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Showing posts from December, 2021

नववर्ष सन्देश

नववर्ष 2022 की आप सभी भाई-बहनों को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। भगवान आप सभी भाई-बहनों को अपने जीवन के कर्तव्य-कर्मों को ईमानदारी से निभाने की सद्बुद्धि व शक्ति प्रदान करे व भगवान आपको नववर्ष में आध्यात्मिक, मानसिक, शारीरिक व आर्थिक रूप से सुन्दरता व स्वस्थता भी प्रदान करे। जीवन में सात्विकता बढ़ाने के लिये "आध्यात्मिक ज्ञानात्मक चैनल"(+731 कक्षाऐं) www.youtube.com/c/SudhirBhatiaFAKIR व "ज्ञान-सागर" www.sudhirbhatiafakir.com में प्रतिदिन "ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश" व "सन्ध्या-बेला संदेश" भी पढ़ते रहें, ताकि आपके कर्मों में निरन्तर सुधार होता रहे।  आपका आध्यात्मिक मित्र सुधीर भाटिया फकीर

संध्या बेला सन्देश

हम सभी मनुष्यों को अपने जीवन में किये गए सत्संग को अपने व्यवहार में लाना चाहिए, लेकिन एक साधारण मनुष्य ज्ञान को सुनने तक ही सीमित रखता है, उसे अपने जीवन के व्यवहार में नहीं लाता। इसीलिए मनुष्य के कर्मों में कोई सुधार नहीं आ पाता.....सुधीर भाटिया फकीर

मृत्यु को संवार लेना

 

मनुष्य योनि एक जिम्मेदारी - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-730)-31-12-2021

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

सभी मनुष्यों को अक्सर कहा जाता है कि जीवन में सदा पुण्य कर्म ही करो, क्योंकि पुण्य कर्म पाप-कर्मों से अच्छे हैं और पाप-कर्म छुड़वाने के लिए ही पुण्य-कर्म करने की एक शिक्षा दी जाती है, लेकिन दोनों ही बंधन का कारण हैं, जबकि हमारी आध्यात्मिक उन्नति का बन्द दरवाजा केवल निष्काम कर्म ही खोलते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या बेला सन्देश

परमात्मा द्वारा संचालित प्रकृति मात्र एक यन्त्र है, जहाँ 84,00000 प्रकार के स्थूल शरीर हैं और सभी स्थूल जीव केवल मनुष्य योनि में ही स्वयं द्वारा किए गए कर्मों का फल खा/भोग सकते हैं, किसी दूसरे-तीसरे-चौथे मनुष्य का हिस्सा खा ही नहीं सकते, ऐसा कर्मफल सिद्घांत/विधान है.....सुधीर भाटिया फकीर

उपादान और निमित्त कारण

 

आवरित आत्मा》मन-बुद्धि》सँसार(गन्ध,रस,रुप,स्पर्श,शब्द) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-729)-30-12-2021

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

शास्त्रों में बार-बार जोर दे कर कहा गया है कि मनुष्य योनि में हम सभी भाई-बहनों को अपने मिले हुए जीवन में पाप कर्मों से बचने के लिए निरन्तर सत्संग करते ही रहना चाहिए, अन्यथा सत्संग के अभाव में कुसंग सहज ही होने लगता है और कुसंग के प्रभाव से मनुष्य कब और कितने पाप-कर्म कर जाता है, मनुष्य को स्वंय भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

परमात्मा एक सर्वव्यापक सत्ता है, जिसे हमें कहीं ढूंढना नहीं होता, हमें केवल अपनी पात्रता/योग्यता बनानी होती है। निरंतर सत्संग करते रहने से ही हमारी पात्रता क्रमश: बनती जाती है और पात्रता बन जाने पर परमात्मा स्वयं ही अपना बोध करवा देते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

बड़े भविष्य का चिन्तन

 

मेरी माया - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-728)-29-12-2021

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

प्रकृति हम सभी मनुष्यों को किए गए कर्मों के आधार पर ही नंबर/फल देती है, जबकि भगवान कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग के आधार पर ही हम सभी मनुष्यों को नंबर देते हैं यानी अपनी आध्यात्मिक कृपा करते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या बेला सन्देश

प्रकृति हम सभी मनुष्यों को किए गए कर्मों के आधार पर ही नंबर/फल देती है, जबकि भगवान कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग के आधार पर ही हम सभी मनुष्यों को नंबर देते हैं यानी अपनी आध्यात्मिक कृपा करते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

स्थूल शरीर एक रथ

 

सोने की कीमतों के बढ़ने का कारण } सोना - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-727)-28-12-2021

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

हम सभी मनुष्यों के स्थूल शरीर तामसी हैं और 5 विषय-भोग भी तामसी ही हैं, फलस्वरूप मनुष्य के स्थूल शरीर की इन्द्रियां सत्संग के अभाव में इन विषय-भोगों को भोगने में जल्दी फिसल जाती हैं, इसलिए हम सभी मनुष्यों को सत्संग करते रहना ही होगा, अन्यथा.....? सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या बेला सन्देश

तन के रिश्ते जन्म के साथ ही बनते हैं और मृत्यु होने के उपरांत ही समाप्त हो जाते है, लेकिन आत्मा-परमात्मा का नित्य सम्बन्ध है यानी आत्मा-परमात्मा का सजातीय संबंध है, इसलिए टूटने का तो प्रश्न ही नहीं उठता.....सुधीर भाटिया फकीर

पुण्य कर्म:- सकाम-निष्काम

 

सदुपयोग-दुरुपयोग - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-726)-27-12-2021

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

प्रकृति के तमोगुण, रजोगुण व सतोगुण जड़ होने के बावजूद भी नित्य बने रहते हैं, जबकि आत्मा नित्य के साथ चेतन भी है, लेकिन आत्मा में आनंद गुण नहीं है, इसीलिए प्रत्येक जीव सदा ही आनंद की तलाश में प्रयत्नशील रहती है, जबकि आंनद केवल परमात्मा का ही गुण है.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या बेला सन्देश

प्रकृति के तमोगुण, रजोगुण व सतोगुण जड़ होने के बावजूद भी नित्य बने रहते हैं, जबकि आत्मा नित्य के साथ चेतन भी है, लेकिन आत्मा में आनंद गुण नहीं है, इसीलिए प्रत्येक जीव सदा ही आनंद की तलाश में प्रयत्नशील रहती है, जबकि आंनद केवल परमात्मा का ही गुण है.....सुधीर भाटिया फकीर

जीवन एक किताब

 

शिक्षा सन्देश

हम सभी भाई-बहनों को अपने जीवन के कर्तव्य-कर्मों को सदा ईमानदारी से निभाते रहना चाहिए। ऐसा तभी संभव हो पाता है, जब मनुष्य के अन्तकरण में सतोगुण की प्रधानता निरंतर बनी रहती है। जीवन में सात्विकता बढ़ाने के लिये "आध्यात्मिक ज्ञानात्मक चैनल" (+725 कक्षाऐं) www.youtube.com/c/SudhirBhatiaFAKIR से जुड़कर प्रतिदिन ब्रह्म-मुहूर्त की कक्षा में भगवान, आत्मा व प्रकृति के यथार्थ ज्ञान पर आधारित विभिन्न विषयों पर निरंतर ज्ञान-लाभ लेते रहें व "ज्ञान-सागर" www.sudhirbhatiafakir.com में प्रतिदिन "ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश" व "सन्ध्या-बेला संदेश" भी पढ़ते रहें, ताकि आपके कर्मों में निरन्तर सुधार होता रहे।  आपका आध्यात्मिक मित्र सुधीर भाटिया फकीर

कल्पित मृत्यु की तिथि - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-725)-26-12-2021

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

सत्संग के अभाव में यानी सतोगुण की न्यून स्थिति में एक साधारण मनुष्य रजोगुणी विषय-भोगों में जल्दी से फिसल जाता है, क्योंकि स्थूल शरीर और विषय-भोग एक ही जाति यानी एक ही बरादरी के हैं। इसीलिए फिसलन जैसी स्थितियों से बचने के लिए सत्संग या सतोगुण की लगाम यानी ज्ञानपूर्वक कर्मकांड करते ही रहना होगा.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या बेला सन्देश

कलयुग में प्राय ऐसा देखा गया है कि अधिकांश मनुष्यों को रजोगुणी सुखों की वर्षा में नहाने की आदत सी पड़ने लगी है, यही आदत गहरे तल पर कब मनुष्य को तमोगुण में गिरा देती है, हमें स्वयं को भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर

सोना सभी मनुष्यों को प्रिय है।

 

अपना स्वभाव पहचानो - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-724)-25-12-2021

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

कार्य में कारण अदृश्य रूप में रहता हुए ही कार्य सम्पन्न होता है, जैसे विद्युत-शक्ति फ्रीज और गीजर में कार्य को यन्त्र के स्वभाव के अनुसार कार्य करवाती है। इसी तरह शुभ/सत्संग या अशुभ/कुसंग, मनुष्यों द्वारा होने वाले दोनों ही कार्यों में भगवान की शक्ति अपना कार्य करती है.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या बेला सन्देश

सभी मनुष्यों को स्थूल शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पुरुषार्थ करना ही होता है, लेकिन मन में लोभवृति आते ही देर-सबेर संग्रहवृति आने पर मनुष्य को राक्षस बनने में देरी नहीं लगती.....सुधीर भाटिया फकीर

प्रकृति यानी भोग और निवृत्ति यानी योग

 

QUALITY (गुणवत्ता/सतयुग), QUANTITY (संख्या/कलयुग) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-723)-24-12-2021

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

ध्यान एक बीज के समान है, जिसे जिस कार्य-विशेष में लगाया जाता है, एक समय अंतराल के बाद फिर वहीं का ज्ञान रूपी फल मिलने लगता है। मनुष्य योनि में ही परमात्मा का ध्यान लगाया जा सकता है। सभी मनुष्यों के ध्यान की अलग-अलग गहराईयां होती है, इसलिए मिलने वाले फल भी अलग-अलग ही होते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या बेला सन्देश

शास्त्रों में आत्मा को सतचित और परमात्मा को सच्चिदानंद कहा गया है यानी सभी आत्माएँ केवल ज्ञानस्वरुप है, आनंदस्वरुप नहीं, इसीलिए सभी मनुष्य मरते दम तक स्वाभाविक ही आनंद की तलाश करते रहते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

शाब्दिक ज्ञान

 

प्रतिदिन 24 घंटो की स्थिति: तमोगुण+सतोगुण/रात,रजोगुण+सतोगुण/दिन- सुधीर भाटिया फकीर-कक्षा722/23-12-21

 

ब्रह्म मुहूर्त उपदेश

हम सभी मनुष्यों को संसार प्रत्यक्ष रूप से जगह-जगह नजर में आता है, इसलिए सँसार के होने पर कभी भी कोई शक नहीं करता, जबकि मनुष्य को परमात्मा प्रत्यक्ष रूप से तो मंदिर में भी नजर नहीं आता, जबकि परमात्मा की सत्ता कण-कण में हर क्षण मौजूद है....सुधीर भाटिया फकीर

मृत्यु एक निश्चित घटना

 

सन्ध्या बेला सन्देश

केवल मनुष्य योनि में ही सत्संग करने का एक अवसर मिलता है। सत्संग सफेद रंग की तरह धीरे-धीरे ही अपना असर दिखाता है, जबकि कुसंग काले रंग की तरह तुरंत अपना असर दिखाता है, इसलिए मनुष्य को कुसंग से सदा ही बचना चाहिए......सुधीर भाटिया फकीर

उपाधियों में आसक्ति - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-721)-22-12-2021

 

ब्रह्म मुहूर्त उपदेश

हम सभी मनुष्यों के सकाम कर्म सदा ही स्थूल शरीर के स्तर पर किये जाते हैं, जो सूक्ष्म शरीर/मन-बुद्धि से प्रेरित होते हैं, लेकिन प्रेम/भक्ति केवल आत्मा से ही संबंध रखती है, क्योंकि प्रेम करना आत्मा का एक स्वाभाविक गुण है, जबकि तन के स्तर पर वासनायें उत्पन्न होती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या बेला सन्देश

अपने मिले हुए जीवन में निरंतर सेवा, सत्संग, स्वाध्याय करते रहने से ही मनुष्य अपनी आध्यात्मिक उन्नति को को एक सकारात्मक दिशा दे सकता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य पाप कर्मों से भी बचा रहता है और अपने मिले हुए जीवन को भी सफल व सार्थक कर लेता है.....सुधीर भाटिया फकीर

आवश्यकता/स्थूल शरीर, कामना/सूक्ष्म शरीर, वासना/कारण शरीर

 

आत्मा का लक्ष्य } धन या आनन्द - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-720)-21-12-2021

 

ब्रह्म मुहूर्त उपदेश

84,00000 योनियो में केवल और केवल मनुष्य योनि में ही किये गये सभी प्रकार के सकाम कर्म लिखे जाते हैं, इसलिए हम सभी मनुष्यों को अपने सभी कर्म बहुत ही ज्ञानपूर्वक व सावधानी पूर्वक करने चाहिए, अर्थात् पाप कर्मों से अवश्य ही बचा जाना चाहिए, ताकि भविष्य में दुख न झेलने पड़े.....सुधीर भाटिया फकीर

संध्या बेला सन्देश

अक्सर कलयुग में मनुष्यों का लक्ष्य विषय भोगों के लिए धन कमाने का बना ही रहता है, तब हमारे कर्म ही नहीं, बल्कि पाप कर्म भी उसी दिशा में होने की संभावनाएँ बढ़ने लगती हैं, जबकि परमात्मा को पाने का लक्ष्य बन जाने से पाप कर्म होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता.....सुधीर भाटिया फकीर

मन की यात्रा

 

शब्दों के तीर - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-719)-20-12-2021

 

ब्रह्ममुहूर्त उपदेश

सभी मनुष्यों के शरीरों में वृद्धावस्था का आना एक सच्चाई है, जब मनुष्य में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सत्संग करने में कुछ रुचि सहज ही जागने लगती है, भले ही आरंभिक सत्संग बेमन से ही होता है, लेकिन ऐसी स्थिति नियमित रूप से बनने से भी मनुष्य पाप कर्मों से तो बच ही जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या बेला सन्देश

एक संसारी मनुष्य के मन में पांच भोग-विषयों (गन्ध, रस, रुप, स्पर्श, शब्द) को भोगने की वासना कम-अघिक बनी ही रहती है, तब ऐसे में हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संसार से ही जुड़े रहते हैं और परमात्मा से योग कर नहीं पाते.....सुधीर भाटिया फकीर

गति और प्रवृति

 

संस्कारों की सम्पत्ति-धन की सम्पत्ति - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-718)-19-12-2021

 

ब्रह्म मुहूर्त उपदेश

मनुष्य योनि में हम सभी भाई-बहनों को अपने कर्त्तव्य कर्मों को ईमानदारी से निभाना चाहिए। परमात्मा तो हम सभी मनुष्यों को सदा ही धर्म मार्ग पर चलने की शिक्षा देते रहते हैं, लेकिन मनुष्य उस ज्ञान को सुनने तक ही सीमित रखता है, उसे अपने जीवन के व्यवहार में नहीं लाता। इसीलिए मनुष्य के कर्मों में सुधार नहीं आ पाता.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या बेला सन्देश

हम सभी भाई-बहनों के स्थूल शरीर कच्चे घड़े के समान है, जो कभी भी टूट सकते है, इसलिए इस स्थूल शरीर का सदुपयोग करते हुए हमें जीवन में सदा ही सत्संग करते रहना चाहिए, ताकि हमारा सूक्ष्म और कारण शरीर पवित्र होता जाये.....सुधीर भाटिया फकीर

आत्मा का मूल स्वरूप व आत्मा का रूप

 

मन ही मित्र-मन ही शत्रु - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-717)-18-12-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि में ही हम अपना स्वभाव सुधार भी सकते हैं और बिगाड़ भी सकते हैं। भोगों में लिप्त रहने से सदा ही स्वभाव बिगड़ता है और निरन्तर सत्संग करते रहने से स्वभाव सुधरने लगता है और स्वभाव बिगड़ने से मरने के बाद नीचे की योनियों में जाना ही पड़ता है, इसलिए जीवन में कुसंग से सदा ही बचना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

"जीवन-सन्देश"

हम सभी भाई-बहनों को अपने जीवन के कर्तव्य-कर्मों को सदा ईमानदारी से निभाते रहना चाहिए। ऐसा तभी संभव हो पाता है, जब मनुष्य के अन्तकरण में सतोगुण की प्रधानता बनी रहती है। जीवन में सात्विकता बढ़ाने के लिये "आध्यात्मिक ज्ञानात्मक चैनल"(+717कक्षाऐं) www.youtube.com/c/SudhirBhatiaFAKIR से जुड़कर प्रतिदिन ब्रह्म-मुहूर्त की कक्षा में भगवान, आत्मा व प्रकृति के यथार्थ ज्ञान पर आधारित विभिन्न विषयों पर निरंतर ज्ञान-लाभ लेते रहें व "ज्ञान-सागर" www.sudhirbhatiafakir.com में प्रतिदिन "ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश" व "सन्ध्या-बेला संदेश" भी पढ़ते रहें, ताकि आपके कर्मों में निरन्तर सुधार होता रहे।  आपका आध्यात्मिक मित्र सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

मनुष्य का स्थूल शरीर बिना भोजन के अघिक दिनों तक जीवित नहीं रह सकता, जबकि भजन के बिना मन यानी सूक्ष्म शरीर भौतिक जगत में भले ही जीवित नजर आता है, लेकिन आध्यात्मिक जगत में उसकी स्थिति एक घायल के समान ही बनी रहती है.....सुधीर भाटिया फकीर

अपंगता:- स्थूल इन्द्रियां √, सूक्ष्म इन्द्रियां ×

 

ज्ञान } वैराग्य } भक्ति - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-716)-17-12-2021

 

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

कलयुग में प्राय ऐसा देखा गया है कि मनुष्य अपनी सत्ता बनाये रखने के लिए यानी स्वयं को सफल करने के लिए दूसरे मनुष्यों को असफल या पीछे ढकेलने में कभी नहीं चूकता, बस, इसी प्रक्रिया के दौरान ही मनुष्य से कितने पाप-कर्म हो जाते हैं, मनुष्य को भी स्वयं भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

भौतिक प्रकृति के पदार्थों की प्राप्ति के लिए कर्म करना भौतिक है, जो हमारे 5 विषय भोगों से ही सम्बन्धित होते हैं, जबकि परमात्मा की भक्ति का होना या ज्ञानमयी स्मृति बने रहना ही योग है, अर्थात् योग के अतिरिक्त सब कुछ ही भोग है.....सुधीर भाटिया फकीर

रवाया:- पाप-पुण्य

 

वृत्तियाँ: कलिष्ट }} कर्माश्य + संस्कार, अकलिष्ट }} मोक्ष - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-715)-16-12-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

प्रकृति में 3 गुणों सतो, रजो व तमो से होने वाली क्रियाओं से अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियां बनती ही रहती है, जिसके फलस्वरूप प्रकृति के सभी जीवों को किये गये कर्मों के आधार पर सुख और दुख मिलते हैं, जो एक समय अवधी तक ही रूकते हैं और समय पूरा हो जाने पर चुपचाप चले भी जाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या-बेला सन्देश"

हम सभी मनुष्यों को अपने स्थूल शरीर को केवल 1%, सूक्ष्म शरीर को 10% और कारण शरीर को 100% महत्व देना चाहिए, तभी हमारा मनुष्य जीवन सार्थक हो सकेगा, जिसके फलस्वरूप हम बड़े भविष्य में अधोगति से भी बच जाते हैं..... सुधीर भाटिया फकीर

प्रकृति:- सतो/धर्म, रजो/अर्थ, तमो/काम

 

कर्मयोग यानी निष्कामता - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-714)-15-12-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

कर्मफल-सिद्घांत के अनुसार सुख रुपी फलों का त्याग तो सम्भव है, लेकिन दुख रुपी फलों को तो स्वयं ही भोगना पड़ता है, फिर भी परमात्मा दयावश सदा ही मिले हुए दुखों को सहने की शक्ति, इन दुखों से बाहर निकलने का ज्ञान व अवसर भी समय-समय पर देते ही रहते हैं, लेकिन मनुष्य सत्संग के अभाव में अज्ञानतावश इन मिले हुए अवसरों का लाभ ही नहीं उठाता, बल्कि बार-बार नये पाप कर्म करने से भी बाज नहीं आता.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

कलयुग में सभी मनुष्यों की धन पाने की लालसा बनी ही रहती है और धन नहीं होने से मनुष्य दुखी भी होता है, लेकिन धन होने की स्थिति में भी सुख तो होता नहीं, क्योंकि अघिकांश धनी लोग भी मन के स्तर पर अक्सर दुरवी देरवे गये हैं। देखिए, दुख रहित सुख यानी आनंद केवल और केवल परमात्मा को पाने से ही मिलेगा.....सुधीर भाटिया फकीर

मन एक यन्त्र बाधक या साधक

 

श्रद्धांजलि/शोक-सभा का सच - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-713)-14-12-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

हम सभी मनुष्यों को आघ्यात्मिक उन्नति करने के लिए सर्वप्रथम अपने जीवन में सीमित आवश्यकताओं में जीने का स्वभाव बनाना होगा। अपनी आवश्यकताओं को कभी भी भोग-इच्छा नहीं बनने दो, अन्यथा यह भोग इच्छाएं ही हमसे पाप कर्म करवाती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

भौतिक विज्ञान कितनी भी उन्नति कर ले, लेकिन फिर भी उपलब्ध पदार्थों या साधनों द्वारा हम केवल सुख-सुविधा का एक सीमा तक ही लाभ ले सकते हैं, लेकिन यह हमारे मन को शांति नहीं दे सकते। मन को शांति केवल निरंतर सत्सँग करते रहने से ही मिलेगी, अन्यथा नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

अन्त:करण - मन, बुद्धि, अहंकार

 

यहाँ के खाते-वहाँ के खाते ? सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-712)-13-12-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

कलयुगी दुनिया में अधिकांश लोग भौतिक प्रकृति को ही जानने में लगे हुए हैं। लोगों में परमात्मा के बारे में अधिक जानने की कोई जिज्ञासा नहीं होती। ऐसे इंसान तो केवल गिनती के ही हैं, जो परमात्मा को तत्व रुप से जानने-समझने का प्रयास करते हैं और जो बिना जाने ही मान लेते हैं, ऐसे अघिकतर लोग अंधविश्वास की खाई में गिर जाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या बेला सन्देश

मोह हमेशा स्वार्थ से प्रेरित होता है, जो स्थूल शरीरों या स्थूल पदार्थों से ही होता है। इसीलिए हमारा मोह आकाश के बादलों के समान एक वस्तु या व्यक्ति में कभी नहीं टिकता, जबकि प्रेम स्वार्थ रहित होता है और भगवान से प्रेम हुए बिना प्रकृति के जीवों से भी प्रेम हो नहीं पाता.....सुधीर भाटिया फकीर

क्लेश:- कलयुग की देन

 

जीवन का निचोड़

मनुष्य योनि के महत्व को समझते हुए परमात्मा से ज्ञानपूर्वक जुड़ने में ही समझदारी है। इस सच्चाई को सभी मनुष्य देर-सबेर स्वीकार करते ही हैं। इसलिए आज ही जीवन में सात्विकता बढ़ाने के लिये "आध्यात्मिक ज्ञानात्मक चैनल"(+711कक्षाऐं) www.youtube.com/c/SudhirBhatiaFAKIR से जुड़कर प्रतिदिन ब्रह्म-मुहूर्त की कक्षा में भगवान, आत्मा व प्रकृति के यथार्थ ज्ञान पर आधारित विभिन्न विषयों पर निरंतर ज्ञान-लाभ लेते रहें व "ज्ञान-सागर" www.sudhirbhatiafakir.com में प्रतिदिन "ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश" व "सन्ध्या-बेला संदेश" भी पढ़ते रहें, ताकि आपके कर्मों में निरन्तर सुधार होता रहे।  आपका आध्यात्मिक मित्र सुधीर भाटिया फकीर

सत्संग:- कथा, कहानी, कीर्तन, यथार्थ ज्ञान - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-711)-12-12-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

एक साधारण मनुष्य में सत्संग के अभाव में रजोगुणी विषय-भोगों को भोगने की एक सहज रूचि बनी ही रहती है, लेकिन मर्यादा से अधिक इन विषय-भोगों को भोगने से अक्सर हमारा स्वभाव बिगड़ता है। इसलिए सात्विक दिनचर्या बनाने के लिए सतो का संग/सत्संग करते रहना चाहिये.....सुधीर भाटिया फकीर

"सन्ध्या बेला सन्देश"

सभी मनुष्यों द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है कि अन्धकार में सँसार नजर नहीं आता अर्थात् अन्धकार में हमारा तन ठोकरें खाता है, जबकि इस बात को मनुष्य स्वीकार नहीं करता कि ज्ञान के अभाव में यानी अज्ञानता रुपी अन्धकार में हमारा मन विषय-भोगों की गलियों में भटक जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

आध्यात्मिक यात्रा-भौतिक यात्रा

 

विज्ञापनों का चुम्बकीय आकर्षण - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-710)-11-12-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

सारे का सारा आध्यात्मिक ज्ञान परमात्मा का ही है, अतः ज्ञान पर हम अपनी व्यक्तिगत मोहर कभी नहीं लगा सकते। दूसरी विशेष बात कि हम सभी आत्माएं स्वभाव से ही ज्ञानवान है, लेकिन हम सभी आत्माओं पर माया/प्रकृति के पदार्थों का मर्यादा से अधिक भोगने के कारण कम-अधिक अज्ञानता रूपी आवरण/पर्दा हमें अचेत किए हुए है.....सुधीर भाटिया फकीर

पाप-पुण्य कर्मों का फल

 

सन्ध्या बेला सन्देश

मनुष्य योनि आध्यात्मिक ज्ञान बढ़ाने के लिए ही मिली है, जिसके बिना मनुष्य का जीवन अधूरा बना रहता है। यह ज्ञान केवल पढ़ने या सुनने का ही विषय नहीं है, अपितु सुनने-पढ़ने के बाद चिंतन, मनन, शोध व अनुभव का विषय है.....सुधीर भाटिया फकीर

भौतिकवाद (अर्थ-काम), अध्यात्मवाद (धर्म-मोक्ष) - सुधीर भाटिया फकीर- (कक्षा-709)-10-12-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

परमात्मा की दिशा में चलने के लिए सत्संग करना एक आरंभिक प्रक्रिया है, जैसे बच्चे को प्ले स्कूल/नर्सरी की कक्षा में भेजा जाता है, ताकि बच्चा कुछ सीखने लगे और घर पर करने वाली शैतानियां से भी बच जाये, यानी मनुष्य पाप कर्मों से बच जाये.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

शास्त्रों में परमात्मा से जुड़ने के लिए मायातीत महापुरुषों ने आरंभ में ही धार्मिक कर्मकांड बता दिये थे, ताकि मनुष्य इन कर्मकाण्डों को भले ही लोभ से करे या भय से, इनको करने मात्र से अधोगति होने की संभावनाएँ कमजोर पड़ने लगती हैं।.....सुधीर भाटिया फकीर

आदर्श जीवन

 

मनुष्य का जीवन देखा-देखी - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-708)-09-12-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

शास्त्रों में सभी आत्माओं को परमात्मा का ही अंश इसलिए कहा गया है, क्योंकि सभी आत्माएं परमात्मा के समान चेतन ही हैं, लेकिन परमात्मा आनन्दस्वरूप भी हैं, जबकि आत्मा आनन्दरहित है, इसीलिए मनुष्य अज्ञानतावश आनन्द की तलाश में प्रकृति के अस्थाई सुरवों में फंस जाता है.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

सभी आत्माएं जन्म से ही सुख चाहते हैं, दुख कोई नहीं चाहता। इसलिए जैसा व्यवहार हम स्वयं के लिए नहीं चाहते, वैसा व्यवहार हमें अन्य किसी भी मनुष्य या जीव के साथ भी नहीं करना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

सूर्य की किरण-एक नई आशा

 

कर्म-विकर्म और निष्काम कर्म - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-707)-08-12-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

प्रकृति के सभी पदार्थ तामसी हैं, जिनको मर्यादा से अधिक भोगने पर मनुष्य क्रमशः अचेत होता जाता है और उसका आध्यात्मिक ज्ञान भी क्रमशः आवर्त/कमजोर होता जाता है, फिर भी मनुष्य इन्ही नाशवान पदार्थों के लिए कर्म ही नहीं, विकर्म/पाप कर्म करने से परहेज नहीं करता, जबकि दूसरी ओर मिले हुए पदार्थों का सीमा से अधिक भोग करने में हमारी इंद्रियां भी सदा सामर्थ्य बनी नहीं रहती.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

हम सभी मनुष्यों के स्थूल शरीर की सभी इंद्रियां उम्र बढ़ने के साथ-साथ कमजोर होती जाती हैं, ऐसा ज्ञान मन में स्थिर हो जाने पर इन भोगों के प्रति सहज ही अरुचि उत्पन्न होती है और मनुष्य के भीतर से स्थायी सुख/आनंद यानी भगवान की तलाश शुरू होती है, उससे पूर्व नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

आस्तिक बनो, नास्तिक नहीं

 

जन्म-व्याधि-जरा-मृत्यु - सुघीर भाटिया फकीर-(कक्षा-706)-07-12-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

किसी भी प्रकार के क्रोध को कभी भी किसी आंधी-तूफान से कम नहीं आंकना चाहिए, क्योंकि आंधी-तूफान भले ही अल्पकाल के लिए ही आते हैं, लेकिन नुकसान बहुत लंबे समय का कर जाते हैं। इसपर चिन्तन करें और सदा क्रोध आने की संभावित स्थितियों से बचें.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

यह एक सच्चाई है, कि सभी प्रतिकूल परिस्थितियों में परमात्मा की कृपा सदा ही सभी मनुष्यों के साथ बनी रहती है, यानी परमात्मा हम सभी मनुष्यों को भीतर से दुख सहने की शक्ति प्रदान करते हैं, जबकि सुरवों को भोगने की शक्ति आयु बढ़ने के साथ-साथ क्रमश: घटती है.....सुधीर भाटिया फकीर

शरीर के 5 कोष

 

लक्ष्य यानी मंजिल - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-705)-06-12-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

भौतिक प्रकृति के सभी जीव केवल मनुष्य योनि में ही किए गए पाप-पुण्य कर्मों का फल मनुष्य व अन्य शेष योनियो में भोगते हैं, जिसे स्वयं भगवान भी समाप्त नहीं करते, हालांकि भगवान ने हम सभी मनुष्यों को कर्म करने की स्वतंत्रता विधि-निषेध के ज्ञान के साथ समझाया है कि यह करो-यह मत करो.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

आध्यात्मिक शास्त्र या गुरु सदा ही परमात्मा रूपी मंजिल का रास्ता दिखाते हैं। इसलिए हम सभी भाई-बहनों को श्रध्दापूर्वक इन शास्त्रों को पढ़ना चाहिए और गुरु की वाणी को सुनना चाहिए, जोकि केवल मनुष्य योनि में ही सम्भव होता है.....सुधीर भाटिया फकीर

सूक्ष्म शरीर/18 = सूक्ष्म शरीर/17 + कारण शरीर/1

 

अनुकूलता (सुख)- प्रतिकूलता (दुख) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-704)-05-12-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

सभी मनुष्यों को सत्संग करने पर इसलिए जोर दिया जाता है, क्योंकि अक्सर सत्संग के अभाव में अधिकांश मनुष्यों को पाप-पुण्य कर्मों के भेद की कुछ अधिक परख नहीं होती और मनुष्य रजोगुणी भोगों के वेग में आकर अधिकाधिक पाप करता हुआ मरने के बाद अधोगति को प्राप्त होता है.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

भौतिक ज्ञान की प्राप्ति के लिये हम सभी माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल-कालेज भेज देते हैं, लेकिन आध्यात्मिक ज्ञान, जो केवल निरन्तर सत्संग करने से ही मिलता है, इसपर कभी विचार ही नही करते.....सुधीर भाटिया फकीर

श्रवण रूपी सत्संग (धूमिल...हो जाना)

 

ज्ञान }} इच्छा } पकड़ना (सुख), छोड़ना (दुख) - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-703)-04-12-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

भगवान को तत्वरुप से यानी यथार्थ रूप से जानने-समझने के लिए बार-बार ज्ञान रूपी सत्संग का श्रवण करते रहो, बार-बार शास्त्रों को पढ़ो। जीवन में ऐसा निरंतर करते रहने से ही परमात्मा से ज्ञानपूर्वक जुड़ना संभव हो सकेगा, अन्यथा ?.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

केवल मनुष्य योनि में ही सत्संग करना संभव है, अन्य योनियों में बिल्कुल भी नहीं। याद रखें कि हमारे जीवन में सत्संग के अतिरिक्त होने वाला किसी भी प्रकार का अन्य संग प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से कुसंग ही होता है.....सुधीर भाटिया फकीर

एक मंजिल परमात्मा-एक दिशा

 

दृश्य जगत - सुघीर भाटिया फकीर-(कक्षा-702)-03-12-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

मनुष्य का मन कभी भी खाली नहीं बैठ सकता, यदि यह मन सत्संग में जाकर नहीं टिकता, तो इस मन को विषय-भोगों की गलियों में आवारागर्दी करने से नहीं रोका जा सकता, इसलिए इस मन को जबरदस्ती सत्संग में लगाना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

प्रत्येक मनुष्य केवल अपने मनुष्य योनि में ही किए गए कर्मों का फल स्वयं खा/भोग सकता है, किसी दूसरे-तीसरे का हिस्सा खा ही नहीं सकता, ऐसा कर्मफल का सिद्घांत/विधान है, यदि कोई मनुष्य छीन कर खाता है, तो प्रकृति उसे दंड दिए बिना छोड़ती भी नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर

आहार:- तामसी, राजसी, सात्विक

 

परम्परा-मान्यता, नियम-सिद्धांत - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-701)-02-12-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

आवश्यकता से अधिक धन जीवन में आने मात्र से ही हमारे आध्यात्मिक ज्ञान की स्थिति में आवर्त होने की संभावनाएँ बढ़ने लगती हैं, भले उस घन विशेष को विषय-भोगों में न भी लगाया जाये, जबकि एक सामान्य मनुष्य धन पाने के लिए कर्म ही नहीं पाप कर्म करने से स्वयं ही अपनी अधोगति का रास्ता बना लेता है.....सुधीर भाटिया फकीर

सन्ध्या-बेला सन्देश

एक साधारण मनुष्य की भोगों में अघिक रूचि होने के कारण प्रभु प्रार्थना में भी अपनी कामनाएं ही आगे ररवता है, क्योंकि कामनाएं सदा ही संसार से जोड़ती हैं और भावनाओं की गैर-मौजूदगी में मनुष्य परमात्मा से जुड़ नहीं पाता.....सुधीर भाटिया फकीर

मन द्वारा संन्यास

 

"आभार सन्देश"

"आभार सन्देश" परमात्मा की प्रेरणा व आशीर्वाद से व आप सभी भाई-बहनों के उत्साह व सहयोग से आज "आध्यात्मिक ज्ञानात्मक चैनल" ने 700वीं कक्षा "परमात्मा बिना कर्म के फल नहीं देते" को प्रसारित कर किया है। जीवन में हर क्षण सात्विकता बनाये ररवने के लिए  www.youtube.com/c/SudhirBhatiaFAKIR पर जा कर प्रतिदिन एक नई वीडियो सुनें व  www.sudhirbhatiafakir.com में प्रतिदिन "ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश" व "सन्ध्या-बेला सन्देश" पढें, ताकि हमारे कर्मों में निरन्तर सुघार होता रहे। आपका आघ्यात्मिक मित्र सुधीर भाटिया फकीर

परमात्मा बिना कर्म के फल नहीं देते ! - सुधीर भाटिया फकीर-(कक्षा-700)-01-12-2021

 

ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश

सभी आत्माएँ स्वभाव से ही ज्ञानवान होती हैं और परमसुख की इच्छा रखना भी सभी आत्माओं का स्वभाव है, लेकिन फिर भी हम सभी जीव अनादि काल से अलग-अलग स्तर पर मायाबद्ध होने के कारण दुखी है। इस पर चिन्तन करें और सत्संग करते रहना अपना स्वभाव बनायें.....सुधीर भाटिया फकीर