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Showing posts from March, 2021

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

हम सभी मनुष्यों को मनुष्य योनि योग करने के लिए ही मिली है, न कि भोग के लिए। योग तैरने का नाम है और भोग डूबने का। इसलिए प्रकृति से मिले सुख-सुविधा-स्वाद रुपी पदार्थों को चखने से बचते रहो, अन्यथा....? सुधीर भाटिया फकीर

मलिन अन्त:करण (तमोगुण + रजोगुण)-(सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-452)-31-03-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त-उपदेश"

धर्म का असली अर्थ है, जब मनुष्य स्वयं के जीवन को सुखमयी बनाने से पूर्व प्रकृति के अन्य सभी जीवों के सुख को भी सुनिश्चित कर ले, क्योंकि केवल अपने सुख की प्राप्ति के लिए दूसरे किसी भी जीव/जीवों को किसी भी प्रकार का कष्ट/दुख देना ही अधर्म मान लिया जाता है और मनुष्य योनि में किये गये ऐसे सभी विकर्मोँ/पापों का भविष्य में दुख रुपी फल मिलना निश्चित रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर

सँसार में दोष-दर्शन = वैराग्य-(सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-451)-30-03-2021

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

भौतिक प्रकृति परमात्मा की ही रचना है और प्रकृति के सभी पदार्थ प्रकृति में रहने वाले सभी जीवों के उपयोग के लिए ही है। हम सभी मनुष्यों को भी इन पदार्थों का केवल अपनी आवश्यकतानुसार ही ग्रहण करना होगा, अन्यथा प्रकृति/परमात्मा की नजरों में हमें चोर ही माना जाएगा.....सुधीर भाटिया फकीर

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

किसी भी मनुष्य की सही पहचान उसे देखने मात्र से कभी नहीं हो सकती। एक साधारण मनुष्य की प्रथम पहचान उसके द्वारा बोले गए शब्दों द्वारा हो सकती है, लेकिन यह पहचान भी आंशिक रूप से ही होती है, जबकि पूर्ण पहचान तो उसके द्वारा होने वाले कर्मों से ही होती है, क्योंकि कर्म अन्तकरण में बने हुए संस्कारों/स्वभाव के अनुसार ही होते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

पशु-पक्षी सुखी और मनुष्य दुखी ? (सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-450)-29-03-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

भौतिक प्रकृति का ही दूसरा नाम माया है। यह माया 2 प्रकार की होती है, विद्या-माया और अविद्या-माया। अविद्या माया यानी रजोगुणी और तमोगुणी माया, जोकि कर्म और ज्ञान से समाप्त हो सकती है, लेकिन विद्या माया यानी सतोगुणी माया, जोकि भक्ति करते रहने से ही क्रमश: समाप्त होनी आरंभ होती है.....सुधीर भाटिया फकीर.

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

मनुष्य को अपने जीवन में भूल कर भी धन यानी अर्थ को अपने जीवन का लक्ष्य नहीं बनाना चाहिए, अन्यथा मिले हुए जीवन का अर्थ ही समाप्त हो जाएगा. जीवन का लक्ष्य सदा ही परमात्मा को बना कर रखो, ताकि हमारे जीवन में हर क्षण उसका चिंतन बना रहे, ताकि दीर्घकाल तक बना हुआ चिंतन ही हमारा स्वभाव बन जाए.....सुधीर भाटिया फकीर

"होली-सन्देश"

आप सभी भाई-बहनों को "होली" पर्व की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ। सभी पर्वों को मनाने के पीछे हमारा एक ही उद्देश्य होता है कि समाज में रहने वाले सभी मनुष्यों के बीच भाई-चारा, प्यार व सौहार्द का वातावरण बना रहे व परमात्मा में हमारी आस्था व प्रीति बढ़े। इसी दिशा में आप सभी भाई-बहनों का "आध्यात्मिक ज्ञानात्मक चैनल" www.youtube.com/c/sudhirbhatiaFAKIR व "ज्ञान-सागर" www.sudhirbhatiafakir.com में भी बहुत-बहुत स्वागत है। आपका आध्यात्मिक मित्र सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य के कर्म:- फल अंश-संस्कार अंश-(सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-449)-28-03-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य अपने जीवन में प्रयत्नपूर्वक स्थूल शरीर की इंद्रियों पर तो लोभ/भय/दबाव से नियंत्रण में ले सकता है, लेकिन मन को बिना सत्संग किए नियंत्रण में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि मन बहुत ही हठीला है, लेकिन मन का दीर्घकाल तक निरंतर सत्संग करते रहने से शुभ स्वभाव बन सकता है, जोकि मनुष्य जीवन की सार्थकता व सफलता है.....सुधीर भाटिया फकीर

Karmon ka Rahesey 002

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

प्रभु की स्मृति बने रहने मात्र से ही हमारे कर्मों में सुधार होने लगता है और जीवन में भी उमंग-उल्लास बना रहता है, जबकि प्रकृति के भोगों में आसक्ति बने रहने मात्र से ही परमात्मा की विस्मृति होने लगती है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य से पाप कर्म होने कब शुरू हो जाते हैं, मनुष्य को स्वयं भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर

चेतना का स्तर (जागी हुई आत्मा)-सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-448 - 27-03-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सम्पूर्ण भौतिक प्रकृति त्रिगुणात्मक है, जिसके फलस्वरूप हम सभी मनुष्यों की बुद्धि भी 3 प्रकार की होती है, सात्विक, राजसी और तामसी। मनुष्य योनि में हम अपनी जैसी बुद्धि बना लेते है, फिर वैसा ही हमारा जीवन बनने लगता है। राजसी बुद्धि संसार पाने में लगाती है, संसार हाथ लगेगा या नहीं, लेकिन इतना तो अवश्य ही निश्चित रहता है कि परमात्मा हाथ नहीं लग सकता, क्योंकि बिना सात्विक बुद्धि के तो परमात्मा को जाना भी नहीं जा सकता.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

शास्त्रों के अनुसार यानी परमात्मा की आज्ञानुसार जीवन जीने से जीवन में उमंग-उल्लास बना रहता है, अर्थात् जीवन ही एक उत्सव लगने लगता है, जबकि शास्त्रों के विरुद्ध जीवन जीना ही एक अधर्म है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य की मरने के बाद अधोगति का रास्ता बनता जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

भगवान:- परा शक्ति-अपरा शक्ति-(सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-447)-26-03-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

गुरू व आध्यात्मिक शास्त्रों का श्रध्दापूर्वक सुनना या पढ़ना ही सत्सँग करना है, जोकि केवल मनुष्य योनि में ही सम्भव है, जिसके निरंतर करते रहने से ही भगवान रुपी मंजिल का ज्ञान होता है, गुरु या शास्त्र भी हमें केवल रास्ता ही दिखाते हैं, यदि मनुष्य इन रास्तों पर चलता ही नहीं, तो मंजिल को कभी नहीं पा सकता. देखिए, इतनी छोटी सी बात है, जो अक्सर मनुष्य को मरते दम तक समझ में नहीं आ पाती ? ...सुधीर भाटिया फकीर

Karmon ka Rahesye -001

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

हम सभी मनुष्यों द्वारा किए गए सभी प्रकार के कर्म और विकर्म प्रकृति रूपी मिट्टी में बोये गए बीजों के समान है, जो दिनों, महीनों, सालों या अगले जन्म/जन्मों में यानी एक समय अंतराल के बाद पक जाने पर सुख-दुख रुपी फल अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों के रुप में देते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

अन्धविश्वास यानी अज्ञानता - (सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-446)-25-03-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

हम सभी मनुष्य जीवन जीने की सीमित सांसें ले कर आए हैं, जो जन्म के साथ ही घटती जाती हैं, अर्थात् हर पल हमारी मृत्यु नज़दीक आती जा रही है, यानी कर्म करने की, प्रभु का ज्ञान-विज्ञान समझने की और प्रभु की भक्ति करने का समय निरन्तर हमारे हाथ से फिसलता जा रहा है, इसपर हम सभी मनुष्यों को चिन्तन करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

कर्मों का लक्ष्य:- सुखों की प्रवृति-दुखों से निवृति(सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-445)-24-03-21

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

हम सभी मनुष्यों को सत्संग सुनते समय मन को भी सदा शामिल रखना चाहिए, यदि मन सुनता ही नहीं और अन्य विषय-भोगों में ही मानसिक रूप से विचरण करता रहता है, तब ऐसे में किया गया सत्सँग प्रभावहीन रहता है और मनुष्य के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन नहीं आ पाता.....सुधीर भाटिया फकीर

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

हम सभी मनुष्यों को अपने-अपने जीवन में स्वार्थ रहित होकर ईमानदारी से व प्रसन्नचित्त भाव से सभी जीवों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए ही कर्म करने चाहिए, यही परमात्मा के प्रति हमारी एक सच्ची पूजा है.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

शास्त्रों में आहार, मैथुन, निंद्रा व भय को पशु-वृतियां माना गया है, यह सभी वृतियां प्रकृति से प्रेरित रहती हैं, लेकिन मनुष्य योनि पाकर हमें परमात्मा को जानने की जिज्ञासा रखनी चाहिए, अन्यथा पशुओं व मनुष्यों का मूल भेद ही समाप्त हो जाता है, इसलिए सभी मनुष्यों को अपने जीवन में सत्संग करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रकृति:- तमोगुण 33% + रजोगुण 33% + सतोगुण 33% -(सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-444)-23-03-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

जीवन में निरंतर सत्संग करते रहने से ही मन अपने मूल स्वरूप में टिकने लगता है, जिसके फलस्वरूप मन से विषय भोगों की वासना मरने लगती है और विवेक-शक्ति जगने लगती है, जो परमात्मा को जानने-समझने व जोड़ने में मदद करती है और अन्तत: परमात्मा से प्रीति करवा देती है.....सुधीर भाटिया फकीर

स्थूल शरीर (सूक्ष्म शरीर...)-परमात्मा (आत्मा...)-सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-442, -21-03-21

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

मनुष्य को अपने जीवन में धर्म कमाने का लक्ष्य बनाना चाहिए, न कि धन कमाने का। धन को मात्र एक साधन मानो। धन तो जीते जी भी सदा काम नहीं आता, जबकि धर्म तो मरने के बाद भी हमारा कल्याण ही करता है.....सुधीर भाटिया फकीर

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

एक साधारण मनुष्य अक्सर स्वभाव से ही रजोगुणी माना जाता है। इसीलिये सभी मनुष्यों की भोग कामनायें रजोगुण से ही प्रभावित होती हैं और अक्सर इन भोगों को भोगने में बाधा उत्पन्न करने वाले मनुष्यों पर क्रोध आ जाता है। इस क्रोध को हमें कभी भी किसी आंधी-तूफान से कम नहीं आंकना चाहिए, क्योंकि आंधी-तूफान आते तो कम समय के लिए हैं, लेकिन नुकसान बहुत लंबे समय का कर जाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

कर्म-फल सिद्धान्त के अनुसार भौतिक प्रकृति का प्रत्येक जीव केवल अपने मनुष्य योनि में ही किए गए कर्मों का फल खा/भोग सकता है, किसी दूसरे-तीसरे का हिस्सा खा ही नहीं सकता, यदि कोई खाता है, तो प्रकृति रुपी अदालत (परमात्मा की शक्ति) उसे दंड दिए बिना छोड़ती नहीं और दूसरे की क्षतिपूर्ति ब्याज सहित लौटाती है, क्योंकि परमात्मा न्यायकारी है.....सुधीर भाटिया फकीर

तनाव का मूल कारण - (सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-438)-17-03-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

अक्सर ऐसा माना जाता है कि आवश्यकता से अधिक धन जीवन में मिलने से हमारा आध्यात्मिक ज्ञान आवर्त होने की संभावनाएँ बड़ जाती हैं, जबकि धन के चले जाने से आध्यात्मिक ज्ञान मिलने के लिए अनुकूल परिस्थितियां सहज ही बनने लगती है, फिर भी सामान्य मनुष्य धन पाने के लिए कर्म ही नहीं करता, बल्कि विकर्म/पाप कर स्वयं ही अपनी अधोगति करने से पीछे नहीं हटता.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रकृति:-भोग/पशु पक्षी, अपवर्ग/मनुष्य-सुधीर भाटिया फकीर - (आध्यात्मिक कक्षा-415)-22-02-2021

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

भौतिक प्रकृति द्वैत है अर्थात् यहाँ सुख-दुख दिन-रात के समान जीवन में आते-जाते रहते हैं। दुखों के प्रकोप से बचने के लिए सुखों के रस पूर्वक भोग का त्याग करना नितांत आवश्यक है.....सुधीर भाटिया फकीर

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

संसार या प्रकृति को स्पष्ट रूप से जान लेने पर संसार से सहज ही वैराग्य होने लगता है और जिसके फलस्वरूप मनुष्य की परमात्मा के प्रति सहज ही जानने की जिज्ञासा जन्म लेती है। यही जिज्ञासा ही मनुष्य को सत्सँग करने की प्रेरणा देती है और अन्ततः परमात्मा से प्रेम करवा देती है, फिर हमें परमात्मा को याद नहीं करना पड़ता, बल्कि परमात्मा की स्मृति सदा ही बनी रहती है.....सुधीर भाटिया फकीर

कर्मों का हिसाब-(सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-417) - 24-02-2021

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

प्रकाश के अभाव में अन्धकार का प्रकट होना स्वाभाविक है या प्रकाश को रोकने पर भी अन्धकार की स्थिति बनती है। इसी तरह सत्सँग के अभाव में अज्ञानता जन्म ले लेती है या कुसंग के होने मात्र से हमारा ज्ञान आवर्त होने लगता है.....सुधीर भाटिया फकीर

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

भौतिक प्रकृति की 84,00000 योनियों में सिर्फ मनुष्य योनि में ही किए गए सभी सकाम कर्मों को लिखा जाता है, जिनका सुख-दुख रूपी फल भोगना ही पड़ता है। पुण्य कर्मों का सुख रुपी फल का तो त्याग किया जा सकता है, लेकिन पाप कर्म का फल कर्ता को ही भोगना होता है, अन्य किसी दूसरे-तीसरे को नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

आध्यात्मिक ज्ञान और विज्ञान - (सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-423) - 02-03-2021

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

सभी शास्त्रों को परमात्मा की वाणी ही मानना चाहिए। इन शास्त्रों में एक-एक शब्द तौल-तौल कर कहा गया है। इन शब्दों में गहरे अर्थ छिपे रहते हैं, जिस पर निरंतर गहन चिंतन करते रहने से ही समझ में आ पाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी भौतिक विषयों के भोगों में रस/सुख अस्थायी है, जबकि भोगों को भोगने में हमारे स्थूल शरीर की सभी इंद्रियां उम्र बढ़ने के साथ-साथ कमजोर होती जाती हैं यानी हमारी मृत्यु नजदीक आ रही है। ऐसा ज्ञान मन में स्थिर होने पर ही फिर इन 5 भोग विषयों के प्रति अरुचि पैदा होती है और स्थायी सुख/आनंद की तलाश शुरू होती है, उससे पूर्व  नहीं? .....सुधीर भाटिया फकीर

परमात्मा एक हितैशी-(सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-433)-12-03-2021

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

स्थूल शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तो पुरुषार्थ करना ही चाहिए, लेकिन लोभवृत्ति से सदा बचना चाहिए, अक्सर लोभवृति मनुष्य को चोर व संग्रहवृति हमें राक्षस बनाने में देरी नहीं करती, जो मरने के बाद हमें नीचे की योनियो में घसीट कर हमारी अधोगति करवाती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

हम सभी मनुष्य जन्म के साथ ही सीमित सांसे लेकर आते हैं, अर्थात् हम सभी मनुष्यों की मृत्यु हर पल नज़दीक आती जा रही है, यानी हमारे पास कर्म करने का समय, प्रभु का ज्ञान-विज्ञान समझने की और प्रभु की भक्ति करने का समय निरन्तर हमारे हाथ से फिसलता जा रहा है। ऐसी सभी बातों को एक सामान्य मनुष्य मजाक में ही लेता है और इनपर कभी विचार ही नहीं करता ? .....सुधीर भाटिया फकीर

तमोगुण - रजोगुण एक पड़ोसी है - (आध्यात्मिक कक्षा-323)-सुधीर भाटिया फकीर-22-11-2020

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

सँसार में अक्सर ऐसा देखा जाता है कि एक साधारण मनुष्य की स्थूल इन्द्रियाँ भोग-विषयों के प्रति तो जागरूक बनी रहती है, लेकिन मनुष्य का आरम्भिक सत्संग अक्सर बेमन से ही देखा जाता है, जिसके फलस्वरूप व्यवहार में मनुष्यों का रजोगुण या तमोगुण ही प्रधान बना रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी शास्त्रों का ज्ञान हम सभी मनुष्यों के जीवन में मार्ग-दर्शन करने के उद्देश्य से ही बनाये गये हैं। वेदों में ही बताया गया है, यह करो और यह मत करो यानी विधि-निषेध, विधि/पुण्य कर्म करने से सुख की व निषेध/पाप कर्म करने से दुख की प्राप्ति होती है, जबकि सभी मनुष्यों को कर्म करने की स्वतन्त्रता भी दी गई है.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य का स्वभाव:- तमोगुण, रजोगुण, सतोगुण-सुधीर भाटिया फकीर (आध्यात्मिक कक्षा-402)- 09-02-2021

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

सँसार की तुलना सागर से की जा सकती है, क्योंकि सागर में लहरें उठती-गिरती रहती हैं, उसी तरह सँसार में भी हमारे-आपके जीवन में दुख रुपी लहरें आती-जाती रहती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि में पुण्य कर्म करने से स्थूल शरीर पतन से तो बच सकता है, लेकिन स्थूल शरीर में पवित्रता तो निरन्तर निषकाम कर्म करने से ही आती है, जबकि पाप कर्मों के करने मात्र से ही स्थूल शरीर मैला नहीं होता, बल्कि सूक्ष्म और कारण शरीर भी क्रमश: अपवित्र होने लगते हैं, जिसके फलस्वरूप आत्मा पर आवरण आने लगते हैं, जो हमें परमात्मा से विमुखता का कारण बनते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

संस्कारों की तीव्रता-सुधीर भाटिया फकीर(आध्यात्मिक कक्षा-404) - 11-02-2021

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

जब-जब मनुष्य के जीवन में सँसार से उदासी होती है, तब-तब मनुष्य को परमात्मा की याद अपने आप ही आने लगती है, अन्यथा प्रयत्नपूर्वक ऐसा करने पर भी अस्थायी तौर पर ही झलक मिलती है, जो टिकती नहीं है.....सुधीर भाटिया फकीर

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रकृति के सभी जीव जैसे वृक्ष, कीड़े-मकोड़े, कीट-पतंगे, पक्षी, पशु कभी भी अपना स्वभाव नहीं बदल सकते, जबकि अक्सर जीव मनुष्य योनि में ही आ कर अपना स्वभाव बिगाड़ लेता है। प्रकृति के पदार्थों को मर्यादा से अधिक भोगने से ही हमारा स्वभाव बिगड़ता है और सतो का संग यानी सत्संग करते रहने से ही हमारा स्वभाव सुधरता है.....सुधीर भाटिया फकीर

वैराग्य की 3 स्थितियाँ: स्थूल,सूक्ष्म व कारण शरीर-(सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-430) -09-03-21

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

भौतिक प्रकृति में सूर्य का हमारे तन को प्रकाशित करता है और परमात्मा का ज्ञान हमारे मन को प्रकाशित करता है यानी ज्ञान देता हूँ, लेकिन दोनों ही परिस्थितियों तन-मन की सम्मुखता होना अनिवार्य होता है.....सुधीर भाटिया फकीर

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

एक साधारण मनुष्य अपनी आवश्यकता और इच्छा में भेद नहीं करता. दाल-रोटी का मिलना हम सभी मनुष्यों के स्थूल शरीर की एक आवश्यकता है, लेकिन दाल-रोटी के साथ मलाई कोफ्ता, रायता, अचार, पापड़, कुल्फ़ी आदि की चाह रखने से आवश्यकता ही इच्छा में बदल जाती है। इसलिए अपनी आवश्यकताओं को इच्छा मत बनने दो, अन्यथा यह इच्छाएं ही हमसे उल्टे सीधे काम करवा कर पाप नगरी में घसीटती है.....सुधीर भाटिया फकीर

जड़ (दृश्य/गन्ध,रस,रुप,स्पर्श,शब्द) -चेतन(दृष्टा)-(सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-427)-06-03-2021

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

मनुष्य की आध्यात्मिक यात्रा उस दिन आरंभ होती है, जिस दिन मनुष्य परमात्मा से मांगना बन्द कर देता है। ऐसा मनुष्य वर्तमान जीवन में मिली हुई सभी परिस्थितियों में प्रसन्न रहता है और अपने कर्तव्य कर्मों को सावधानीपूर्वक व ईमानदारी से करने लगता है.....सुधीर भाटिया फकीर

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सच्चिदानंद शब्द, जोकि भगवान का ही एक पर्यायवाची नाम है, जबकि प्रकृति केवल सत्य है, दूसरी ओर जीव/आत्मा सत्य के साथ-साथ चेतन भी है, लेकिन आनंद रहित है. केवल परमात्मा ही आनंद है यानी सच्चिदानंद है, इसलिए प्रत्येक आत्मा सदा दुख रहित सुख यानी आनंद की प्राप्ति के लिए ही सदा प्रयत्नशील रहती है, जोकि प्रकृति में है ही नहीं ?.....सुधीर भाटिया फकीर

योग:- स्थूल,सूक्ष्म व कारण शरीर-(सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-410)-17-02-2021

 

सन्ध्या-बेला सन्देश"

जीवन में लाभ की आशा रखने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन मन में लोभ की वृत्ति का जन्म होते ही मनुष्य कब संग्रह और महासंग्रह की खाई में गिर जाता है, मनुष्य को स्वयं भी पता नहीं चलता। इस पर सदा चिन्तन करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रकृति:- सृष्टि,स्थिति,प्रलय-सुधीर भाटिया फकीर-(आध्यात्मिक कक्षा-411) - 18-02-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

प्रकृति में 3 गुण, सतो, रजो व तमो नित्य एक क्रम में आते-जाते रहते हैं। सूर्य के डूबते ही तमोगुण, फिर सतोगुण, फिर रजोगुण. इनका आने-जाने का क्रम कभी नहीं बदलता। एक मनुष्य जिस गुण का जितना-जितना संग करता है, उस गुण का रंग/असर/प्रभाव उतना-उतना हमारे जीवन में सहज ही पड़ता जाता है, अर्थात् हमें सतो का अधिक से अधिक संग करना चाहिए, ताकि हमारी आध्यात्मिक उन्नति होती रहे, जो मरने के बाद भी सुरक्षित बनी रहती है, जबकि भौतिक उन्नति मरने के साथ ही समाप्त हो जाती है.....सुधीर भाटिया फकीर

मूल सूत्र:- तमो1%,रजो10%,सतो100%-सुधीर भाटिया फकीर(आध्यात्मिक कक्षा-395)- 02-02-2021

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

एक साधरण मनुष्य अक्सर इस बात की निरंतर चिन्ता करता ही रहता है, कि "लोग क्या सोचेंगे", लेकिन मरते दम तक मनुष्य इस बात पर कभी चिंता ही नहीं करता, कि "भगवान क्या सोचेंगे", क्योंकि भगवान ने अपनी ओर से यह अन्तिम मनुष्य जन्म दिया है। इसपर मनुष्य को सदा चिंतन करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

"प्रश्न-निवारण सन्देश"

हम सभी मनुष्यों को अपने बड़े भविष्य को सुन्दर बनाने के लिये परमात्मा से जुड़ना ही होगा। इस सच्चाई को हमें अपने जीवन में जल्द से जल्द स्वीकार कर लेना चाहिए। इस दिशा में आप सभी भाई-बहनों का मेरे  "आध्यात्मिक ज्ञानात्मक चैनल" www.youtube.com/c/SudhirBhatiaFAKIR में बहुत-बहुत स्वागत है, जहाँ प्रतिदिन ब्रह्म-मुहूर्त में परमात्मा की प्रेरणा से किसी एक आध्यात्मिक विषय पर वीडियो (आज तक +431) अपलोड की जाती है। वीडियो का पूर्ण ज्ञान-लाभ लेने के लिए वीडियो को एकांत में ही सुनें। वीडियो पसन्द आने पर चैनल को "SUBSCRIBE" करें और वीडियो सम्बंधित प्रश्नों के निवारण के लिए "COMMENTS BOX" में लिखें।  आपका आध्यात्मिक मित्र सुधीर भाटिया फकीर

सँसार: सतोगुण-तैरना,रजोगुण-बहना,तमोगुण-डूबना-(सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-425)-04-03-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि में ही हमारे पास अशुद्ध आत्मा यानी आवर्त आत्मा का मल समाप्त करने का एक अवसर है। जिसका आरंभ सत्संग करने से ही होता है, जबकि सत्संग के अभाव में मनुष्य का कुसंग सहज ही होता रहता है, जिसके फलस्वरूप मल घटने की बजाय और अधिक बढ़ने लगता है.....सुधीर भाटिया फकीर

मनुष्य के जीवन का "ECG" यानी तमो+रजो+सतोगुण में विचरण-(सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-426)5-3-21

 

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

अन्य मनुष्यों/जीवों को भयभीत करना या धमकाना भी एक प्रकार का विकर्म/पाप ही है, क्योंकि हमारे कर्म द्वारा उन मनुष्यों/जीवों को दुख मिलता है और कर्म-सिद्धांत के अनुसार भविष्य में ऐसे किये पाप कर्मों का हमें दुख रुपी फल भोगने ही पड़ते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

जानना और मानना में बहुत गहरी खाई है. जिसे मानने में मनुष्य का जीवन भी छोटा पड़ जाता है। इस सत्य को सभी मनुष्य स्वीकार करते हैं, कि पाप कर्मों का दुख रुपी फल आना निश्चित है,  फिर भी मनुष्य पाप कर्मों को करने से परहेज नहीं करता.....सुधीर भाटिया फकीर

सूर्य की किरणें-ज्ञान की किरणें - (सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-421)-28-02-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

सभी मनुष्यों को स्थूल शरीरों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये धन की जरुरत पड़ती है, लेकिन धन को ही संग्रहित करते रहने से यह इकठ्ठा किया हुआ धन ही एक दिन विषाद/जहर बन जाता है, इसलिए जीवन में मिले हुए अतिरिक्त धन को जरुरतमन्द लोगों में बांटते रहना चाहिये, ऐसा निरन्तर करते रहने से स्वयं का धन भी प्रसाद बन जाता है और प्रसाद में सदा भगवान का आशीर्वाद बना रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

मनुष्य योनि में ही सतोगुण बढ़ाने का एक अवसर है, इस मिले हुए अवसर का हमें पूर्ण लाभ उठाना चाहिए। इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है कि सभी मनुष्यों को ब्रह्म-मुहूर्त में अवश्य ही उठ जाना चाहिए, जोकि सर्वोतम सतोगुणी समय माना जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

जन्म-मरण:- बन्धन-सुधीर भाटिया फकीर(आध्यात्मिक कक्षा-403)10-02-2021

 

जीवन एक गाड़ी/स्थूल शरीर-सुधीर भाटिया फकीर(आध्यात्मिक कक्षा-407) -14-02-2021

 

सत्संग में रुचि-घुटन ? (सुधीर भाटिया फकीर-आध्यात्मिक कक्षा-428)-07-03-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

प्राय: ऐसा देखा जाता है कि आकाश में उड़ने वाले मच्छर, तितली, चिड़िया, कबूतर और गिद्ध आदि सभी जीवों के उड़ने की ऊँचाईयों में भेद बना रहता है, उसी प्रकार सत्संग करने वाले मनुष्यों की श्रद्धा रूपी गहराइयां भी अलग-अलग होती है, अर्थात् सभी श्रोता अलग-अलग श्रेणी/स्तर/कक्षा के होते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्याकालीन सन्देश

सभी आत्माएँ स्वभाव से ही ज्ञानवान है, लेकिन मनुष्यों द्वारा माया/प्रकृति के पदार्थों को मर्यादा से अधिक भोगने के कारण अज्ञान रूपी पर्दा हमें अचेत कर अज्ञानता में ले आता है और यह अज्ञानता क्रमश: निरंतर सत्संग करते रहने से ही जाती है.....सुधीर भाटिया फकीर

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

भौतिक प्रकृति अपने आप में तो जड़ कही जाती है, लेकिन परमात्मा की शक्ति पाकर हर पल क्रियाशील दिखती है। शक्ति कहीं भी हो, अपना कार्य सदा ही अदृश्य रूप से करती है, जैसे विद्युत-शक्ति फ्रीज में रखे हुए पानी को ठंडा और हीटर पानी को गरम करने का काम करता है, इसी तरह शुभ कार्य/सत्संग हो या अशुभ कार्य/कुसंग, दोनों ही मनुष्यकृत कार्यों में भगवान की शक्ति अपना कार्य अदृश्य रूप से ही करती है.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्याकालीन सन्देश

प्रकृति परमात्मा की ही एक रचना है। प्रकृति के सभी पदार्थ सभी जीवों के उपयोग मात्र के लिए है, न कि भोग के लिए। उपयोग में योग बना रहता है, जबकि भोग अन्ततः मनुष्य का पतन ही करवाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

"ब्रह्म-मुहूर्त का उपदेश"

24 तत्वों वाली भौतिक प्रकृति मनुष्य योनि में ही किए गए सकाम कर्मों के आधार पर यानी पाप कर्मों का दुख रुपी फल और पुण्य कर्मों का सुख रुपी फल देती है, जबकि भगवान निष्काम कर्म, आध्यात्मिक ज्ञान व भक्ति के आधार पर ही प्रसाद के रुप में आनन्द रुपी फल देते हैं, जबकि भगवान ने हम सभी मनुष्यों को शास्त्रों के ज्ञान के साथ-साथ कर्म करने की स्वतंत्रता भी प्रदान की है.....सुधीर भाटिया फकीर

एक सच्चाई

वेदों में ही हम सभी मनुष्यों के कल्याण के लिए बताया गया है, कि यह करो और यह मत करो यानी विधि-निषेध। विधि-विधान द्वारा कर्म करने से सुख की प्राप्ति होती है और निषेध कर्म करने से भविष्य में हमें दुख की प्राप्ति होना निश्चित है.....सुधीर भाटिया फकीर

आज का सन्देश

सभी मनुष्यों द्वारा सुखों को भोगने व चिन्तन करते रहने से परमात्मा की स्मृति क्रमश: कमजोर होने लगती है, जबकि प्रत्येक क्षण मृत्यु की स्मृति बने रहने से हमारी भौतिक सुखों को भोगने की इच्छाएं कमजोर होती हैं और परमात्मा के प्रति भावनाएं मजबूत होने लगती हैं, जो सत्संग करने में मदद करती हैं, जिसके फलस्वरूप मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति होनी आरंभ होती है.....सुधीर भाटिया फकीर

एक सच्चाई

84,00000 योनियों के सभी असंख्य जीव, चाहे चींटी हो, हाथी हो या मनुष्य हो, सभी जीवों में ही सुख पाने की प्रवृत्ति और दुखों से निवृत्ति की इच्छा सदा ही बनी रहती है, इसलिए सभी जीवों द्वारा होने वाले सभी कर्म-विकर्म भी इसी उद्देश्य से ही किये जाते है.....सुधीर भाटिया फकीर

आज का सन्देश

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एक सच्चाई

  स्थूल शरीर यानी तन के रिश्ते जन्म के साथ ही बनते हैं और मृत्यु होने के साथ ही समाप्त हो जाते है, लेकिन मन यानी सूक्ष्म शरीर के रिश्ते मरने के बाद भी बने रहने की संभावनाएं अधिक रहती है. जबकि आत्मा के रिश्ते सदा ही बने रहते हैं, क्योंकि आत्मा-परमात्मा का सजातीय संबंध है, इसलिए रिश्ता टूटने का तो प्रश्न ही नहीं उठता..... सुधीर भाटिया फकीर