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Showing posts from April, 2022

संध्या-बेला सन्देश

जैसे हमारा अगला पांव तभी आगे रखा जाता है, जब आगे खाली स्थान हो। इसी प्रकार एक सामान्य परिस्तिथियों में आगे/अगला शरीर/जन्म निश्चित हो जाने पर ही पुराना शरीर छूटता/मरता है, भले ही मूल आधार कर्म + संस्कार ही होते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

विषय-भोगों की अन्तहीन भाग-दौड़

 

गूढ़तम ज्ञान:- 1%, 10%, 100%, 1000% - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-850)-30-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

सभी मनुष्यों की भौतिक-यात्रा माता के गर्भ में आने के साथ ही आरम्भ हो जाती है, लेकिन आध्यात्मिक-यात्रा केवल उसी दिन ही आरंभ होती है, जब मनुष्य अपने जीवन की दिनचर्या में निरंतर सात्विकता बनाये रखने के लिये मन से प्रयत्नशील बना रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

मनुष्य द्वारा निष्काम-कर्म होने से हमारा स्थूल-शरीर क्रमशः पवित्र होता जाता है। इसी तरह श्रद्धापूर्वक सत्सँग करते रहने से हमारा सूक्ष्म-शरीर व भगवान की भक्ति होने से हमारे कारण-शरीर से अशुभ संस्कार समाप्त होने लगते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

4 प्रकार के मनुष्य:- सुखी, दुखी, पुण्यात्मा, पापात्मा

 

कर्म:- विहित - निषिद्ध - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-849)-29-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

हम सभी मनुष्यों द्वारा किए गए सभी प्रकार के सकाम कर्म प्रकृति रूपी मिट्टी में बोये गए बीजों के समान है, जो दिनों/महीनों/सालों/अगले जन्म/जन्मों में एक समय अवधि के बाद ही पकने पर अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों के रूप में सुख-दुख रूपी फल ले कर आते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

सभी मनुष्यों को सृष्टि के आरम्भ में ही वेदों द्वारा कर्मफल सिद्धान्त का ज्ञान दिया जाता है, ताकि मनुष्य को अपने जीवन में क्या करना है और क्या नहीं करना यानी कि विधि-विधान द्वारा कर्म करने से सुख की प्राप्ति और निषेध कर्म करने से भविष्य में दुख की प्राप्ति अवश्य ही होती है.....सुधीर भाटिया फकीर

भूतकाल { वर्तमानकाल } भविष्यकाल

 

बड़े भविष्य का अर्थ - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-848)-28-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

हम सभी मनुष्यों को अपने मिले हुए जीवन में शास्त्रविहित धार्मिक कर्मकांड श्रद्धापूर्वक करते रहना चाहिए, इन कर्मकांडों को अपने आचरण में लाने मात्र से ही मनुष्य का क्रमिक विकास सहज ही होने लगता है.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

संसारी भोग-विषयों का निरंतर चिंतन बने रहने से ही मन में कामना पैदा होती है और कामना पूरी होने से उनसे मोह होने लगता है, जो मनुष्य में प्रमाद ले आ परमात्मा से ही विमुख कर देते हैं। इसीलिए आरम्भ से ही विषयी चिन्तन से बचना चाहिए....सुधीर भाटिया फकीर

अन्तिम संस्कार

 

आहार :- स्थूल-सूक्ष्म - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-847)-27-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

एक साधारण मनुष्य के 90% कर्म बने हुए संस्कारों से यानी स्वभाववश ही होते हैं। जबकि केवल मनुष्य योनि में ही स्वभाव सुधरता है और बिगड़ता भी है अर्थात् स्वभाववश कर्म अपने आप ही होते हैं, करने नहीं पड़ते। जबकि सच्चाई यह है कि सत्संग के अभाव में मनुष्य का स्वभाव बिगड़ता है। इसीलिए सत्संग हम सभी मनुष्यों के लिए अनिवार्य है.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

जब-जब मनुष्य अपने जीवन में सुख-सुविधा के अधिक साधनों का व भोग्य पदार्थों का अमर्यादित सेवन रस-बुद्धि से लम्बे समय तक करता रहता है, तब ऐसी स्थिति विशेष में अक्सर इन्सान में इंसानियत बने रहने की सम्भावनायेँ कुछ कमजोर होने लगती हैं, जिसे एक साधारण मनुष्य स्वीकार नहीं करता.....सुधीर भाटिया फकीर

स्थूल-शरीर/1सीढ़ी, सूक्ष्म-शरीर/2सीढ़ी, कारण-शरीर/3 सीढ़ी

 

गाड़ी चलाते समय-जीवन बिताते समय ? "सावधानी" - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-846)-26-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

जब-जब मनुष्य अपने जीवन में सुख-सुविधा के अधिक साधनों का व भोग्य पदार्थों का अमर्यादित सेवन रस-बुद्धि से लम्बे समय तक करता रहता है, तब ऐसी स्थिति विशेष में अक्सर इन्सान में इंसानियत बने रहने की सम्भावनायेँ कुछ कमजोर होने लगती हैं, जिसे एक साधारण मनुष्य स्वीकार नहीं करता.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

जीवन में निरंतर सत्संग करते रहने से जब मनुष्य को परमात्मा का ज्ञान-विज्ञान यथार्थ रूप से समझ में आ जाता है, तभी मनुष्य के मन में परमात्मा से प्रभावित होकर भौतिक विषयों के प्रति सहज ही ज्ञानपूर्वक वैराग्य की स्थिति उत्पन्न होती है और परमात्मा से प्रीती होने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रसाद से अवश्य बचें !

 

पृष्ठभूमि -सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-845)-25-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

भौतिक प्रकृति के सभी भोग-पदार्थों का अंतिम परिवर्तन नाश होना ही होता है, फिर भी एक साधारण मनुष्य अपने मिले हुए जीवन का अघिकांश समय इन्ही नाशवान पदार्थों को पाने/भोगने के लिए पुण्य-कर्म ही नहीं करता, बल्कि पाप-कर्म करने से भी परहेज नहीं करता.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

परमात्मा की आध्यात्मिक दुनिया में आनंद सदा ही बना रहता है, जैसाकि सूर्य में प्रकाश सदा ही बना रहता है, जबकि हमारे-आपके जीवन में यानी संसार में छोटे-बड़े दुख सदा ही बने रहते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

वैराग्य:- सहज/सथायी, प्रयत्नपूर्वक/अस्थाई

 

मनन:- नीम्बू/1%, गन्ना/10%, शास्त्र/100% - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-844)-24-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

जैसे प्रकृति मे अन्धकार सहज ही बना रहता है, केवल सूर्य का प्रकाश आने से ही अन्धकार पूर्ण रूप से समाप्त होता है। वैसे ही एक साधारण मनुष्य के जीवन में अज्ञानता कम-अधिक बनी ही रहती है, जो निरंतर सत्संग करते रहने से ही क्रमश: समाप्त होनी आरम्भ होती है, अन्यथा ?.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

आध्यात्मिक ज्ञान के बिना मनुष्य का जीवन सदा अधूरा ही बना रहता है। यह ज्ञान केवल पढ़ने या सुनने का ही विषय नहीं है, अपितु सुनने-पढ़ने के बाद चिंतन, मनन व शोध करते रहना चाहिए, ताकि जीवन में हर क्षण ज्ञानमयी स्थिति बनी रहे.....सुधीर भाटिया फकीर

ज्ञान का प्रभाव:- छोड़ना-प्रकृति, पकड़ना-भगवान

 

मेरा-तेरा ही माया है - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-843)-23-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

मनुष्य के जीवन में जितने अधिक अनुपात में सतोगुण बढ़ता जाता है, मनुष्य का जीवन सफल और सार्थक होता जाता है। इसीलिए शास्त्रों में आरंभिक कर्मकाण्ड जप, तप, व्रत, पर्व आदि करते रहने पर  जोर दिया गया है, ताकि हमारा जीवन अनुशासित व व्यवस्थित रहे.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

अक्सर ऐसा कह दिया जाता है कि सादा जीवन उच्च विचार रखने मात्र से ही जीवन ऊंचाईयाँ छूने लगता है, जबकि विषय-भोगों में जीने वाला मनुष्य देर-सबेर कब पाप-कर्मों में लिप्त हो जाता है, मनुष्य को स्वयं भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर

सत्संग का अभ्यास:- श्रद्धापूर्वक/1%, निरन्तर/10%, दीर्घकाल/100%

 

हम दूसरों को बदल नहीं सकते, लेकिन स्वयं को•••? - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-842)-22-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

मनुष्य से नीचे की सभी योनियो के असंख्य जीवों की भौतिक यात्रा क्रमश: वृक्ष, कीड़े मकोड़े, कीट-पतंगे, पक्षी व पशु आदि से मनुष्य बनने की ओर हर क्षण प्रकृति के अनुसार चल ही रही है, लेकिन मनुष्य विषय-भोगों की प्राप्ति के लिये ही पाप-कर्म करता हुआ दोबारा से नीचे की योनियों में लौटने का अपना दुर्भाग्य लिख रहा है ?....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

प्रकृति के 3 गुणों के आने-जाने का एक निश्चित क्रम सभी युगों में एक समान ही बना रहता है। सूर्य के डूबते ही तमोगुण का आरंभ हो जाता है, फिर सतोगुण आता है और फिर रजोगुण आता है अर्थात् इनका आने-जाने का क्रम कभी नहीं बदलता.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य की स्थिति:- तमोगुण, रजोगुण, सतोगुण, विशुद्ध सतोगुण

 

सँसार दिखता है-होता नहीं, परमात्मा दिखता नहीं,लेकिन नित्य है - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-841)-21-4-22

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

स्थूल-शरीर यानी तन के रिश्ते जन्म के साथ ही बनते हैं और मृत्यु होने के उपरांत ही समाप्त हो जाते है, लेकिन आत्मा-परमात्मा का नित्य सम्बन्ध है यानी यह सम्बन्ध किसी समय विशेष में बना ही नहीं, तो फिर टूटने का तो प्रश्न ही नहीं उठता अर्थात् आत्मा-परमात्मा का सजातीय संबंध है, क्योंकि दोनों चेतन तत्व हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

एक साधारण मनुष्य युवावस्था में रजोगुण के पीछे तो भागता रहता है, लेकिन वृद्धावस्था आरम्भ होने से भी सतोगुण को छूने से भी बचता रहता है, तब ऐसी स्थिति में मनुष्य में अज्ञानता बनी ही रहती है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य से पाप-कर्म भी होते ही रहते हैं•••सुधीर भाटिया फकीर

मन की वृत्तियाँ:- रागात्मक-द्वैशात्मक

 

कर्मकांडों का उद्देश्य:- तमोगुण/भय, सतोगुण/लोभ - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-840)-20-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

मनुष्य अपने जीवन में अधिक भौतिक-ज्ञान ले लेने से अधिक धन कमा कर सुख-सुविधा के साधन तो खरीद सकता है, लेकिन सुख-शान्ति नहीं, जबकि आध्यात्मिक ज्ञान, जो केवल निरन्तर सत्संग करने से ही प्राप्त होता है, ऐसा करने मात्र से ही मनुष्य को सुख-शान्ति मिलने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

मनुष्य अपने जीवन में जितनी अधिक सात्विकता बढ़ाता जाता है, उतने ही अनुपात में मनुष्य के जीवन में प्रसन्नता व शांति आने लगती है। हालांकि सभी रजोगुणी भोग-विषय आरंभ में भले ही सुख व स्वाद देते हैं, लेकिन अन्ततः यह सभी सुख बाद में दुख यानी रोग ही उत्पन्न करते हैं•••सुधीर भाटिया फकीर

जीवन का झुकाव:- सत्संग-कुसंग

 

इन्सानियत कभी नहीं मरनी चाहिए - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-839)-19-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

सभी मनुष्य भगवान को कम-अघिक तो मान ही लेते हैं, लेकिन तत्व रुप से जानने का कोई प्रयत्न नहीं करते, तब ऐसी स्थिति में यानी परमात्मा को जाने बिना मनुष्य का भगवान से कोई प्रेम हो नहीं होता, इसलिए हम सभी मनुष्यों को परमात्मा का यथार्थ ज्ञान लेने के लिए निरन्तर सत्संग करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

प्रकाश के अभाव में अन्धकार सहज ही आ जाता है, उसी तरह ज्ञान के अभाव में अज्ञानता भी सहज ही बनी रहती है, जिसे एक साधारण मनुष्य अक्सर स्वीकार नहीं करता। निरन्तर सात्विक स्थिति बनाए रखने के लिए मनुष्य को सदा सत्संग करते रहना चाहिए•••सुधीर भाटिया फकीर

जीवन की दिशा:- भौतिक जीवन - +, आध्यात्मिक जीवन +++

 

जन्मदिन-जन्मोत्सव व जयंती शब्दों में भेद - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-838)-18-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

हम सभी मनुष्य जीवन जीने की सीमित सांसें लेकर आते हैं, जो स्थूल जन्म के साथ ही नहीं, बल्कि गर्भ में आने के क्षण मात्र से ही घटती जाती हैं अर्थात् हर पल हमारी-आपकी मृत्यु नज़दीक आती जा रही है, इसलिए हम सभी भाई-बहनों को मिले हुए जीवन/सांसो का सदा सदुपयोग करना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

जीवन में निरंतर सत्संग करते रहने से ही सतोगुण बढ़ता है, जिसके फलस्वरूप विषय-भोगों की वासना क्रमश: कमजोर होने लगती है और विवेक-शक्ति जगने से रजोगुण मर्यादित व तमोगुण की मल रूपी छाया मिटने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर

नींद:- तामसी/+8, राजसी/6-8, सात्विक/4-6

 

भौतिक सुख-छोटे, परिणाम दुख-बड़े(नीचे की 80 लाख तामसी योनियाँ)-सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-837)-17-04-22

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

मनुष्य योनि में ही परमात्मा को जानने-समझने की जिज्ञासा कर पाना संभव है, अन्य किसी भी योनि में नहीं। निरन्तर सत्संग करते रहने से ही अज्ञानता मिटती है और मूल ज्ञान प्रकट होता जाता है और फिर पूर्ण तत्वज्ञान हो जाने पर मनुष्य को विषय-भोगों से ज्ञानपूर्वक वैराग्य होता है और केवल आनंद पाने की ही इच्छा शेष बनी रहती है..... सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

जीवन में शरीर की आवश्यकताओं से अधिक हम जो कुछ भी चाहते हैं, उसे आप कामना ही मान कर चलो। हमारी कामनायों के निरन्तर बढ़ते रहने से ही लोभ व संग्रह वृतियाँ जन्म लेती है, जो मनुष्य को देर-सबेर पाप-नगरी में धकेल देती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

रजोगुण की 3 अवस्थायें

 

योग की ओर•••प्रयत्न }}} योग - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-836)-16-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

मनुष्य योनि में ही सत्संग/सतोगुण करना सम्भव है, शेष अन्य योनियों में नहीं। इसलिए हम सभी मनुष्यों को प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में अवश्य ही स्वाध्याय करते रहना चाहिए, ताकि दिन में रजोगुणी आकर्षणों से हम बच सकें, क्योंकि इन आकर्षणों की आसक्ति के कारण ही मनुष्य तमोगुण में गिरता है.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

संसार मे प्राय ऐसा देखा जाता है कि धन के जाने पर सत्संग में भी मन अपने आप ही लगने लगता है, जबकि धन अधिक आने पर सत्संग में भी मन उखड़ा-उखड़ा ही रहता है, फिर भी मनुष्य में धन के प्रति ही चाह बनी रहती है ?.....सुधीर भाटिया फकीर

सतोगुण की 3 अवस्थायें

 

शुभ संस्कार-एक सुरक्षा कवच/बीमा कवर - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-835)-15-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

मनुष्य द्वारा स्थूल-शरीर के स्तर पर होने वाली साधारण क्रियायें, जो अन्य जीवों को प्रभावित करती हैं, ऐसी क्रियायों से हमारा कर्माशय + संस्कार बनते हैं, लेकिन सूक्ष्म-शरीर/मानसिक चिन्तन से भले ही कर्माशय नहीं बनता, लेकिन संस्कार बनते हैं, जो भविष्य में कर्मों को दिशा देते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

मनुष्य योनि में ही हम कार्य-कारण के सम्बन्ध को यथार्थ रूप से समझ सकते हैं। कार्य में ही कारण अदृश्य रूप में रहता हुआ अपना कार्य सम्पन्न करता है। हम सभी मनुष्यों के स्थूल-शरीर भी एक कार्य रूप ही हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

तमोगुण की 3 अवस्थायें (॰• 3 ●2 ••1)

 

स्थूल-शरीर का प्रथम लक्ष्य-दुख से निवृत्ति - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-834)-14-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

विषय-भोगों में रस-बुद्धि बढने के साथ-साथ मन के 5 विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार भी क्रमश: अपने आप ही बढने लगते हैं, जो अंततोगत्वा मनुष्य को पाप-कर्म करने को बाध्य कर देते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

संसार में प्राय ऐसा देखा जाता है कि एक साधारण मनुष्य अपने स्थूल-शरीर को ही अधिक महत्व देता है, इसीलिए घर के निर्माण में रसोई/भोजन-कक्ष को एक विशेष महत्व दिया जाता है, जबकि सूक्ष्म-शरीर/मन के भजन के लिए कोई कक्ष/बड़ा स्थान नहीं रखा जाता.....सुधीर भाटिया फकीर

लाभ से लोभ की यात्रा

 

जीवन की यात्रा-एक रेलगाड़ी - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-833)-13-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

मनुष्य योनि में की गई भौतिक उन्नति की तुलना में आध्यात्मिक उन्नति का ही महत्व है, क्योंकि भौतिक उन्नति तो मरने के साथ ही समाप्त हो जाती है, लेकिन आध्यात्मिक उन्नति सदा ही सुरक्षित बनी रहती है और इस आध्यात्मिक उन्नति की शुरुआत केवल श्रद्धापूर्वक सत्संग करने से ही होती है.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

हम सभी मनुष्य आध्यात्मिक उन्नति करने के अवसर का तभी लाभ उठा पाते हैं, यदि हम मिले हुए जीवन में अपने कर्तव्य-कर्मों को प्रसन्नतापूर्वक निभाते हुए परमात्मा का चिन्तन करते हैं व अपनी प्रार्थना में भी केवल प्रभु का धन्यवाद/शुकराना ही करते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

सँसारी मनुष्य } रजोगुण } तमोगुण } रजोगुण }}}}} सतोगुण

 

सचेत-अचेत - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-832)-12-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

अधिकांश मनुष्य मन से स्वीकार ही नहीं करते, कि वर्तमान जीवन में मिलने वाली सभी प्रतिकूल परिस्थितियां/दुख हमारे द्वारा ही किए गए कर्मों का परिणाम/फल होती हैं, किसी दूसरे-तीसरे मनुष्य का नहीं। इसीलिए मनुष्य नये पाप-कर्म करने से भी बच नहीं पाता.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

एक साधारण मनुष्य अपने जीवन में मिलने वाले सुखों को ढोल-नगाड़े बजा कर जाहिर करता है, लेकिन फिर भी यह सुख एक समय के बाद चुपचाप चले जाते हैं, दूसरी ओर मिलने वाले दुख भी भले ही बिना बुलाए आते हैं, लेकिन एक समय के बाद सभी दुख भी चुपचाप ही चले जाते हैं, वास्तव में सुख-दुख दोनों ही हमारे-आपके किये हुए कर्मों का ही फल होते हैं•••सुधीर भाटिया फकीर

कर्माशय { वृत्तियाँ } संस्कार

 

स्थूल-इन्द्रियाँ:-आँख,नाक,कान,त्वचा,जिव्हा }}}}} बार्ह्यमुखी - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-831)-11-4-22

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

मनुष्य योनि में ही हम अपने कारण-शरीर में गुणों का अनुपात + - यानी बढ़ा-धटा सकते हैं। हम सभी मनुष्यों को तमोगुण से परहेज, रजोगुण मर्यादा में और सतोगुण का अधिक से अधिक संग करना चाहिए, ताकि स्थूल-शरीर के रहते हुए हमारा सूक्ष्म + कारण शरीर पवित्र हो मायातीत की स्थिति को प्राप्त हों.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

संसार में भी रिश्ता यानी सम्बन्ध बनाये रखने के लिये मिलना-जुलना या बातचीत का होते रहना अनिवार्य होता है, दूसरी ओर विशुद्ध सतोगुणी सत्ता यानी भगवान से हम प्रीति का सम्बन्ध सतोगुण/सत्संग यानी सात्विक स्थिति में रह कर ही बनाये रह सकते हैं, न कि रजोगुण की स्थितियों में रहते हुए ?•••सुधीर भाटिया फकीर

आत्मा पर 3 शरीरों के बन्धन

 

"राम-नवमी सन्देश"

आप सभी भाई-बहनों को " राम-नवमी पर्व " की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ। प्रभु श्रीराम जी को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है यानी जीवन को अनुशासित, मर्यादित, कर्त्तव्य निष्ठ जीने में ही जीत है। सभी पर्वों को मनाने के पीछे हमारा एक ही उद्देश्य होता है कि एक सामान्य मनुष्य के जीवन में सतोगुण बढ़े, ताकि हमारे जीवन में सात्विकता बढ़े, जीवन व्यवस्थित व अनुशासित रहे, तभी समाज में रहने वाले सभी मनुष्यों के बीच में प्रेम, भाई-चारा व सौहार्द का वातावरण बनता है, जिसके फलस्वरूप हमारी परमात्मा में भी प्रीती बढ़ती है और मिला हुआ जीवन सार्थक हो पाता है। इस दिशा में आप सभी भाई-बहनों का "आध्यात्मिक ज्ञानात्मक चैनल +830 वीडियो" www.youtube.com/c/sudhirbhatiaFAKIR व "ज्ञान-सागर" www.sudhirbhatiafakir.com में बहुत-बहुत स्वागत है। आपका आध्यात्मिक मित्र सुधीर भाटिया फकीर

सँ सा र, जहाँ सुख आते-जाते हैं, लेकिन दुख भी बने रहते हैं - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-830)-10-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

एक साधारण मनुष्य अपने जीवन में सुख, सुविधा, स्वाद, सम्मान, सत्ता यानी 5 "SSSSS" को पाने/संग्रहित करने के चक्कर में सेवा, सत्संग व स्वाध्याय यानी 3 "SSS" जैसे सत्कर्म करने ही भूल जाता है अर्थात् इन सभी सत्कर्मों के अभाव में मनुष्य का कुसंग सहज ही होने से मनुष्य की अधोगति होने की संभावनाएं भी बढ़ने लगती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

प्रकृति भगवान की अपरा शक्ति है और जीव एक चेतन यानी परा शक्ति है। मनुष्य अपने जीवन में कर्मो के आधार पर ही प्रकृति से सुख-दुख रुपी फल प्राप्त करता है। इसलिए हम सभी मनुष्यों को कर्म करने से पूर्व कर्म की बारीकियों को भलीभांति जान लेना चाहिए, ताकि मनुष्य दुख रूपी फलों से तो अवश्य ही बच सके......सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य योनि में ही परमात्मा को लूटा जा सकता है।

 

जीवन रुपी गाड़ी के 4 गेयर/Gear - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-829)-09-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

हम सभी मनुष्यों को अपना जीवन सादगीपूर्ण बनाना चाहिए। जीवन में छल-कपट, ठगी, हेरा-फेरी से कमाया गया धन मनुष्य को सदा ही अशान्ति देता है। इस सच्चाई को मनुष्य अपने जीवन में जितनी जल्दी स्वीकार कर लेता है, मनुष्य के जीवन में उतने-उतने अंश में सुख-शान्ति सहज ही आने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

प्रकाश का अभाव हो या प्रकाश को आने से रोक दिया जाए, दोनों ही स्थितियों में अन्धकारमयी स्थिति उत्पन्न होती है। इसी तरह सत्सँग के अभाव में अज्ञानता जन्म लेती है या कुसंग के होने मात्र से हमारा ज्ञान आवर्त होने लगता है.....सुधीर भाटिया फकीर

ज्ञान की स्थितियाँ:- तमोगुणी, रजोगुणी, सतोगुणी

 

बाहरी परिस्थितियों से अन्त:करण का युद्ध - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-828)-08-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

कलयुग में मनुष्य प्रतिदिन की दिनचर्या में किये गए 2-4 पुण्य-कर्मों को तो याद करते नहीं थकता, लेकिन प्रतिदिन जाने-अनजाने में विषय-भोगों में आसक्त होते हुए कितने ही पाप-कर्म करता है, उसपर कभी चिन्तन नहीं करता, क्योंकि चिन्तन केवल सात्विक स्थिति में ही कर पाना संभव होता है, जो अक्सर कम समय ही बन पाती है•••सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

मनुष्य की अधिक से अधिक सुखों को भोगने की इच्छा ही मनुष्य के मन को पदार्थों का संग्रह करने के लिये उकसाती है और फिर संग्रह-वृति ही मनुष्य से कितने पाप-कर्म करवा लेती है, मनुष्य को स्वयं भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर

आध्यात्मिक जीवन कैसे जियें ?

 

आप कैमरे की निगरानी में हैं•••••भावार्थ - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-827)-07-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

मनुष्य योनि में ही किये गये सभी प्रकार के सकाम कर्मों का केवल पदार्थ रूपी फल ही मिलता है, जबकि निष्काम-कर्मों का आध्यात्मिक ज्ञान रूपी फल मिलता है, जो विषय-भोगों की मल रूपी परतों को भी जड़ से समाप्त करता है और परमात्मा की भक्ति में भी लगाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

केवल भगवान ही पूर्ण सत्ता है यानी आनन्दस्वरूप हैं, जबकि सँसार को सदा ही अपूर्णता/अभावों/दुखों की दलदल से जोड़ा जाता है। हम सभी मनुष्यों को अभावों की दलदल से निकलकर ही प्रभु को पाकर पूर्णता यानी आनन्द की प्राप्ति हो सकेगी.....सुधीर भाटिया फकीर

मलिन अन्त:करण (तमोगुण + रजोगुण)

 

आत्मा:- इच्छा }प्रयत्न - अनुभव }सुख-दुख - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-826)-06-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

एक साधारण मनुष्य की विषय-भोगों में रस-बुद्धि बनी ही रहती है, फिर निरंतर विषय-भोगों को भोगने से मनुष्य में प्रमाद, आलस्य, मोह की वृतियों का पनपना कोई नई बात नहीं, इन स्थितियों के बने रहने से ही मनुष्य तमोगुण में गिरता है, फिर यह तमोगुण ही मनुष्य को सत्संग करने से रोकता है....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

दुनिया में अधिकांश लोगों की प्रकृति के पदार्थों को अधिक से अधिक भोगने की इच्छा बनी ही रहती है, जबकि प्रकृति के 3 गुणों के सूक्ष्म-ज्ञान को समझते नहीं और दूसरी ओर लोगों में परमात्मा के बारे में अधिक जानने की कोई जिज्ञासा नहीं होती। इसीलिए अघिकतर लोगों की आध्यात्मिक उन्नति हो नहीं पाती.....सुधीर भाटिया फकीर

संसार में दोष-दर्शन }} वैराग्य

 

सुधरना एक दायित्व-सुधारना एक प्रयास - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-825)-05-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

एक संसारी मनुष्य का सारा जीवन लेना-देना पर ही टिका रहता है और अक्सर मनुष्य का देने में भी लेने का ही भाव छिपा रहता है, लेकिन जिस दिन मनुष्य अपने जीवन में दूसरों मनुष्यों को केवल देने का ही स्वभाव बना लेता है, तभी मनुष्य के जीवन में आध्यात्मिकता उन्नति का द्वार खुलता है.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

भारत में अक्सर वृद्धावस्था आने पर ऐसा देखा गया है कि अधिकांश लोग प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से भय या लोभ से सत्संग करते देखे गए हैं, भले ही आरंभिक सत्संग बेमन से ही होता है, फिर भी किया गया सत्संग मनुष्य को पाप कर्मों से तो रोक ही देता है.....सुधीर भाटिया फकीर

पशु-पक्षी सुखी और मनुष्य दुखी ?

 

परिस्थितियों में मनुष्य पराधीन या स्वाधीन - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-824)-04-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

हम सभी मनुष्यों को अपने जीवन में निरंतर सत्संग करते रहना चाहिए, ऐसा स्वभाव बन जाने से भगवान व आत्मा के दिव्य गुणों का ज्ञान-विज्ञान समझ में आने लगता है, जिसके फलस्वरूप जीवन भर संग्रह किया गया धन भी बेकार नजर आने लगता है.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

सभी मनुष्य अनादिकाल से सदा ही दुख रहित सुख/आनंद की तलाश के लिए ही प्रयत्नशील रहते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि प्रकृति द्वैत है, यहाँ अकेला सुख होता ही नहीं, सुख के साथ ही दुख छिपा रहता है, जो सुख को चखते समय नजर नहीं आता.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य के कर्म:- फल अशं-संस्कार अशं

 

क्रियामाण कर्म }}}}} संचित कर्म } प्रारब्ध/भाग्य - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-823)-03-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

जीवन में स्थूल-शरीर की सीमित आवश्यकतायें रखने में ही हमारी समझदारी है, अन्यथा भोग प्रेरित इच्छाएं ही हम मनुष्यों से उल्टे-सीधे काम करवाने लगती हैं, फलस्वरूप मनुष्य पाप नगरी में गिरता जाता है, जबकि आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये मनुष्य को एक साधारण पुरुषार्थ ही करना होता है.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

उम्र बढ़ने के साथ-साथ मनुष्य के स्थूल-शरीर की इन्द्रियाँ विषय-भोगों को भोगने में क्रमश: कमजोर होने लगती हैं। यह भी परमात्मा की ही एक कृपा है, अन्यथा भोग-प्रेरित मन के विकार मनुष्य द्वारा किये गये सत्संग को प्रभावहीन करते जाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

चेतना का स्तर यानी जागी हुई आत्मा

 

"नवरात्र शिक्षा सन्देश"

आप सभी भाई-बहनों को " नवरात्रे पर्व " की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ। सभी पर्वों को मनाने के पीछे हमारा एक ही उद्देश्य होता है कि एक सामान्य मनुष्य के जीवन में सतोगुण बढ़े, ताकि हमारे जीवन में सात्विकता बढ़े, जीवन व्यवस्थित व अनुशासित रहे, तभी समाज में रहने वाले सभी मनुष्यों के बीच में प्रेम, भाई-चारा व सौहार्द का वातावरण बनता है, जिसके फलस्वरूप हमारी परमात्मा में भी आस्था व प्रीती बढ़ती है और मिला हुआ जीवन सार्थक हो पाता है। इस दिशा में आप सभी भाई-बहनों का "आध्यात्मिक ज्ञानात्मक चैनल +822 वीडियो" www.youtube.com/c/sudhirbhatiaFAKIR व "ज्ञान-सागर" www.sudhirbhatiafakir.com में बहुत-बहुत स्वागत है। आपका आध्यात्मिक मित्र सुधीर भाटिया फकीर

कार्य के पीछे का कारण समझें - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-822)-02-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

हम सभी भाई-बहनों को समय-समय पर अपने स्वभाव का ब्रह्ममुहूर्त में निरीक्षण करते रहना चाहिए, क्योंकि मनुष्य योनि में ही स्वभाव सुधरता भी है और बिगड़ता भी है। हम मनुष्यों के अधिकांश कर्म बने हुए स्वभाव के अनुसार ही होते हैं। इसलिए सत्संग की स्थिति में रहते हुए स्वभाव में निरंतर सुधार करते रहना चाहिए, अन्यथा ?.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या-बेला सन्देश

हम सभी मनुष्यों को अपने मिले हुए जीवन में सदा श्रद्धापूर्वक सत्संग करते रहना चाहिए, ताकि हमारे जीवन में आध्यात्मिक उन्नति होनी आरम्भ हो, क्योंकि रजोगुणी मनुष्य का सत्संग बेमन से ही होता है, जबकि तमोगुणी मनुष्य तो सत्संग ही नहीं करता.....सुधीर भाटिया फकीर

भगवान:- परा चेतन शक्ति - अपरा जड़ शक्ति

 

प्रभाव/मौसम - स्वभाव/जलवायु - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-821)-01-04-2022

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

कलयुगी मनुष्य की मन-बुद्धि अधिक से अधिक विषय-भोगों का सुख भोगने की इच्छा से ही धन/पदार्थों का संग्रह करने के लिये सदा लगी रहती है। फिर पदार्थों का संग्रह करते-करते मनुष्य अपने जीवन में कितने अघिक पाप-कर्म कर जाता है, मनुष्य को स्वयं भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर