपना अधिकांश जीवन यूँ ही गँवा देते हैं। धन कमाने के पीछे मनुष्य का लक्ष्य पदार्थों का भोग ही होता है, जबकि भोगने वाली हमारी स्थूल इंद्रियां एक सीमा के बाद कमज़ोर होती जाती है और भोग्य पदार्थ यूँ ही ? .....सुधीर भाटिया फकीर

प्रकृति के गुणों के आने का एक निश्चित क्रम

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हम सभी मनुष्य अपने जीवन में जीने की सीमित सांसें ले कर ही जन्म लेते हैं, जो जन्म के साथ ही घटने लगती हैं, अर्थात् हर पल हम सभी मनुष्यों की मृत्यु नज़दीक आती जा रही है, यानी आध्यात्मिक उन्नति करने का मिला हुआ अवसर निरन्तर हमारे हाथों से फिसलता जा रहा है.....सुधीर भाटिया फकीर

धर्म या धन का संग्रह

 

विवेक-शक्ति 《 + सात्विक बुद्धि (सुधीर भाटिया फकीर, कक्षा-530)-17-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

परमात्मा केवल मनुष्यों से ही नहीं, बल्कि भौतिक प्रकृति की 84,00000 योनियों के सभी जीवों से भी प्रेम करते हैं, लेकिन मनुष्य मरते दम तक संसारी आकर्षणों से ही प्रभावित होता है यानी सँसार से ही प्रेम करता है और अक्सर ऐसा माना जाता है कि 99% लोग संसार की ठोकरें खाकर यानी दुखों से दुखी होने से ही परमात्मा की ओर चलते हैं, उससे पूर्व नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

ब्रह्म-मुहूर्त में परमात्मा की अनुभूति

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

संसार में अक्सर ऐसा देखा जाता है कि एक मनुष्य अपनी सत्ता बनाये रखने के लिए यानी अपने आप को सफल बनाने के लिए दूसरे मनुष्यों को असफल करने से नहीं चूकता, बस, इसी प्रक्रिया में मनुष्य से कितने पाप-कर्म हो जाते हैं, स्वयं मनुष्य को भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर

तन-मन और आत्मा

 

धर्म की कसौटी क्या है ? - सुधीर भाटिया फकीर - (आध्यात्मिक कक्षा-529) - 16-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

कर्म में ही योग की सबसे अधिक आवश्यकता है, जबकि ज्ञान और भक्ति दोनों ही अभौतिक है, क्योंकि आत्मा-परमात्मा चेतन तत्व हैं और भौतिक प्रकृति के पदार्थों की प्राप्ति के लिए कर्म करना भौतिक है। परमात्मा की भक्ति का होना या स्मृति बने रहना ही योग है, अन्यथा सब भोग ही है.....सुधीर भाटिया फकीर

तन-मन - आत्मा-परमात्मा

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

एक साधारण मनुष्य स्थूल शरीर को ही अधिक महत्व देता है। इसीलिए घर के निर्माण में रसोई यानी भोजन कक्ष अवश्य ही बनाया जाता है, जबकि सूक्ष्म शरीर यानी मन के भजन के लिए साधारणतय कोई कक्ष नहीं बनाया जाता.....सुधीर भाटिया फकीर

सुखों की वर्षा में उदासीनता

 

तमोगुण के लक्षण - सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-528 - 15-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

संसारी परीक्षाओं में नकल करने की मनाई होती है, जबकि कर्म करने से पूर्व मनुष्य शास्त्रों का स्वय भी अध्ययन कर सकता है और गुरूजनों से सीख ले अपने कर्मों में सुधार ला सकता है, क्योंकि प्रकृति मनुष्य योनि में ही किए गए सकाम कर्मों के आधार पर नंबर/फल देती है, जबकि भगवान निष्काम कर्म, आध्यात्मिक ज्ञान व भक्ति के आधार पर ही नंबर देते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

छोटा स्वपन-बड़ा स्वपन

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सत्संग करने से ही ज्ञान होता है और अक्सर ज्ञान के अभाव में मनुष्य के कर्म भी सही दिशा में नहीं हो पाते यानी हमारे द्वारा कितने पाप कर्म हो जाते हैं, मनुष्य को स्वयं भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर

आवश्यकता-इच्छा और संकल्प

 

योग की स्थितियाँ:- तन/1%, मन/10%, आत्मा/100% (सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-527)-14-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

एक साधारण मनुष्य अपने जीवन में केवल सुखों को भोगने व उनके चिन्तन करने में ही अपना जीवन व्यतीत करता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य के मन-बुद्धि में परमात्मा की स्मृति क्रमश: कमजोर होने लगती है, जबकि प्रत्येक क्षण मृत्यु की स्मृति बने रहने से भी काफी हद तक हमारी भौतिक सुखों को भोगने की इच्छाएं कमजोर होती हैं और परमात्मा के प्रति भावनाएं मजबूत होने लगती हैं, जो सत्संग करने में हमारी मदद करती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

स्वर्ग-नरक

 

तन-मन और आत्मा के बोल/शब्द

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

संसार के अधिकांश लोग स्वर्ग यानी सुखों से उत्साहित होकर ही  कर्म करते हैं और नरक यानी दुखों से भयभीत होकर उस पाप कर्म को करने से डरते हैं, जबकि अपने कर्तव्यों का पालन करना सभी मनुष्यों का एक नैतिक धर्म है.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य के 3 शरीर:- स्थूल-सूक्ष्म व कारण शरीर - सुधीर भाटिया फकीर- (आध्यात्मिक कक्षा-526)-13-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मन कभी भी खाली नहीं बैठ सकता, तन की इंद्रियों को तो भय या लोभ से नियंत्रित किया जा सकता है, अर्थात् यदि यह मन सत्संग में जाकर नहीं टिकता, तो इस मन को भोगों की गलियों में आवारागर्दी करने से नहीं रोका जा सकता, इसलिए इस मन को जबरदस्ती सत्संग में लगाने का निरन्तर अभ्यास करते रहना चाहिए....सुधीर भाटिया फकीर

भोग-रोग और योग

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

भौतिक प्रकृति की 84,00000 योनियों में असंख्य जीव हैं, लेकिन सभी जीवों को अपने जीवन में सुख-दुख केवल मनुष्य योनि में ही किये गये कर्मों-विकर्मों के आधार पर ही मिलते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

जीवन एक परीक्षा केन्द्र - सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-525 - 12-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

शास्त्रों के विधान में बार-बार कहा गया है कि केवल मनुष्य योनि में ही किये हुए पाप-पुण्य कर्म लिखे जाते हैं। पुण्य कर्मों का सुख रुपी फल और पाप कर्मों का दुख रुपी फल एक निश्चित समय के बाद अवश्य ही मिलता है। इस पर बार-बार चिन्तन करें.....सुधीर भाटिया फकीर

सँसार से स्थायी वैराग्य

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

मन के 5 विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जितने अधिक प्रभावशाली होते जाते हैं, उतने ही मनुष्य के पाप-कर्म बढ़ते जाते हैं। मनुष्य इन विकारों को निरंतर सत्सँग करते रहने से ही नियंत्रण में ले सकता है, अन्यथा नहीं....सुधीर भाटिया फकीर

धार्मिक कर्मकांड

 

धन का सुख से सम्बन्ध - सुधीर भाटिया फकीर - (आध्यात्मिक कक्षा-524) - 11-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

इस सँसार में लगभग सभी मनुष्य भगवान को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से मानते ही हैं, लेकिन तत्व रुप से जानने का प्रयास करने वाले मनुष्य तो केवल गिनती के हैं, फिर ऐसे जिज्ञासु मनुष्यों का ही भगवान से प्रेम होता है, ऐसी प्रीती जगाने के लिए हम सभी मनुष्यों को अपने जीवन में निरन्तर सत्संग करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य योनि का महत्त्व

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सभी मनुष्यों का अपने जीवन में ज्ञान का स्तर अलग-अलग सीढ़ियों के समान होता है, जैसे शिक्षा के अलग-अलग स्तर होते हैं, फिर भी सभी स्तरों के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता.....सुधीर भाटिया फकीर

नियम और सिद्धांत में अन्तर

 

प्रश्नों का तर्कपूर्वक समाधान - सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-523 - 10-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि हमें स्वयं के सुधार के लिए तो मिली ही है, लेकिन अन्य जीवों के विकास में हमें किसी भी प्रकार की बाधा/अवरोध यानी उन्हें दुख/कष्ट या पीड़ा नहीं देनी है। अन्य मनुष्यों/जीवों को भयभीत करना/धमकाना या घूरकर देखना भी एक प्रकार का पाप ही है, क्योंकि हमारे इस कर्म द्वारा उन मनुष्यों/जीवों को दुख मिलता है और कर्म-सिद्धांत के अनुसार फिर भविष्य में हमें भी ऐसे किये पाप कर्मों का दुख रुपी फल भोगना ही पड़ता है.....सुधीर भाटिया फकीर

लोग क्या सोचेंगे ? या भगवान क्या सोचेंगे ?

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हम सभी मनुष्यों की कार ही एक स्थूल शरीर है। मन स्टेरिंग है और बुद्धि एक चालक है। चालक की अज्ञानता होने पर स्थूल शरीर यानी कार का दुर्घटनाग्रस्त होना निश्चित है.....सुधीर भाटिया फकीर

दीपक यानी देवता

 

मनुष्य का जीवन:- कर्मयोग 1%, ज्ञानयोग-10%, भक्तियोग-100% - (सुधीर भाटिया फकीर-कक्षा-522)-09-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

एक साधारण मनुष्य जब शास्त्रों के अनुसार यानी परमात्मा की आज्ञानुसार अपना जीवन जीता है, तो मनुष्य के जीवन में उमंग-उल्लास बना रहता है, अर्थात् जीवन एक उत्सव लगने लगता है, जबकि शास्त्रों के विरुद्ध जीवन जीने से आरम्भ में स्वयं को भी आत्मग्लानी होती है, फिर निरंतर अधर्म के मार्ग पर चलते रहने से है मनुष्य की मरने के बाद अधोगति का रास्ता बनता जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य जीवन एक कोरा कागज है।

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

भौतिक प्रकृति की सभी योनियो के सभी जीव जीवन जीने की सीमित सांसें ले कर आए हैं, जो जन्म के साथ ही घटती जाती हैं अर्थात् हर पल हम सभी की मृत्यु नज़दीक आती जा रही है, यानी हम सभी मनुष्यों का भी कर्म-ज्ञान व भक्ति करने का समय निरन्तर हमारे हाथ से फिसलता जा रहा है.....सुधीर भाटिया फकीर

भीड़ व भेड़ में समानता

 

आत्मा:- कर्ता-भोक्ता ? - सुधीर भाटिया फकीर-(आध्यात्मिक कक्षा-521)-08-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी ऋषि-मुनियों द्वारा आरंभ से ही सभी शास्त्रों में सभी शब्दों को कुछ इस प्रकार से रचा गया यानी लिखा गया कि प्रत्येक शब्द के भीतर में ही अर्थ छिपा दिया गया, ताकि एक साधारण मनुष्य को एक शिक्षा यानी संदेश मिले, जैसे विषयों में यानी भोगो को मर्यादा से अधिक भोगने से विष यानी जहर की प्राप्ति होती है यानी हमें हानि ही देते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

अन्तिम या आदि जन्म

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

सँसार के अन्धेरे में सभी मनुष्यों के तन ठोकरें ही खाते हैं। इस सच्चाई को सभी मनुष्य स्वीकार भी करते हैं, लेकिन मन के अन्धेरे में यानी अज्ञानता में मन भटकता है, इस बात को स्वीकार करने में जीवन यूँ ही बीत जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

परमात्मा एक रहस्य

 

ज्ञान एक शिक्षा-संदेश - सुधीर भाटिया फकीर-(आध्यात्मिक कक्षा-520) -07-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

हम सभी मनुष्यों को अपने स्थूल शरीर की आवश्यकताओं को सदा ही सीमा में रखना चाहिए। इन आवश्यकताओं को कभी भी इच्छा नहीं बनने देना चाहिए, अन्यथा यह भोग इच्छाएं ही हम मनुष्यों को देर-सबेर पाप कर्मों में धकेल देती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

योग और भोग

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हम सभी मनुष्यों को प्रतिदिन ब्रह्म-मुहूर्त में गीता ज्ञान रुपी जल से अवश्य ही स्नान कर लेना चाहिए, जिसके फलस्वरूप दिनभर संसारी आकर्षणों का मल मनुष्य को मैला नहीं कर सकता.....सुधीर भाटिया फकीर

धर्म व धन का एक सन्तुलन

 

धर्म:- विद्या, दान, तप, सत्य - (सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-519)-06-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी धार्मिक कर्मकांड भले ही लोभ से किये जायें या भय से किये जायें, इनका केवल इतना ही लाभ होता है कि हम अपने जीवन में अधोगति से तो बच ही जाते हैं, अर्थात् - में जाने से बच जाते हैं, भले ही 0 के आस-पास ही रहते हैं यानी आध्यात्मिक उन्नति में गति नहीं आ पाती.....सुधीर भाटिया फकीर

सुख, सुविधा, स्वाद, सम्मान व सत्ता

 

कर्म और क्रिया में भेद

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

आहार, नीन्द, मैथुन व भय आदि को पशु-वृति कहा गया है। यदि मनुष्य भी अपने जीवन में इन्हीं भोग-वृतियों में ही लिप्त रहता हुआ अपना जीवन व्यतीत करता है, तो मनुष्य सत्संग करने के मिले हुए अवसर को खो देता है.....सुधीर भाटिया फकीर

जानिये, कैसे मनुष्य प्रतिदिन पाप-कर्म करता है ? (सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-518)-05-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रकृति यानी 3 गुणों को जड़ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह सभी गुण चेतना रहित है। इनमें कभी कोई इच्छा नहीं रहती, इच्छा करना जीव/आत्मा का स्वभाव है, जैसाकि हम सभी जानते हैं, कि इच्छा केवल सुख की ही होती है, दुख की कभी इच्छा नहीं होती। जबकि प्रकृति तो द्वैत है, यानी यहां सुख-दुख दोनों मौजूद रहते हैं और दुखरहित सुख यानी आनन्द केवल परमात्मा की ओर सम्मुख होने से ही मिलेगा.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रकृति का रूप-आत्मा का स्वरुप

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हम सभी मनुष्यों के शरीरों में आत्मा व परमात्मा दोनों ही मौजूद रहते हैं। अज्ञानतावश आत्मा प्रकृति के भोगों को भोगने में इतना मस्त हो जाता है, कि परमात्मा को ही भूल जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

सागर में लहरें और जीवन में समस्यायें

 

ॐ = ऋगवेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद-जीवन जीने के नियम-(सुधीर भाटिया फकीर-कक्षा-517)-04-06-21

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

भगवान ने मनुष्य योनि का अवसर हम सभी मनुष्यों को केवल आध्यात्मिक यात्रा यानी साधना करने के लिए ही प्रदान की है। मनुष्य अपने जीवन में मरते दम तक जितनी आध्यात्मिक यात्रा कर लेता है। ऐसी की गई आध्यात्मिक यात्रा अगले मनुष्य योनि तक सुरक्षित बनी रहती है.....सुधीर भाटिया फकीर

सेवा/1%, सत्संग/10%, स्वाध्याय/100%

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

लोभ में भले ही बाहरी स्तर पर भी लेने की ही इच्छा जग-जाहिर होती है, लेकिन मोह में भी देने की आड़ में लेने की ही आशा छिपी रहती है, जबकि प्रेम में सदा दे कर ही खुशी होती है, ले कर नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

सूर्य यानी परमात्मा की ओर सम्मुखता

 

मन की कमजोरी - (सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-516)-03-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

आनंद एक दिव्य गुण है, जो केवल भगवान के लिये ही प्रयोग में होता है, जबकि सभी आत्माएँ चेतन/ज्ञानयुक्त हैं और ज्ञान नित्य अपने स्वरुप में बना रहता है, भले ही आवर्त हो सकता है। प्रकृति के 3 गुण केवल सत्य है, लेकिन जड़ हैं, चेतन रहित हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

पुरुषार्थ और परमार्थ

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हम सभी मनुष्यों को अपने जीवन में सभी परिस्थितियों में अपने व्यवहार में इंसानियत अवश्य ही बनाये रखनी चाहिए, क्योंकि व्यवहार में हैवानियत/पशुता आने मात्र से ही हमारा अगला जन्म बहुत जल्दी निश्चित हो जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

लोभ एक कीचड़

 

भक्त्ति:- वैराग्य-अभ्यास -(सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-515)-02-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

अधिकांश मनुष्य भगवान को मानते हैं, लेकिन तत्व रुप से जानने वाले मनुष्य केवल गिनती के ही हैं, तब ऐसी स्थिति में जो लोग भगवान को बिना जाने ही मान लेते हैं, फिर ऐसे लोग अक्सर अंधविश्वास की खाई में गिर जाते हैं, जिसके फलस्वरूप यह लोग लोभवश या भयवश केवल कर्मकाण्ड करने में ही उलझे रहते हैं और भगवान प्रेम से वंचित रह जाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

जड़-चेतन और परमचेतन

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

हम सभी मनुष्य प्रकृति के 3 गुणों (सतो, रजो व तमो) की बेडियों यानी रस्सियों से बन्धे हुए हैं। इन रस्सियों की पकड़ को हम कमजोर तो कर सकते हैं, लेकिन खोल नहीं सकते.....सुधीर भाटिया फकीर

तन-मन-धन

 

योगमाया - (सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-514) - 01-06-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सँसार में अक्सर ऐसा देखा जाता है कि अधिकांश मनुष्यों का सत्सँग बेमन से होता है, जबकि सभी मनुष्यों को श्रद्धापूर्वक ही सत्संग करना चाहिए अर्थात् हम मनुष्यों को अपना सुनना इतना गहरा बनाना चाहिए कि हमारी सोयी हुई विवेक-शक्ति जागने लगे, ताकि हम सभी मनुष्यों को परमात्मा का रस पीने को मिल जाये यानी हम सबका जीवन आनन्दमयी बने.....सुधीर भाटिया फकीर

शब्दों से प्रेरणा