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Showing posts from November, 2021

सन्ध्या-बेला सन्देश

एक साधारण मनुष्य अज्ञानतावश छोटे-छोटे सुखों को पाने के लिए बड़े-बड़े दुखों को सहने का समझौता कर लेता है, जबकि मनुष्य जन्म दुखों की दलदल से निकल कर परम सुख यानी आनंद/भगवान को पाने के लिए ही मिला है.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य द्वारा स्वतन्त्रता का दुरूपयोग

 

चिन्हों-रंगों से ज्ञान - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-699)-30-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

प्रकृति की 84 लाख योनियों में केवल मनुष्य योनि पाकर ही आत्मा परमात्मा को जानने का प्रयास कर सकती है, अन्य किसी भी योनि में ऐसा अवसर ही नहीं दिया जाता। इसलिये हम सभी मनुष्यों को परमात्मा को जानने-समझने और पाने के लिए मिले हुए अवसर का अवश्य ही लाभ उठाना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

हम सभी मनुष्यों के मिले हुए स्थूल शरीरों की एक दिन मृत्यु अवश्य ही आनी है। यदि मनुष्य अपनी मृत्यु पर ही गहरा चिन्तन करता रहे, तो मनुष्य पाप कर्मों को करने से अवश्य ही बचेगा और मनुष्य को अपने जीवन का अर्थ भी अपने आप ही समझ में आ जायेगा.....सुधीर भाटिया फकीर

संसार:- भोग-संग्रह

 

संग से चढ़ने वाले रंग को हम रोक नहीं सकते - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-698)-29-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

सभी मनुष्यों का एक अलग-अलग अपना स्वभाव होता है, फिर उसी स्वभाव विशेष में मनुष्य द्वारा कर्म अपने आप होने लगते हैं। अक्सर सत्संग के अभाव में मनुष्य का स्वभाव बिगड़ने लगता है, इसलिए सभी मनुष्यों को सदा सत्संग करते रहना चाहिए, ताकि स्वभाव बिगड़ने न पाये.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

अघिकांश कलयुगी मनुष्यों में परमात्मा के बारे में अधिक जानने की कोई जिज्ञासा नहीं होती। ऐसे मनुष्य तो केवल गिनती के ही होते हैं, जो परमात्मा को तत्व रुप से जानने-समझने का प्रयास करते हैं और अपनी आघ्यात्मिक यात्रा आरंभ करते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

स्वभाव (होना), पुरूषार्थ (करना)

 

मनुष्य तभी मरता है, जब....? - सुघीर भाटिया फकीर-(कक्षा-697)-28-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

यदि एक मनुष्य अपने सुख प्राप्ति के लिये प्रकृति के अन्य जीवों को दुख देने लगता है, तो उसके कर्माशय में पाप कर्मों का अनुपात बढ़ जाता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य को मरने के बाद नीचे की योनियो में जन्म ले कर दुख भोगने ही पड़ते है.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

संसार के अधिकांश लोग सुखों की वर्षा में नहाते समय अक्सर परमात्मा को भूल जाते हैं, जबकि दूसरी ओर दुखों की परछाई भी नजर आने मात्र से परमात्मा को याद करना आरम्भ कर देते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

संसार:- अभावों की एक दलदल

 

नि र न त र (निरन्तर चिन्तन) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-696)-27-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

परमात्मा का ज्ञान-विज्ञान यानी आध्यात्मिक ज्ञान कहीं से भी सुनने को मिले या पढ़ने का मौका मिले, उस अवसर का लाभ उठाना चाहिए, आघ्यात्मिक ज्ञान सदा ही सम्माननीय व पूज्नीय होता है, जो हमारी आत्मा के अज्ञानता रूपी आवरणों को क्रमशः दूर करता है.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

जैसे सूर्य की दुनिया में सदा प्रकाश बना ही रहता है अर्थात् अंधकार कभी नहीं होता, ऐसे ही परमात्मा की आध्यात्मिक दुनिया में आनंद सदा ही बना रहता है, जबकि हमारे-आपके जीवन में दुखों का प्रकोप बना रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर

सुरवों में भटकाव-दुरवों में सुधार

 

मनुष्य के 4 पुरुषार्थ - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-695)-26-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

एक साधारण मनुष्य भगवान को लोभ या भयवश कर्मकाण्ड करता हुआ ही जुड़ता है, उसका भगवान से प्रेम नहीं होता, क्योंकि मनुष्य सत्संग के अभाव में परमात्मा के आंनदस्वरूप सत्ता को जान नहीं पाता, इसलिए सर्वप्रथम हमें निरन्तर सत्संग करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्घया-बेला सन्देश

आज के युग में अघिकांश मनुष्यों की भोग प्रेरित इच्छाएं बढ़ती ही जा रही हैं, जिसके फलस्वरूप लोगों में भाग-दौड़ के चलते क्रोध आना एक आम बात होती जा रही है, जो लड़ाई-झगड़े का कारण बनता है.....सुधीर भाटिया फकीर

भविष्य जानने की उत्सुकता सभी मनुष्यों में बनी रहती है।

 

आत्म-} मन} 5 ज्ञानेन्द्रियां + 5 कर्मेंद्रियां - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-694)-25-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

जैसे जल एक जगह पर लम्बे समय तक पड़ा रहने से उसमें विशैले जीव उत्पन्न हो जाते हैं, इसी तरह अधिक धन को अपने पास संग्रह करने से धन विषय-भोगों में ही बहने लगता है यानी मनुष्य की अधोगति होने की संभावनाएँ बढ़ने लगती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्घया-बेला सन्देश

अक्सर अघिक धन आने पर सत्संग छूटने लगता है, जबकि घन के चले जाने पर सभी मनुष्यों का सत्संग में मन लगने लगता है। फिर निरंतर सत्संग करते रहने से विवेक शक्ति जागने लगती है, जो संसार से वैराग्य उत्पन्न करने में व परमात्मा से प्रीती करवाने में मदद करती है.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रत्यक्ष दुरव-अप्रत्यक्ष दुरव

 

इच्छाएं:- भौतिक-आध्यात्मिक - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-693)-24-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

मनुष्य योनि में मरते समय ही हम अपनी मन, बुद्धि/मति, स्वभाव आदि की जैसी भी स्थितियां बना लेते हैं, फिर वैसी ही परिस्थितियाँ मरने के बाद मिलती हैं, भले ही सुरव-दुरव कर्मों के अनुसार ही मिलते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्घया-बेला सन्देश

84,00000 योनियों में मनुष्य योनि को राजा योनि ही मानो, क्योंकि मनुष्य योनि में मनुष्य परमात्मा रुपी मंजिल को पाने के लिए अपनी आध्यात्मिक यात्रा आरंभ कर सकता है, इसलिए हम सभी मनुष्यों को केवल परमात्मा को जानने की जिज्ञासा ही रखनी चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

सावधानी:- बचपन, जवानी, बुढ़ापा

 

मन की उड़ान - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-692)-23-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

मनुष्य योनि में ही परमात्मा को जाना-समझा जा सकता है। इसलिए, सर्वप्रथम हमारे मन में प्रभु-प्राप्ति की इच्छा होनी चाहिए, फिर इच्छा पूर्ति के लिए प्रयत्न करना हमारा काम है, शेष सब कुछ हमें परमात्मा पर छोड़ देना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्घया-बेला सन्देश

एक साधारण मनुष्य अपने जीवन में दिन-रात विषय-भोगों की प्राप्ति के लिये ही भाग-दौड़ करता रहता है और इसी भाग-दौड़ में कब मनुष्य से पाप कर्म होने लगते हैं, मनुष्य को स्वयं भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर

लाभ, लोभ, संग्रह, महासंग्रह

 

कर्मों का व्यापार (लाभ-हानि) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-691)-22-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

सुखों को मर्यादा से अधिक भोगते रहने से परमात्मा की स्मृति क्रमश: कमजोर होने लगती है, जबकि परमात्मा की स्मृति बने रहने से हमारी भौतिक सुखों को भोगने की इच्छाएं ही कमजोर होने लगती हैं, जो सत्संग करने में मदद करती हैं, जिसके फलस्वरूप मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति सहज ही होने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

कलयुग में प्रायः ऐसा देखा गया है कि अधिकांश मनुष्यों का सत्सँग के प्रति कोई लगाव नहीं होता, इसीलिए जब तक हम मनुष्यों का सुनना ही गहरा नहीं होता, तब तक हमारी सोयी हुई विवेक-शक्ति नहीं जागती और जीवन में सुधार भी नहीं होता.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रकृति:- परमात्मा की एक व्यवस्था

 

चं च ल मन पर नियंत्रण - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-690)-21-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

किसी भी मनुष्य के अघिकांश कर्म बने हुए स्वभाववश अपने आप ही होने लगते हैं। सत्संग के अभाव में अक्सर स्वभाव बिगड़ने लगता है, इसलिए जीवन में सदा सत्संग करते रखना चाहिए, ताकि हमारे स्वभाव में निरंतर सुधार होता रहे, ताकि मनुष्य पाप कर्मों से बच सके.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्घया-बेला सन्देश

किसी भी मनुष्य के अघिकांश कर्म बने हुए स्वभाववश अपने आप ही होने लगते हैं। सत्संग के अभाव में अक्सर स्वभाव बिगड़ने लगता है, इसलिए जीवन में सदा सत्संग करते रखना चाहिए, ताकि हमारे स्वभाव में निरंतर सुधार होता रहे, ताकि मनुष्य पाप कर्मों से बच सके.....सुधीर भाटिया फकीर

परमात्मा एक हमसफर

 

बुद्धि ON/सतो-OFF/रजो+तमो - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-689)-20-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

जीवन में अनुकूल परिस्थितियां बने रहने पर संसार अपना ही लगता है, जबकि प्रतिकूल परिस्थितियों आते ही संसारी लोगों की पहचान होनी आरम्भ होती है, तब ऐसी स्थिति में संसार से सहज ही वैराग्य हो परमात्मा ही अपना लगने लगता है.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

आघ्यात्मिक ज्ञान वही है, जो मनुष्य को प्रभु से जोड़ने का काम करता है यानी परमात्मा की सम्मुखता करवाता हुआ परमात्मा की भक्ति में लगा देता है, अन्यथा, शेष सब कुछ अज्ञानता के अलावा और कुछ नहीं है.....सुधीर भाटिया फकीर

गीता:- ज्ञान की गंगा

 

गुरु-पर्व शुभकामना संदेश

आप सभी भाई-बहनों को आघ्यात्मिक ज्ञानात्मक चैनल की ओर से "गुरू पर्व " की बहुत-बहुत बघाई एवं शुभकामनाएं। हम सभी मनुष्यों को गुरु की आज्ञानुसार अपने कर्तव्य- कर्मों को सदा ईमानदारी निभाते रहना ही गुरु के प्रति हमारी भक्ति है। आपका आध्यात्मिक मित्र सुधीर भाटिया फकीर www.youtube.com/c/SudhirBhatiaFAKIR wwwsudhirbhatiafakir.cm

विषयों की तड़क-भड़क - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-688)-19-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

सभी मनुष्य आज नहीं तो कल स्वीकार कर ही लेते हैं कि संसार के चक्रव्यूह में घुस जाना तो बहुत आसान है, पर इस चक्रव्यूह से निकल पाना बहुत ही कठिन है, लेकिन यह असंभव नहीं है, इसका एक ही रास्ता है, निरंतर.....सत्संग करते रहना.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्घया-बेला सन्देश

मनुष्य जीवन भर आनन्द की तलाश में कभी कुछ पकड़ता है, फिर पकड़े हुए को छोड़ देता है, फिर नया कुछ पकड़ता है, अर्थात् मन में सदा एक बेचैनी सी बनी रहती है, जबकि सच्चाई यह है कि भौतिक प्रकृति में दुरव रहित सुख है ही नहीं, तब....? सुधीर भाटिया फकीर

नींबू-मिरची- एक अन्धविश्वास ?

 

महापुरुषोँ से सीख - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-687)-18-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

मनुष्य योनि स्वभाव से तो रजोगुणी है, लेकिन सतोगुण बढ़ा कर विशुद्ध सतोगुणी परमात्मा को पाने का एक अवसर भी है, जबकि कलयुग में ऐसा देरवा जा रहा है कि मनुष्य प्रकृति के विषय-भोगों का अघिक संग करता हुआ मल रूपी तमोगुण का संग करने से भी परहेज नहीं करता, जिसके फलस्वरूप मनुष्य स्वयं ही अपनी अघोगति कर बैठता है.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

ज्ञान के अभाव में मनुष्य के कर्म कभी भी सही दिशा में नहीं हो पाते। जैसे अन्धकार में तन ठोकरें खाता है, वैसे ही अज्ञानता में मन अपनी इन्द्रियों द्वारा कितने पाप कर्म कर जाता है, मनुष्य को स्वयं भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर

दया :- धर्म का मूल आधार

 

चित की भूमियाँ:- मूढ़, क्षिप्त, विक्षिप्त, एकाग्र, समाधि - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा- 686)-17-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

मनुष्य योनि को कर्म व साघना योनि कहा गया है। शास्त्रों में बताया गया है कि यह करो और यह मत करो यानी विधि-निषेध, जोकि हम सब मनुष्यों के लिये ही है, विधि-विधान द्वारा कर्म करने से सुख की और निषेध कर्म करने से भविष्य में दुख की प्राप्ति होती ही है.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

हम सभी मनुष्यों को मिले हुए जन्म में परमात्मा को जानने की जिज्ञासा अवश्य ही रखनी चाहिए, क्योंकि संसार को जान लेने पर भी अन्ततः कोई लाभ नहीं होता, जबकि परमात्मा को आशिंक रूप से जानने में भी हमारा लाभ ही होता है....सुधीर भाटिया फकीर

परमात्मा एक रस-संसार एक छिलका

 

नेति-नेति - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-685)-16-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

सभी मनुष्यों को संसारी विषयों-भोगों से बचने के लिए आरम्भ में लोभ या भय से कर्मकांड अवश्य ही करने चाहिए, फिर निरंतर सत्संग करते रहने से एक दिन परमात्मा का विशेष ज्ञान-विज्ञान समझ में आने से कर्मकाण्ड केवल ज्ञानपूर्वक व निष्काम कर्म ही होने लगते हैं, जो हमारी आघ्यात्मिक उन्नति को गति प्रदान करते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

परमात्मा एक ही है, भले ही रूप अनेक हैं। जैसे बर्फ, भाप, कोहरा अलग-अलग होते हुए भी उसमें मूल तत्व जल ही है। अक्सर एक साघारण मनुष्य अज्ञानतावश अलग-अलग नामों में ही उलझ कर यथार्थ ज्ञान को समझ नहीं पाते.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रकृति/तमोगुण, मनुष्य/रजोगुण, भगवान/विशुद्ध सतोगुण

 

कलुषित चेतना - सुघीर भाटिया फकीर-(कक्षा-684)-15-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

एक साघारण मनुष्य की रूचि सुख-सुविधा के साधन व स्वाद भरे पदार्थों को भोगने में ही बनी रहती है, जिनको भोगने की सामर्थ्य किसी भी मनुष्य के स्थूल शरीर में सदा बनी नहीं रह सकती और भोग कभी भी मन को शांति नहीं दे सकते, इसपर चिन्तन करें.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

प्रकृति के 3 गुण नित्य हैं, लेकिन जड़ हैं, जबकि आत्मा नित्य के साथ चेतन भी है, लेकिन आत्मा में आनंद गुण नहीं है, इसीलिए प्रत्येक जीव सदा आनंद की तलाश में ही प्रयत्नशील रहता है और आंनद केवल परमात्मा का ही गुण है.....सुधीर भाटिया फकीर

दुरव अपना-सुरव पराया

 

मनुष्य की आयु यानी मोबाईल की बैटरी - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-683)-14-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

हम सभी मनुष्यों को आवश्यकता और भोग इच्छा के भेद को समझना चाहिए। दाल-रोटी स्थूल शरीर की एक आवश्यकता है, लेकिन सत्संग के अभाव में मन में मलाई-कोफ्ता, रायता, रवीर, अचार, पापड़, कुल्फ़ी आदि की भोग इच्छायें बनने लगती हैं, जो भविष्य में हमें संसारी उलझनों में घकेलती हैं। इसलिए हमें अपने जीवन में आरंभ से ही भोग प्रेरित इच्छाओं से बचना होगा......सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

ज्ञान से अभिप्राय आध्यात्मिक ज्ञान से ही होता है। भौतिक ज्ञान संसार से जोड़ता है, जबकि आध्यात्मिक ज्ञान परमात्मा से जोड़ता है, जो एक गुरु परम्परा से आगे बढ़ता रहता है यानी ज्ञान कभी भी किसी का व्यक्तिगत नहीं होता.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य योनि में कब वापसी ?

 

मन के छिद्र:- वि + का + र (KKLMA) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-682)-13-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

यह सम्पूर्ण भौतिक प्रकृति त्रिगुणात्मक है, अर्थात् यहां तीनों गुण तमोगुण, रजोगुण व सतोगुण नित्य बने रहते हैं, जबकि मनुष्य योनि में हमें अपना सतोगुण बढ़ाने एक अवसर है, ताकि हमारा सूक्ष्म + कारण शरीर पवित्र हो हमारी आध्यात्मिक उन्नति होना आरंभ हो जाए.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

जैसे संसार में हम बिना जाने किसी से सम्बन्ध नहीं बनाते, वैसे ही निरन्तर सत्संग करते रहने से ही हम परमात्मा को जान-समझ कर अपना अटूट सम्बन्ध बना सकते हैं, जो श्रध्दापूर्वक स्वाध्याय करने से ही बन पाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

जीवन में बदलाव, अन्यथा...?

 

ज्ञान:- तारा, चाँद, सूर्य - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-681)-12-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

जैसे संसार में हम बिना जाने किसी से सम्बन्ध नहीं बनाते, वैसे ही निरन्तर सत्संग करते रहने से ही हम परमात्मा को जान-समझ कर अपना अटूट सम्बन्ध बना सकते हैं, जो श्रध्दापूर्वक स्वाध्याय करने से ही बन पाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

प्रकृति में होने वाली क्रियाओं द्वारा संसार में अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियां बनती-बिगड़ती रहती है, जिनके द्वारा हम सभी जीवों को सुख-दुख मिलते हैं, लेकिन यह सभी सुख-दुख एक समय अवधी के बाद चुपचाप चले भी जाते है.....सुधीर भाटिया फकीर

नित्य और अनित्य में अन्तर

 

समाज के 4 वर्ण - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-680)-11-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

सभी संसारी विषयों-भोगों के सुख अस्थायी है, जबकि भोगों को भोगने में हमारी सभी इंद्रियां उम्र बढ़ने के साथ-साथ कमजोर होती जाती हैं, ऐसा ज्ञान मन में स्थिर करने पर ही इनके प्रति अरुचि पैदा होती है और स्थायी सुख/आनंद/भगवान से प्रीती होती है, उससे पूर्व  नहीं....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

हम सभी मनुष्यों के स्थूल शरीर सदा ही एक दिन मृत्यु को प्राप्त होंगे, इस बात को कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता, यदि मनुष्य अपनी मृत्यु पर ही निरन्तर गहरा चिन्तन करता जाए, तो भी मनुष्य को अपने जीवन का अर्थ अपने आप ही समझ में आ जायेगा.....सुधीर भाटिया फकीर

परमात्मा का ज्ञान-विज्ञान

 

ब्रह्माण्ड यानी 24 तत्व - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-679)-10-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

सभी आघ्यात्मिक शास्त्र हम सभी मनुष्यों के कल्याण के लिए ही लिखे गए हैं। इन शास्त्रों में एक-एक शब्द तौल-तौल कर ही लिखा गया है। इन शब्दों के सूक्ष्म अर्थ जान-समझ कर ही हमारा परमात्मा से स्थायी जुड़ना सम्भव हो पाता है, अन्यथा ?.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

परमात्मा का ज्ञान-विज्ञान समझ लेने पर परमात्मा से प्रेम किए बिना रहना ही असंभव है, यदि हमें परमात्मा की याद नहीं आती, तो हमें समझ लेना चाहिए कि अभी तक हमने परमात्मा को सही-सही जाना ही नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

तमोगुण-रजोगुण (एक पड़ोसी हैं)

 

संसारी मनुष्यों में 4 दोष - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-678)-09-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

आज के कलयुग में एक साधारण मनुष्य सुखों का संग्रह करने में ही अपना अनमोल जीवन यूं ही गंवा रहा है, जो अपने आप में ही पाप-कर्मों को निमंत्रण देता है, इन पापों से बचने के लिए कम से कम फालतू के सुखों को तो अभावग्रस्त लोगों में अवश्य ही बांटते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

श्रद्धापूर्वक किया गया सत्संग ही एक समय विशेष में चिंतन या मनन में आ सकता है, फिर निरंतर लंबे समय तक चिंतन होने से ही ज्ञान हमारे आचरण यानी व्यवहार में आने से हमारी परमात्मा से प्रीती होने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर

बुद्धि यानी चालक

 

कर्म-इच्छा और फल (सकाम-निष्काम) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-677)-08-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

शास्त्रों में आहार या यानी खाना-पीना, मैथुन, सोना/निंद्रा व भय को पशु-वृतियां बताया गया है। यह सभी वृतियां प्रकृति से प्रेरित रहती है, लेकिन मनुष्य योनि पाकर हमें इन पशु-वृतियों से ऊपर उठकर परमात्मा को जानने की जिज्ञासा अवश्य ही करनी चाहिए, अन्यथा ?.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

मनुष्य योनि में निरंतर सत्संग करते रहना चाहिए, फिर चिंतन/मनन इतना गहरा करो कि परमात्मा की याद सदा बनी रहे। ऐसी स्थिति निरन्तर बनी रहने से ही परमात्मा के प्रति भक्ति का शुभारम्भ होता है.....सुधीर भाटिया फकीर

आरंभ और अन्त

 

प्रकृति:- तमोगुण/स्थूल, रजोगुण/सूक्ष्म, सतोगुण/कारण शरीर - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-676)-07-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

गुरू व आध्यात्मिक शास्त्र मनुष्यों को परमात्मा रुपी मंजिल को पाने के लिए रास्ता दिखाते हैं, यदि मनुष्य उन बताये गये रास्तों पर चलता ही नहीं और अपने बने हुए स्वभाव के अनुसार भोग-विलासों में ही लिप्त रहता है, तब तक मनुष्य के जीवन में कोई सुधार नहीं आ सकता.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

सुखों को भोगने में परमात्मा की स्मृति क्रमश: कम या समाप्त होने ही लगती है, जबकि दुखों में परमात्मा की सहज ही स्मृति आने लगती है, फिर भी अधिकांश मनुष्यों में सुखों की प्राप्ति के लिए ही भाग-दौड़ करते देखा जाता है, इसका अभिप्राय ?.....सुधीर भाटिया फकीर

माया:- मल, विक्षेप, आवरण

 

कर्मों में सुधार, अन्यथा, स्थिति - या 0 में - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-675)-06-11-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

सुखों को भोगने में परमात्मा की स्मृति क्रमश: कम या समाप्त होने ही लगती है, जबकि दुखों में परमात्मा की सहज ही स्मृति आने लगती है, फिर भी अधिकांश मनुष्यों में सुखों की प्राप्ति के लिए ही भाग-दौड़ करते देखा जाता है, इसका अभिप्राय ?.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

सभी जीवों के स्थूल शरीरों की आवश्यकताएं होती हैं, जबकि केवल मनुष्य ही अपने जीवन में भोग प्रेरित इच्छाएं पाल लेता है, जिनको बढ़ाने से अंतत: हमारे दुख ही बढ़ते हैं, भले ही आरंभ में सुख मिलते हैं, फिर भी एक साधारण मनुष्य फैसला करने में गलती कर जाता है ?.....सुधीर भाटिया फकीर

गीता की गहराईयां

 

नैतिकता का अभाव -सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-674)-05-11-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि में मनुष्य अपने जीवन में जितनी भी भौतिक उन्नति कर लेता है, ऐसी सारी भौतिक उन्नतियां मरने के साथ ही समाप्त हो जाती है, जबकि आध्यात्मिक उन्नति मरने के बाद भी सदा सुरक्षित बनी रहती है, अब फैसला आपके हाथ में है ?.....सुधीर भाटिया फकीर

"संध्या-बेला सन्देश"

मनुष्य योनि में ही निरन्तर सत्संग करते रहने से धीरे-धीरे विवेक शक्ति जागृत होने लगती है, जो हमारे मन को नियंत्रण में लेती है, क्योंकि कलयुग में मन इन्द्रियों के द्वारा सदा ही विषयों को भोगने की फिराक में लगा रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर

आवश्यकताये और भोग इच्छाये

 

मूल यानी जड़ - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-673)-04-11-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि में मनुष्य परमात्मा को जान-समझ और जुड़ सकता है। परमात्मा की स्मृति बनाए रखना ही प्रेम है, गहरे प्रेम में ही मनुष्य के आंसू टपकते हैं और भक्तों के आंसू ही उसकी संपत्ति है..... सुधीर भाटिया फकीर

दीपावली शुभकामना संदेश - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-672)-03-11-2021

 

समय का चक्र

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि में सर्वप्रथम हमें शारीरिक रुप से अपने सभी कर्मों द्वारा सभी मनुष्यों से छ्ल-कपट ठगी रहित व्यवहार रखना होगा व अन्य सभी जीवों पर दया व प्रेम रखना होगा, ऐसा जीवन में निरंतर बने रहने से ही हमारी परमात्मा के प्रति भक्ति आरंभ हो पाती है, अन्यथा नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

मन एक चुम्बक》5 भोग विषय GRRSS - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-671)-03-11-2021

 

"सन्ध्या-बेला संदेश"

आज अधिकांश मनुष्यों का अपने जीवन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भौतिक सुखों को भोगने का बना ही होता है, तब ऐसी स्थिति में भले ही स्थूल शरीर द्वारा प्रयास सीमित रुप से दिखते हों, लेकिन मन में चिन्तन तो बना ही रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर

रिश्ता और सम्बन्ध में अन्तर

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

आज के कलयुग में अक्सर अधिकांश लोगों द्वारा इस बात को स्वीकार कर लिया जाता है कि सत्संग करने में मनुष्य का मन नहीं लगता। यह एक सच्चाई है कि मन सत्संग में तभी लगना आरंभ होता है, जब मनुष्य के रजोगुणी भोग मर्यादा में रहते हैं, अन्यथा नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

समाधि:- समस्या-समाधान - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-670)-02-11-3021

 

वैदिक साहित्य - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-669)-01-11-2021